यद्यपि अवनि अनेक हैं -रहीम
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यद्यपि अवनि अनेक हैं , कूपवंत सरि ताल ।
‘रहिमन’ मानसरोवरहिं, मनसा करत मराल ॥
- अर्थ
यों तो पृथ्वी पर न जाने कितने कुएँ, कितनी नदियाँ और कितने तालाब हैं, किन्तु हंस का मन तो मानसरोवर का ही ध्यान किया करता है ।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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