आदिवासी साहित्य

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आदिवासी साहित्य से तात्पर्य उस साहित्य से है, जिसमें आदिवासियों का जीवन और समाज उनके दर्शन के अनुरूप अभिव्यक्त हुआ हो। आदिवासी साहित्य को विभिन्न जगहों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

  • आदिवासी साहित्य की अवधारणा को लेकर तीन तरह के मत हैं-
  1. आदिवासी विषय पर लिखा गया साहित्य आदिवासी साहित्य है।
  2. आदिवासियों द्वारा लिखा गया साहित्य आदिवासी साहित्य है।
  3. ‘आदिवासियत’ (आदिवासी दर्शन) के तत्वों वाला साहित्य ही आदिवासी साहित्य है।
  • पहली अवधारणा गैर-आदिवासी लेखकों की है। परंतु समर्थन में कुछ आदिवासी लेखक भी हैं। जैसे- रमणिका गुप्ता, संजीव, राकेश कुमार सिंह, महुआ माजी, बजरंग तिवारी, गणेश देवी आदि गैर-आदिवासी लेखक और हरिराम मीणा, महादेव टोप्पो, आईवी हांसदा आदि आदिवासी लेखक।
  • दूसरी अवधारणा उन आदिवासी लेखकों और साहित्यकारों की है जो जन्मना और स्वानुभूति के आधार पर आदिवासियों द्वारा लिखे गए साहित्य को ही आदिवासी साहित्य मानते हैं।
  • अंतिम और तीसरी अवधारणा उन आदिवासी लेखकों की है, जो ‘आदिवासियत’ के तत्वों का निर्वाह करने वाले साहित्य को ही आदिवासी साहित्य के रूप में स्वीकार करते हैं। ऐसे लेखकों और साहित्यकारों के भारतीय आदिवासी समूह ने 14 जून-15 जून, 2014 को रांची (झारखंड) में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में इस अवधारणा को ठोस रूप में प्रस्तुत किया, जिसे ‘आदिवासी साहित्य का रांची घोषणा-पत्र’ के तौर पर जाना जा रहा है और अब जो आदिवासी साहित्य विमर्श का केन्द्रीय बिंदु बन गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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