एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

मालवा चित्रकला

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 29 जून 2013 का अवतरण (Text replace - "श्रृंखला" to "शृंखला")
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

मालवा चित्रकला 17 वीं सदी में पुस्तक चित्रण की राजस्थानी शैली है जिसका केंद्र मुख्यतः मालवा और बुंदेलखंड[1] थे। भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से इसे कई बार 'मध्य भारतीय चित्रकला' भी कहते हैं।

  • यह मूलतः एक पारंपरिक शैली थीं और इसमें 1636 की शृंखला रसिकप्रिया[2] और अमरुशतक[3], जैसे प्रारंभिक उदाहरणों के बाद ज़्यादा विकसित होते नहीं देखा गया।
  • 18वीं सदी में इस चित्रकला शैली के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।
  • मालवा चित्रकला में बिल्कुल समतल कृतियों, काली और कत्थई भूरी पृष्ठभूमि, ठोस रंग खंडों पर उभरी आकृतियों और शोख़ रंगों में चित्रित वास्तुकला के प्रति विशेष आगृह दिखाई देता है।
  • इस शैली के सबसे आकर्षक गुण हैं इनका आदिम लुभावनापना और सहज बालसुलभ दृष्टि है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य
  2. प्रेम की भावना की व्याख्या करती एक कविता
  3. 17वीं सती के उत्तरार्द्ध की संस्कृत कविता, अब पश्चिम भारत में मुंबई के प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम में

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख