किसान कन्या

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किसान कन्या भारत में बनी पहली रंगीन हिंदी फ़िल्म है जिसका प्रदर्शन सन 8 जनवरी, 1938 में हुआ। पहली सवाक फ़िल्म आलमआरा बनाने वाली इंपीरियल फिल्म कंपनी के अर्देशिर ईरानी ने देश में रंगीन फिल्म बनाने का प्रबंध किया और भारत की पहली पूरी तरह स्वदेशी रंगीन फिल्म किसान कन्या 8 जनवरी, 1938 को बंबई के मैजेस्टिक सिनेमा घर में रिलीज की।

निर्माण और निर्देशन

किसान कन्या हॉलीवुड के प्रोसेसर सिने कलर के तहत बनी थी। इस प्रोसेसर को इंपीरियल फिल्म कंपनी ने भारत और पूर्वी देशों के लिए खरीद लिया था। इसके विशेषज्ञ वोल्फ हीनियास की देखरेख में शूट और प्रोसेस की गई। किसान कन्या भारत की अपनी पहली रंगीन फिल्म थी। फिल्म में रंग इतने अच्छे निखरे थे कि दृश्य वास्तविक लगते थे। निर्माता ने विषय भी ग्रामीण अंचल का चुना था ताकि पर्दे पर वन, पेड़, नदी, खेत और पहाड़ की प्राकृतिक छटा खूबसूरती से आए। इस काम में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को वांछित सफलता मिली।

कहानी

किसान कन्या की कहानी गांव के एक लालची और क्रूर जमींदार की थी, जो अपने जुल्मों से किसान-मजदूरों का जीना मुश्किल किए हुए था। बाद में पाप के अंत के साथ फिल्म खत्म होती थी। फिल्म का निर्देशन मोती बी. गिडवानी ने किया था। इसकी कहानी और पटकथा जियाउद्दीन ने लिखी थी जबकि सिनेरियो तैयार करने और संवाद लिखने का काम सआदत हसन मंटो ने किया था। संगीत रामगोपाल पांडे का था और रुस्तम ने फोटोग्राफी की थी। किसान कन्या को रंगीन फोटोग्राफी की वजह से आशातीत सफलता तो मिली, पर कहानी के दृष्टिकोण से यह काफी कमजोर मानी गई। फ़िल्म समीक्षकों के अनुसार फिल्म की कहानी के हिसाब से किसान कन्या नाम सही नहीं था। इसकी कहानी फिल्म की नायिका बंसरी पर अधिक देर केंद्रित नहीं रहती।

अभिनय

मोती बी. गिडवानी का निर्देशन अच्छा था और गुंडे की भूमिका में उस जमाने के मशहूर अभिनेता ग़ुलाम मोहम्मद ने अपने जीवन का सर्वोत्कृष्ट अभिनय किया था। वे पूरी फिल्म में छाए हुए थे। जमींदार की पत्नी रामदेई के रूप में तब की चोटी की अभिनेत्री जिल्लोबाई ने अत्यंत संवेदनशील अदाकारी की थी। बंगाली नायिका पद्मा देवी ने भी अपने हिस्से में आए काम को बड़ी खूबी और तन्मयता से निभाया था।

समीक्षकों और फिल्म को समझने वालों ने इसे कमजोर कहानी वाली फिल्म बताया, जबकि यह दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींचने में सौ प्रतिशत सफल रही। यह उस जमाने के हिसाब से निर्माता के लिए अधिक बजट की फिल्म थी, सो डर कर फिल्म निर्माताओं ने वर्षों तक रंगीन फिल्म बनाने का साहस नहीं किया। वर्षों बाद एम. भवनानी की फिल्म अजीत, जो प्रेमनाथ की पहली फिल्म थी, से रंगीन फिल्मों का जमाना लौटा।

मुख्य कलाकार

  • ग़ुलाम मोहम्मद
  • पद्मा देवी
  • जिल्लोबाई
  • निस्सार
  • सैयद अहमद


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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