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आनंदी जोशी (अंग्रेज़ी:Anandi joshi, जन्म: 31 मार्च, 1865, पुणे; मृत्यु: 26 फ़रवरी, 1887) पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। इनका विवाह नौ साल की अल्‍पायु में इनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था। जब 14 साल की उम्र में ये माँ बनीं और उनकी एकमात्र संतान की मृत्‍यु 10 दिनों में ही गई तो उन्‍हें बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्‍होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्‍टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी।

परिचय

डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक मराठी परिवार में 31 मार्च 1865 को कल्याण, थाने, महाराष्ट्र में हुआ था। इनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। इनका परिवार एक रूढ़िवादी परिवार था, जो केवल संस्कृत पढ़ना जानते थे। इनके पिता जमींदार थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद इनके के परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। वे किसी तरह अपना गुजर बसर कर रहे थे। ऐसे ही परिवार में जन्मी आनंदी गोपाल उर्फ यमुना की शादी नौ वर्ष की उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर से कर दी गई थी। हिंदू समाज के रिवाज के अनुसार शादी के बाद इनका नाम बदल कर आनंदी रख दिया गया और डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी यमुना से आनंदी बन गर्इं।[1]

डॉक्टर बनने का संकल्प

डॉक्टर आनंदी जोशी के पति गोपाल राव प्रगतिशील विचारधारा को अपनाने वाले व्यक्ति थे। उस दौरान शहर में शिक्षा का माहौल अच्छा था। आनंदी के पति महिलाओं के शिक्षा के हक में पहले से ही थे, लेकिन कोलकाता आकर इनकी सोच और मजबूत हो गई। दरअसल, उस दौर में ब्राह्मण समाज में केवल संस्कृत पढ़ने का चलन था, अंग्रेज़ी नहीं पढ़ी जाती थी। इसके दो कारण थे। एक तो यह उनकी मातृभाषा थी, दूसरी अंग्रेज़ों से नफरत। लेकिन गोपाल राव अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ने के शौकीन थे और वे पढ़ने के लिए अंग्रेज़ी किताबें लाया करते थे। उन्होंने एक बार देखा कि आनंदी उनकी किताबों को पढ़ रही थीं। राव ने आनंदी से पूछा कि क्या आप भी अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ने में रुचि रखती हो। आनंदी ने हां में सिर हिलाया। गोपाल के लिए यह खुशी की बात थी। उन्होंने डॉक्टर आनंदी को अंग्रेजी सिखाना शुरू कर दिया। इस दौरान आनंदी राव जोशी के आंगन में किलकारियां गूजीं। उसने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन घर में आई खुशी को 10 दिन बाद ही ग्रहण लग गया। इलाज के अभाव में आनंदी की पहली संतान की मौत हो गई। आनंदी जोशी उस समय केवल 14 वर्ष की थी। बच्चे की मौत का कारण था भारत में महिला डॉक्टरों का ना होना। उस समय तक भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं थी। बेटे की मौत आनंदी जोशी के जीवन का एक अहम मोड़ सबित हुआ। उसी क्षण उन्होंने डॉक्टर बनने का संकल्प लिया। उन्होंने मन ही मन में कहा कि अब भारत में इलाज के अभाव में किसी महिला या बच्चे की मौत नहीं होगी।

