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{वह प्रथम भारतीय शासक, जिसने रोमन मुद्रा प्रणाली के अनुरूप अपने सिक्कों का प्रसारण किया, का सम्बन्ध किस साम्राज्य से था?
 
|type="()"}
 
-[[शुंग]]
 
-हिन्द-यूनानी
 
+[[कुषाण साम्राज्य|कुषाण]]
 
-[[गुप्त साम्राज्य|गुप्त]]
 
||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|right|100px|कनिष्क का सिक्का]]कुषाण सम्राट [[कनिष्क]] [[बौद्ध धर्म]] का अनुयायी होते हुए भी अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु था। इसके सिक्कों पर पार्थियन, [[यूनानी]] एवं भारतीय [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] की आकृतियाँ मिली हैं। कनिष्क के सिक्कों पर ग्रीक अक्षर में जिन [[देवता|देवताओं]] के नाम लिखे हैं, वे हैं- 'हिरैक्लीज', 'सिरापीज', ग्रीक नामधारी [[सूर्य देव|सूर्य]] और [[चन्द्र देव|चन्द्र]], हेलिओस और सेलिनी, मीइरो (सूर्य), अर्थों ([[अग्नि देव|अग्नि]]), ननाइया, [[शिव]] आदि। सिक्कों पर [[महात्मा बुद्ध]] तथा भारतीय देवी-देवताओं की आकृतियाँ यूनानी शैली में उकेरी गई हैं। [[कनिष्क]] के [[तांबा|तांबे]] के सिक्कों पर उसे 'बलिवेदी' पर बलिदान करते हुए दर्शाया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुषाण साम्राज्य]]
 
 
{[[तमिलनाडु|तमिल]] राष्ट्र में [[दुर्गा]] का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है; वे किस [[तत्व]] की तमिल देवी थीं?
 
|type="()"}
 
-मातृत्व
 
-प्रकृति और उर्वरकता
 
+युद्ध और विजय
 
-[[पृथ्वी]]
 
 
{[[ऋग्वेद]] में जिस अपराध का सबसे अधिक उल्लेख किया गया है, वह है-
 
|type="()"}
 
-हत्या
 
-अपहरण
 
+पशुचोरी
 
-लूट और राहजनी
 
||[[चित्र:Rigveda.jpg|right|100px|ऋग्वेद का आवरण पृष्ठ]][[ऋग्वेद]] सिर्फ़ [[भारत]] की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम रचना है। इसकी तिथि 1500 से 1000 ई. पू. मानी जाती है। सम्भवतः इसकी रचना [[सप्त सैंधव]] प्रदेश में हुयी थी। ऋग्वेद और ईरानी [[ग्रन्थ]] 'जेंद अवेस्ता' में समानता पाई जाती है। इस ग्रन्थ के अधिकांश भाग में देवताओं की स्तुतिपरक ऋचाएँ हैं, यद्यपि उनमें ठोस ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है, फिर भी इसके कुछ [[मन्त्र]] ठोस ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध कराते हैं, जैसे- 'दाशराज्ञ युद्ध' जो [[भरत (क़बीला)|भरत कबीले]] के राजा [[सुदास]] एवं पुरू कबीले के मध्य हुआ था, का वर्णन किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]]
 
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक सिक्का नहीं था?
 
|type="()"}
 
-मुजफ्फरी
 
-मुहर
 
-आना
 
+दो दामी
 
 
 
{निम्नलिखित में से कौन एक समाज सुधार आंदोलन से जुड़ा हुआ नहीं था?
 
{निम्नलिखित में से कौन एक समाज सुधार आंदोलन से जुड़ा हुआ नहीं था?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
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-[[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]]
 
-[[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]]
 
+[[रमेश चन्द्र दत्त]]
 
+[[रमेश चन्द्र दत्त]]
||रमेश चन्द्र दत्त धन के बहिर्गमन की विचारधारा के प्रवर्तक, मशहूर लेखक तथा महान शिक्षाशास्त्री थे। वर्ष [[1899]] ई. में '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के '[[कांग्रेस अधिवेशन लखनऊ|लखनऊ अधिवेशन]]' की अध्यक्षता इन्होंने की थी। इनकी रचनाओं में 'ब्रिटिश भारत का आर्थिक इतिहास', 'विक्टोरिया युग में भारत' और 'प्राचीन भारतीय सभ्यता का इतिहास' आदि शामिल हैं। इन्होंने सिविल सेवा के भारतीयकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रमेश चन्द्र दत्त]]
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||रमेश चन्द्र दत्त धन के बहिर्गमन की विचारधारा के प्रवर्तक, मशहूर लेखक तथा महान् शिक्षाशास्त्री थे। वर्ष [[1899]] ई. में '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के '[[कांग्रेस अधिवेशन लखनऊ|लखनऊ अधिवेशन]]' की अध्यक्षता इन्होंने की थी। इनकी रचनाओं में 'ब्रिटिश भारत का आर्थिक इतिहास', 'विक्टोरिया युग में भारत' और 'प्राचीन भारतीय सभ्यता का इतिहास' आदि शामिल हैं। इन्होंने सिविल सेवा के भारतीयकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[रमेश चन्द्र दत्त]]
  
 
{निम्नांकित [[संस्कार|संस्कारों]] में से किसका शिक्षा की समाप्ति से सम्बन्ध है?
 
{निम्नांकित [[संस्कार|संस्कारों]] में से किसका शिक्षा की समाप्ति से सम्बन्ध है?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-[[चूड़ाकरण संस्कार|ड़ाकरण]]
+
-[[चूड़ाकरण संस्कार|चूड़ाकरण]]
 
-[[उपनयन संस्कार|उपनयन]]
 
-[[उपनयन संस्कार|उपनयन]]
 
+[[समावर्तन संस्कार|समावर्तन]]
 
+[[समावर्तन संस्कार|समावर्तन]]
 
-[[सीमन्तोन्नयन संस्कार|सीमन्तोन्नयन]]
 
-[[सीमन्तोन्नयन संस्कार|सीमन्तोन्नयन]]
||[[चित्र:Vedic-Tradition-1.jpg|right|120px|वेद-वेदांग का अध्ययन]][[हिन्दू धर्म]] में मान्य [[सोलह संस्कार|सोलह संस्कारों]] में '[[समावर्तन संस्कार]]' द्वादश संस्कार है। यह संस्कार विद्याध्ययन पूर्ण हो जाने पर किया जाता है। पाँच वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्यपूर्वज गुरुकुल में रहकर गुरु से समस्त [[वेद]]-[[वेदांग|वेदांगों]] की शिक्षा प्राप्त करके, शिष्य जब गुरु की कसौटी पर खरा उतर जाता , तब गुरु उसकी शिक्षा पूर्ण होने के प्रतीकस्वरूप उसका 'समावर्तन-संस्कार' करते थे। यह [[संस्कार]] एक या अनेक शिष्यों का एक साथ भी होता था। वर्तमान युग में भी यह संस्कार विश्वविद्यालयों में होता है, किंतु उसका रूप व उद्देश्य बदल गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समावर्तन संस्कार]]
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||[[चित्र:Vedic-Tradition-1.jpg|right|120px|वेद-वेदांग का अध्ययन]][[हिन्दू धर्म]] में मान्य [[सोलह संस्कार|सोलह संस्कारों]] में '[[समावर्तन संस्कार]]' द्वादश संस्कार है। यह संस्कार विद्याध्ययन पूर्ण हो जाने पर किया जाता है। पाँच वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्यपूर्वज गुरुकुल में रहकर गुरु से समस्त [[वेद]]-[[वेदांग|वेदांगों]] की शिक्षा प्राप्त करके, शिष्य जब गुरु की कसौटी पर खरा उतर जाता था, तब गुरु उसकी शिक्षा पूर्ण होने के प्रतीकस्वरूप उसका 'समावर्तन-संस्कार' करते थे। यह [[संस्कार]] एक या अनेक शिष्यों का एक साथ भी होता था। वर्तमान युग में भी यह संस्कार विश्वविद्यालयों में होता है, किंतु उसका रूप व उद्देश्य बदल गया है। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[समावर्तन संस्कार]]
  
 
{निम्नलिखित में से किसने [[भारत]] के भागों से कर संग्रह किया?
 
{निम्नलिखित में से किसने [[भारत]] के भागों से कर संग्रह किया?
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+डेरियस
 
+डेरियस
 
-कैम्बिसेस द्वितीय
 
-कैम्बिसेस द्वितीय
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही सुमेलित नहीं है?
 
|type="()"}
 
+[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] - [[इंडिया टुडे]]
 
-[[जवाहर लाल नेहरू]] - डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया
 
-[[सुभाष चन्द्र बोस]]- फ़ाइट फ़ॉर फ़्रीडम
 
-[[पट्टाभि सीतारमैया]]- हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन नेशनल कांग्रेस
 
  
 
{किसके [[अभिलेख|अभिलेखों]] से 'जल कर' का साक्ष्य प्राप्त होता है?
 
