बासुरि गमि नारैनि गमि -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 10 फ़रवरी 2021 का अवतरण (Text replacement - "विलंब" to "विलम्ब")
| ||||||||||||||||||||
|
बासुरि गमि नारैनि गमि, नाँ सुपिनंतर गंम। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! मैं उस द्वन्द्वातीत अवस्था में स्थित हूँ जहाँ न दिन की पहुँच है, न रात की, जो स्वप्नों में भी नहीं जाना जा सकता और न जहाँ छाया है, न धूप।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख