घट-पल्लव

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
फ़िज़ा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:59, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{पुनरीक्षण}} '''घट-पल्लव''' भारतीय कला का महत्वपूर्ण आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

घट-पल्लव भारतीय कला का महत्वपूर्ण आलंकारिक तत्त्व है, जिसमें फूल और पत्तियों से भरा एक कलश होता है। वैदिक साहित्य में यह जीवन का प्रतीक, वनस्पति का स्रोत है, जो अब भी मान्य हैं। भारतीय कला में लगभग आरंभ से ही यह तत्त्व विद्यमान था और सभी कालों में इसका प्रमुखता से उपयोग हुआ पांचवीं शताब्दी से विशेषकर उत्तरी भारत में, घट-पल्लव का उपयोग वास्तुशास्त्र में स्तंभ के आधार और शीर्ष के रूप में होने लगा तथा 15वीं शताब्दी तक इस प्रकार का उपयोग जारी रहा।

बौद्ध, हिंदू और जैन धर्मो में भरे हुए घड़े (पूर्ण घट या पूर्ण कलश) का उपयोग देवता अथवा सम्मानित अतिथि के आनुष्ठानिक चढ़ावे के लिए भी होता है; पवित्र प्रतीक के रूप में धर्मस्थलों और भवनों की सज्जा में भी इसका प्रयोग होता है। पात्र को पानी, वनस्पति और अक्सर एक नारियल से भर दिया जाता है और इसके चारों ओर पवित्र धागा बांधा जाता है। समृद्धि और जीवन के स्रोत के प्रतीक के रूप में पूर्ण कलश (आनुष्ठानिक वस्तु और आलंकारिक तत्त्व, दोनों अर्थों में) को हिंदू मान्यता के संदर्भ में समृद्धि और सौभाग्य की देवी श्री या लक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख