रहिमन आटा के लगे -रहीम
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 24 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('<div class="bgrahimdv"> ‘रहिमन’ आटा के लगे, बाजत है दिन-राति ।<br /> घि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
‘रहिमन’ आटा के लगे, बाजत है दिन-राति ।
घिउ शक्कर जे खात हैं , तिनकी कहा बिसाति ॥
- अर्थ
मृदंग को ही देखो। जरा-सा आटा मुँह पर लगा दिया, तो वह दिन रात बजा करता है, मौज में मस्त होकर खूब बोलता है। फिर उनकी बात क्या पूछते हो, जो रोज घी शक्कर खाया करते हैं।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख