तेलंगाना

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तेलंगाना (अंग्रेज़ी: Telangana, तेलुगू : తెలంగాణ), भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य का एक क्षेत्र है। यह परतन्त्र भारत के हैदराबाद नामक राजवाडे के तेलुगू भाषी क्षेत्रों से मिलकर बना है। 'तेलंगाना' शब्द का अर्थ है - 'तेलुगूभाषियों की भूमि'। गौरतलब है कि 114,800 वर्ग किलोमीटर में फैले तेलंगाना में आंध्र प्रदेश के 23 ज़िलों में से 10 ज़िले ग्रेटर हैदराबाद, रंगा रेड्डी, मेडक, नालगोंडा, महबूबनगर, वारंगल, करीमनगर, निजामाबाद, अदिलाबाद और खम्मम आते हैं। आंध्र प्रदेश की 294 में से 119 विधानसभा क्षेत्र और 17 लोकसभा क्षेत्र भी इसी में आते हैं। क़रीब 3.5 करोड़ आबादी वाले तेलंगाना की भाषा तेलुगु और दक्कनी उर्दू है। ग्रेटर हैदराबाद तेलंगाना के बीचो-बीच स्थित है और इसके नए राज्य की राजधानी बनने की उम्मीद है। तेलंगाना को एक अलग राज्य बनाने की मांग की जाती रही है, और इसके लिए आंदोलन भी किया जाता रहा है।

इतिहास

तेलंगाना मूल रूप से निज़ाम की हैदराबाद रियासत का हिस्सा था। 1948 में भारत ने निज़ाम की रियासत का अंत कर दिया और हैदराबाद राज्य का गठन किया गया। 1956 में हैदराबाद का हिस्सा रहे तेलंगाना को नवगठित आंध्र प्रदेश में मिला दिया गया। निज़ाम के शासनाधीन रहे कुछ हिस्से कर्नाटक और महाराष्ट्र में मिला दिए गए। भाषा के आधार पर गठित होने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य था।

तेलंगाना आंदोलन

चालीस के दशक में कामरेड वासुपुन्यया कि अगुवाई में कम्‍युनिस्टों ने पृथक तेलंगाना की मुहिम की शुरूआत की थी। उस समय इस आंदोलन का उद्देश्य था भूमिहीनों कों भूपति बनाना। छह वर्षों तक यह आंदोलन चला लेकिन बाद में इसकी कमर टूट गई और इसकी कमान नक्सलवादियों के हाथ में आ गई। आज भी इस इलाक़े में नक्सलवादी सक्रिय हैं। 1969 में तेलंगाना आंदोलन फिर शुरू हुआ था। दरअसल दोनों इलाक़ों में भारी असमानता है। आंध्र मद्रास प्रेसेडेंसी का हिस्सा था और वहाँ शिक्षा और विकास का स्तर काफ़ी ऊँचा था जबकि तेलंगाना इन मामलों में पिछड़ा है। तेलंगाना क्षेत्र के लोगों ने आंध्र में विलय का विरोध किया था। उन्हें डर था कि वो नौकरियों के मामले में पिछड़ जाएंगे। अब भी दोनों क्षेत्र में ये अंतर बना हुआ है। साथ ही सांस्कृतिक रूप से भी दोनों क्षेत्रों में अंतर है। तेलंगाना पर उत्तर भारत का ख़ासा प्रभाव है।

आंदोलन का शुरुआती प्रभाव

शुरुआत में तेलंगाना को लेकर छात्रों ने आंदोलन शुरू किया था लेकिन इसमें लोगों की भागीदारी ने इसे ऐतिहासिक बना दिया। इस आंदोलन के दौरान पुलिस फ़ायरिंग और लाठी चार्ज में साढे तीन सौ से अधिक छात्र मारे गए थे। उस्मानिया विश्वविद्यालय इस आंदोलन का केंद्र था। उस दौरान एम चेन्ना रेड्डी ने 'जय तेलंगाना' का नारा उछाला था लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना प्रजा राज्यम पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। इससे आंदोलन को भारी झटका लगा। इसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था। 1971 में नरसिंह राव को भी आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था क्योंकि वे तेलंगाना क्षेत्र के थे।

चंद्रशेखर राव की भूमिका

नब्बे के दशक में के. चंद्रशेखर राव तेलुगु देशम पार्टी के हिस्सा हुआ करते थे। 1999 के चुनावों के बाद चंद्रशेखर राव को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा लेकिन उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया गया। वर्ष 2001 में उन्होंने पृथक तेलंगाना का मुद्दा उठाते हुए तेलुगु देशम पार्टी छोड़ दी और तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर दिया। 2004 में वाई. एस. राजशेखर रेड्डी ने चंद्रशेखर राव से हाथ मिला लिया और पृथक तेलंगाना राज्य का वादा किया। लेकिन बाद में उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद तेलंगाना राष्ट्र समिति के विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया और चंद्रशेखर राव ने भी केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तेलंगाना की पृष्ठभूमि (हिंदी) बीबीसी हिंदी। अभिगमन तिथि: 30 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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