{किसके [[अभिलेख|अभिलेखों]] से 'जल कर' का साक्ष्य प्राप्त होता है?
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-[[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहार]]
 
-[[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहार]]
 
-[[गहड़वाल वंश|गहड़वाल]]
 
-[[गहड़वाल वंश|गहड़वाल]]
||[[चित्र:Dashavatara-Temple-Deogarh.jpg|right|120px|गुप्तकालीन दशावतार मन्दिर]]'गुप्त साम्राज्य' का उदय तीसरी सदी के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। [[गुप्त वंश|गुप्त]] [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। गुप्त सम्राटों के समय में गणतंत्रीय राजव्यवस्था का ह्रास हुआ। गुप्त प्रशासन राजतंत्रात्मक व्यवस्था पर आधारित था। देवत्व का सिद्वान्त गुप्तकालीन शासकों में प्रचलित था। राजपद वंशानुगत सिद्धान्त पर चलता था। राजा अपने बड़े पुत्र को युवराज घोषित करता था। अपने उत्कर्ष के समय में [[गुप्त साम्राज्य]] उत्तर में [[हिमालय]] से लेकर दक्षिण में [[विंध्य पर्वत]] तक एवं पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]] से लेकर पश्चिम में [[सौराष्ट्र]] तक फैला हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]
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||[[चित्र:Dashavatara-Temple-Deogarh.jpg|right|120px|गुप्तकालीन दशावतार मन्दिर]]'गुप्त साम्राज्य' का उदय तीसरी सदी के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। [[गुप्त वंश|गुप्त]] [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। गुप्त सम्राटों के समय में गणतंत्रीय राजव्यवस्था का ह्रास हुआ। गुप्त प्रशासन राजतंत्रात्मक व्यवस्था पर आधारित था। देवत्व का सिद्धान्त गुप्तकालीन शासकों में प्रचलित था। राजपद वंशानुगत सिद्धान्त पर चलता था। राजा अपने बड़े पुत्र को युवराज घोषित करता था। अपने उत्कर्ष के समय में [[गुप्त साम्राज्य]] उत्तर में [[हिमालय]] से लेकर दक्षिण में [[विंध्य पर्वत]] तक एवं पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]] से लेकर पश्चिम में [[सौराष्ट्र]] तक फैला हुआ था।अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[गुप्त साम्राज्य]]
  
 
{निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध [[वैदिक काल|वैदिक युग]] से नहीं है?
 
{निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध [[वैदिक काल|वैदिक युग]] से नहीं है?
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+धर्मासन
 
+धर्मासन
 
-विद्थ
 
-विद्थ
 
{निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक सही सुमेलित नहीं है?
 
|type="()"}
 
+[[चौसा का युद्ध]] - [[जून]], 1535 ई.
 
-[[शेरशाह]] की मृत्यु - [[मई]], 1545 ई.
 
-[[बैरम ख़ाँ]] की प्रतिशासन व्यवस्था - 1556 से 1560 ई.
 
-[[पुरन्दर की सन्धि]] - 1665 ई.
 
||[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|right|80px|शेरशाह]]'चौसा का युद्ध' [[भारतीय इतिहास]] में लड़े गये महत्त्वपूर्ण युद्धों में से एक है। यह युद्ध [[26 जून]], 1539 ई. को [[मुग़ल]] बादशाह [[बाबर]] के पुत्र [[हुमायूँ]] एवं शेर ख़ाँ ([[शेरशाह]]) की सेनाओं के मध्य [[गंगा नदी]] के उत्तरी तट पर स्थित '[[चौसा]]' नामक स्थान पर लड़ा गया था। चौसा का यह महत्त्वपूर्ण युद्ध हुमायूँ अपनी कुछ ग़लतियों के कारण हार गया। युद्ध में मुग़ल सेना की काफ़ी तबाही हुई और उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चौसा का युद्ध]]
 
 
{प्रथम [[मुग़ल]] सम्राट [[बाबर]] द्वारा जो सूफ़ी सिलसिला [[भारत]] में लोकप्रिय हुआ, वह था-
 
|type="()"}
 
+[[नक़्शबन्दिया]]
 
-[[कदीरिया सिलसिला|कदीरिया]]
 
-[[सुहरावर्दी]]
 
