कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:53, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।

कहानी

किसी वृक्ष पर काग और कागली रहा करते थे, उनके बच्चे उसके खोड़र में रहने वाला काला सांप खाता था। कागली पुनः गर्भवती हुई और काग से कहने लगी -- ""हे स्वामी, इस पेड़ को छोड़ो, इसमें रहने वाला काला साँप हमारे बच्चे सदा खा जाता है।

दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः।।

अर्थात् दुष्ट स्री, धूर्त मित्र, उत्तर देने वाला सेवक, सपं वाले घर में रहना, मानो साक्षात् मृत्यु ही है, इसमें संदेह नहीं है।
काग बोला -- प्यारी, डरना नहीं चाहिए, बार- बार मैंने इसका अपराध सहा है, अब फिर क्षमा नहीं कर्रूँगा। कागली बोली-- किसी प्रकार ऐसे बलवान के साथ तुम लड़ सकते हो? काग बोला -- यह शंका मत करो।

बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुध्देस्तु कुतो बलम् ?
पश्य सिंहो मदोन्मत्त: शशकेन निपातितः।

अर्थात् जिसको बुद्धि है उसको बल है और जो निर्बुद्धि है उसका बल कहाँ से आवे ? देख मद से उन्मत्त सिंह को शशक ने मार डाला।

कागली बोली -- जो करना है करो। काग बाला -- यहाँ पास ही सरोवर में राजपूत्र नित्य आ कर स्नान करता है। स्नान के समय उसके अंग से उतार कर घाट पर रखे हुए सोने के हार को चोंच में पकड़ कर इस बिल्ले में ला कर धर दीजिये। पीछे एक दिन राजपूत्र के नहाने के लिए जल में उतरने पर कागली ने वही किया। फिर सोने के हार के पीछे ढूंढ़ते हुए खोखल में राजा के सिपाही ने उस वृक्ष के बिल में काले साँप को देखा और मार डाला।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख