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याद आया फिर मेरा बचपन
ब्यथा ह्रदय के सब विस्मृत कर
जब जा बैठा-गोदी पर रख सर
औ उमड़े द्रग पर प्रेम अमर

उठी हथेली आशीष भर भर
भरे नयन में वो खारा जल
सीचा मेरा सूखा मधुबन
याद आया फिर मेरा बचपन

बोल रहा था मेरा उर कल
छुप जाऊं फिर आँचल के तल
फिर निद्रा आये अमर गान सुन
याद आया फिर मेरा बचपन

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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