-[[फ़िरदौसी सिलसिला|फ़िरदौसी]]
 
||नक़्शबन्दिया [[भारत]], [[बांग्लादेश]], [[पाकिस्तान]], [[चीन]], मध्य एशियाई गणराज्यों एवं [[मलेशिया]] में पाई जाने वाली [[मुस्लिम]] [[सूफ़ी सम्प्रदाय|सूफ़ियों]] की रूढ़िवादी बिरादरी है। यह बिरादरी अपनी वंशावली को पहले ख़लीफ़ा अबुबक्र से जोड़ती है। बुख़ारा, [[तुर्कमेनिस्तान]] में इस संप्रदाय के संस्थापक बहाउद्दिन (मृत्यु 1384) को अन-नक़्शबंद (चित्रकार) कहा जाता था, क्योंकि मान्यता के अनुसार, उनके द्वारा निर्धारित अनुष्ठान से [[हृदय]] पर ख़ुदा की छाप पड़ती थी और इसलिए उनके अनुयायी नक़्शबन्दिया कहलाने लगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नक़्शबन्दिया]]
 
 
{[[एनी बेसेन्ट|श्रीमती एनी बेसेन्ट]] और [[बाल गंगाधर तिलक]] दोनों ने अलग-अलग '[[इंडियन होमरूल लीग|होमरूल लीग]]' स्थापित कीं, किंतु दोनों लीग किस वर्ष में एक साथ संयुक्त हो गईं?
 
|type="()"}
 
-[[1914]]
 
-[[1915]]
 
+[[1916]]
 
-[[1918]]
 
||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg|80px|right|बाल गंगाधर तिलक]]वर्ष 1915-1916 में दो होमरूल लीगों की स्थापना हुई। एक के नेता [[लोकमान्य तिलक]] थे और दूसरी का नेतृत्व [[एनी बेसेंट]], और '[[एस. सुब्रह्मण्य अय्यर]]' ने किया। दोनों होमरूल लीगों ने युद्ध के बाद [[भारत]] को होमरूल या स्वराज्य देने देने की मांग के पक्ष में सारे भारत में जोरदार प्रचार किया। इसी आन्दोलन के दौरान लोकमान्य तिलक ने यह लोकप्रिय नारा दिया- '''स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा'''। दोनों लीगों ने तेज़ी से प्रगति की और स्वराज्य का नारा सारे भारत में गूँज उठा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इंडियन होमरूल लीग|होमरूल लीग]]
 
 
{'खम्स' से क्या अभिप्राय है-
 
|type="()"}
 
-[[मुस्लिम|मुस्लिमों]] से लिया जाने वाला एक कर
 
-[[हिन्दू|हिन्दुओं]] से लिया जाने वाला भूमि कर
 
-मुस्लिमों द्वारा दिया जाने वाला भूमि कर
 
+युद्ध में लूटे गए धन का 1/5वाँ राज्य भाग
 
 
{1605 ई. में किन लोगों ने [[मछलीपट्टनम]] में अपना पहला कारख़ाना स्थापित किया?
 
|type="()"}
 
+[[डच]]
 
-[[अंग्रेज़]]
 
-[[फ़्राँसीसी]]
 
-[[पुर्तग़ाली]]
 
||डचों ने [[भारत]] में अपना पहला कारख़ाना 1605 ई. में '[[मछलीपट्टनम]]' में खोला। मछलीपट्टनम से [[डच]] लोग 'नील' का निर्यात करते थे। ये लोग भारत से मुख्यतः मसालों, नील, कच्चे रेशम, शीशा, [[चावल]] व अफीम का व्यापार करते थे। डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों को अधिक महत्व दिया। ये कपड़े कोरोमण्डल तट, [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] और [[गुजरात]] से निर्यात किए जाते थे। पुलीकट में निर्मित डच फ़ैक्ट्री का नाम 'गोल्ड्रिया' रखा गया था। गोल्ड्रिया भारत में डचों की एकमात्र क़िलाबन्द बस्ती थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डच]]
 
 
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{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
 
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सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान


इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश

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1 निम्नलिखित में से कौन एक समाज सुधार आंदोलन से जुड़ा हुआ नहीं था?

ब्रह्मरामजी मालाबारी
मोहनदास करमचंद गाँधी
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
रमेश चन्द्र दत्त

2 निम्नांकित संस्कारों में से किसका शिक्षा की समाप्ति से सम्बन्ध है?

चूड़ाकरण
उपनयन
समावर्तन
सीमन्तोन्नयन

3 निम्नलिखित में से किसने भारत के भागों से कर संग्रह किया?

साइरस
कैम्बिसेस प्रथम
डेरियस
कैम्बिसेस द्वितीय

4 किसके अभिलेखों से 'जल कर' का साक्ष्य प्राप्त होता है?

गुप्त
वाकाटक
प्रतिहार
गहड़वाल

5 निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध वैदिक युग से नहीं है?

सभा
समिति
धर्मासन
विद्थ

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