अनुच्छेद 370
अनुच्छेद 370 का वर्णन भारत के संविधान में है। यह एक अस्थायी प्रबंध है, जिसके जरिये जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता वाले राज्य का दर्जा दिया गया है। इससे सम्बन्धित प्रावधानों की चर्चा संविधान के भाग 21 में है, जो अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबन्ध वाले राज्यों से सम्बन्धित है। इस अनुच्छेद की वजह से ही जम्मू-कश्मीर में वे क़ानून लागू नहीं किए जा सकते, जो देश के अन्य राज्यों में लागू होते हैं। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक अनुच्छेद 370 भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रहा है। भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था।
ऐसे पड़ी नींव
ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति के साथ ही जम्मू और कश्मीर भी आज़ाद हुआ था। शुरू में इसके शासक महाराज हरीसिंह ने फैसला किया कि वह भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित न होकर स्वतंत्र रहेंगे, लेकिन 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थक आज़ाद कश्मीर सेना ने राज्य पर आक्रमण कर दिया, जिससे महाराज हरीसिंह ने राज्य को भारत में मिलाने का फैसला लिया। उस विलय पत्र पर 26 अक्टूबर, 1947 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू और महाराज हरीसिंह ने हस्ताक्षर किये। इस विलय पत्र के अनुसार- "राज्य केवल तीन विषयों- रक्षा, विदेशी मामले और संचार -पर अपना अधिकार नहीं रखेगा, बाकी सभी पर उसका नियंत्रण होगा। उस समय भारत सरकार ने आश्वासन दिया कि इस राज्य के लोग अपने स्वयं के संविधान द्वारा राज्य पर भारतीय संघ के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करेंगे। जब तक राज्य विधान सभा द्वारा भारत सरकार के फैसले पर मुहर नहीं लगाया जायेगा, तब तक भारत का संविधान राज्य के सम्बंध में केवल अंतरिम व्यवस्था कर सकता है। इसी क्रम में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया, जिसमें बताया गया कि जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी है, स्थायी नहीं।
अनुच्छेद 370 का निर्माण
भारतीय संविधान का 'अनुच्छेद 370' एक 'अस्थायी प्रबंध' के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है। अनुच्छेद 370 का खाका 1947 में शेख़ अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। तब शेख़ अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए लोहे की तरह मजबूत स्वायत्ता की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था। 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह 'सदर-ए-रियासत' और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जानिए आखिर क्या है अनुच्छेद 370 (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 जून, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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