प्रथम महिला डॉक्टर

डॉक्टर आनंदी जोशी को पति राव द्वारा प्रेरित करने पर इन्होंने 1880 में रॉयल वर्ल्ड को एक पत्र लिखा, जिसमें इन्होंने मेडिसिन पढ़ने की इच्छा जताई। चुने जाने पर अमेरिकन मिशनरी द्वारा अमेरिका में आनंदी राव जोशी की मेडिकल की पढ़ाई शुरू हो गई। वहीं मिशनरी के एक सदस्य लॉर्ड ने उनके पति को अमेरिका में एक बेहतर नौकरी देने की पेशकश की और यह शर्त रखी कि वे दोनों ईसाई धर्म अपना लें, लेकिन गोपाल राव और आनंदी ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। मेडिसिन के पहले सत्र की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें दांतों के डॉक्टर की पढ़ाई के लिए चुन लिया गया, जबकि डॉक्टर आनंदी राव जोशी महिला डॉक्टर बनना चाहती थीं। उनके पति ने उन्हें समझाया और वह न्यूजर्सी के रोजैल में रहकर काम करने लगीं, लेकिन आनंदी के बार-बार बीमार रहने के कारण दंपति भारत लौट आया। वह बुखार, सिरदर्द, कमजोरी और बेहोशी की बीमारी से परेशान थीं। शायद कम उम्र में शादी और मां बनने के कारण उनकी तबियत खराब रहने लगी थी। यहां आकर भी उनकी बीमारी कम नहीं हुई। उनकी अमेरिकन मित्र थ्यूडिका कारपेंटर ने उनके लिए दवाइयां भी भेजी, लेकिन दवाई से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। 1883 में गोपाल राव जोशी ने अपना तबादला सिरमपुर करा लिया और आनंदी राव को आगे की शिक्षा के लिए दोबारा अमेरिका भेजने का फैसला किया, लेकिन इसके लिए आनंदी राव तैयार नहीं हुर्इं। पति गोपाल राव ने उन्हें बहुत समझाया कि तुम उच्च शिक्षा प्राप्त करके भारत की महिलाओं के लिए एक उदाहरण बनो, ताकि महिलाएं तुम से प्रेरित होकर उच्च शिक्षा प्राप्त करें। उनके समझाने पर आनंदी गोपाल जोशी आगे की पढ़ाई के लिए तैयार हो गर्इं।

रूढ़िवादी हिंदू समाज द्वारा विद्रोह करना

एक डॉक्टर परिवार ने आनंदी राव जोशी को सलाह दी कि Women’s Medical College of Pennsylvania में आवेदन करो। डॉक्टर दंपति के कहने पर आनंदी राव ने ऐसा ही किया और उन्हें वहां दाखिला मिल गया। डॉक्टर आनंदी राव जोशी एक बार फिर अमेरिका जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गईं, लेकिन रूढ़िवादी हिंदू समाज ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उन्हें आशंका थी कि वहां जाकर दोनों पति-पत्नी अपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपना लेंगे। जब यह बात डॉक्टर आनंदी राव को पता चली, तो उन्होंने सिरमपुर कॉलेज के हॉल में लोगों को जमा करके यह ऐलान किया कि मैं केवल डॉक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। मेरा इरादा न तो धर्म बदलने का है न वहां नौकरी करने का। मेरा मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है, क्योंकि भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं है, जिसके अभाव में असमय ही बहुत-सी महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है। श्रीमति राव के भाषण का रूढ़िवादी लोगों पर व्यापक असर हुआ और पूरे देश से उनकी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए मदद देने के लिए पेशकश की गई।

विक्टोरिया आॅफ़ इंडिया ने भी आनंदी राव को 200 रुपये की मदद दी। उस समय यह बहुत बड़ी रकम थी। डॉक्टर आनंदी राव जोशी ने कोलकाता से न्यूयॉर्क के लिए अपना सफर पानी के जहाज से शुरू किया। जून 1883 में आनंदी न्यूयॉर्क पहुंचीं, जहां उनका स्वागत उनकी दोस्त थ्यूडिका कारपेंटर ने किया। डॉक्टर आनंदी राव जोशी ने मेडिसिन के क्षेत्र में आगे की पढ़ाई आरंभ की। उस समय उनकी आयु केवल 19 वर्ष थी। उन्होंने पहले मेडिसिन में ग्रेजुएशन और फिर 11 मार्च, 1886 को अपना एमडी भी पूरा कर लिया। यह डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के लिए नहीं, बल्कि भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। जब उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया, तो क्वीन विक्टोरिया ने उन्हें बधाई संदेश भेजा था।

मृत्यु

डॉक्टर आनंदी राव जोशी 1886 के अंत में देश से लौट आईं और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसलि स्टेट आॅफ़ कोल्हापुर में एक महिला डॉक्टर के रूप में चार्ज ले लिया, लेकिन वह अधिक समय तक लोगों की सेवा नहीं कर पार्इं। डॉक्टर आनंदी राव 26 फ़रवरी, 1887 में केवल 22 वर्ष की आयु में हमेशा के लिए इस संसार से विदा हो गर्इं।

  1. डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) tarzezindagi.com। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2017।