दुनियाँ के धौखे मुवा -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 2 जून 2017 का अवतरण (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
| ||||||||||||||||||||
|
दुनियाँ के धौखे मुवा, चलै जु कुल की कांनि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! तू कुल की गौरव-वृद्धि में पड़ा रहता है। इसी कारण संसारिक भुलावे में मारा जाता है। जब तुझे लोग श्मशान में लिटा देंगे, तब किसका कुल लज्जित होगा? अर्थात् जिस कुल की मर्यादा-वृद्धि में तू पड़ा रहता है, उससे तेरा सम्बन्ध ही छूट जायगा फिर किसके कुल की प्रतिष्ठा का प्रश्न रह जायगा ?
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
दुनियाँ भाँड़ा दु:ख का -कबीर