किन्तु जो तिमिर-पान औ' ज्योति-दान करता करता बह गया उसे क्या कहूँ कि वह सस्पन्द नहीं था? और जो मन की मूक कराह ज़ख़्म की आह कठिन निर्वाह व्यक्त करता करता रह गया उसे क्या कहूँ गीत का छन्द नहीं था? पगों कि संज्ञा में है गति का दृढ़ आभास, किन्तु जो कभी नहीं चल सका दीप सा कभी नहीं जल सका कि यूँही खड़ा खड़ा ढह गया उसे क्या कहूँ जेल में बन्द नहीं था?