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उपेन्द्रनाथ अश्क

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उपेन्द्र नाथ अश्क (जन्म- 14 दिसम्बर, 1910, जालंधर, पंजाब, भारत; मृत्यु- 19 जनवरी, 1996, भारत) उपन्यासकार, निबन्धकार, लेखक, कहानीकार हैं। अश्क जी ने आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान अथवा कोरी रोमानी थीं।

जीवन परिचय

उपेन्द्र नाथ अश्क जी का जन्म पंजाब प्रान्त के जालंधर नामक नगर में 14 दिसम्बर, 1910 को एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अश्क जी छ: भाइयों में दूसरे हैं। इनके पिता पण्डित माधोराम स्टेशन मास्टर थे। जालंधर से मैट्रिक और फिर वहीं से डी. ए. वी. कॉलेज से इन्होंने 1931 में बी.ए. की परीक्षा पास की। बचपन से ही अश्क अध्यापक बनने, लेखक और सम्पादक बनने, वक्ता और वकील बनने, अभिनेता और डायरेक्टर बनने और थियेटर अथवा फ़िल्म में जाने के अनेक सपने देखा करते थे। बी.ए. पास करते ही ये अपने ही स्कूल में अध्यापक हो गये। पर 1933 में उसे छोड़ दिया और जीविकोपार्जन हेतु साप्ताहिक पत्र 'भूचाल' का सम्पादन किया और एक अन्य साप्ताहिक 'गुरु घण्टाल' के लिए प्रति सप्ताह एक रुपये में एक कहानी लिखकर दी। 1934 में अचानक सब छोड़ लॉ कालेज में प्रवेश ले लिया और 1936 में लॉ पास किया। उसी वर्ष लम्बी बीमारी और प्रथम पत्नी के देहान्त के बाद इनके जीवन में एक अपूर्व मोड़ आया। 1936 के बाद अश्क के लेखक व्यक्तित्व का अति उर्वर युग प्रारम्भ हुआ। अश्क ने इससे पहले भी बहुत कुछ लिखा था। उर्दू में 'नव-रत्न' और 'औरत की फ़ितरत' उनके दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। प्रथम हिन्दी संग्रह 'जुदाई की शाम का गीत' (1933) की अधिकांश कहानियाँ उर्दू में छप चुकी थीं। जैसा कि अश्क जी ने स्वंय लिखा है, '1936 के पहले की ये कृतियाँ उतनी अच्छी नहीं बनी। अनुभूति का स्पर्श उन्हें कम मिला था। 1936 के बाद अश्क जी की कृतियों में सुख-दु:खमय जीवन के व्यक्तिगत अनुभव से अदभुत रंग भर गया। 'उर्दू काव्य की एक नई धारा' (आलोचक ग्रन्थ), 'जय पराजय' (ऐतिहासिक नाटक), 'पापी', 'वेश्या', 'अधिकार का रक्षक', 'लक्ष्मी का स्वागत', 'जोंक', 'पहेली' और 'आपस का समझौता' (एकांकी), 'स्वर्ग की झलक' (सामाजिक नाटक): कहानी संग्रह 'पिंजरा' की सभी कहानियाँ, 'छींटें' की कुछ कहानियाँ और 'प्रात प्रदीप' (कविता संग्रह) की सभी कविताएँ उनकी पत्नी की मृत्यु (1936) के दो ढाई साल के ही अल्प समय में लिखी गई। 1941 में इन्होंने दूसरा विवाह किया। उसी वर्ष ऑल इण्डिया रेडियों में नौकरी की। 1945 के दिसम्बर में बम्बई के फ़िल्म जगत् के निमंत्रण को स्वीकार कर वहाँ फ़िल्मों में लेखन का कार्य करने लगे। 1947-48 में निरन्तर अस्वस्थ रहे। पर यह उनके साहित्यिक सर्जन की उर्वरता का स्वर्ण-समय था। 1948 से 1953 तक अश्क जी दम्पत्ति (पत्नी कौशल्या अश्क) के जीवन में संघर्ष के वर्ष रहे। पर इन्हीं दिनों अश्क यक्ष्मा के चंगुल से बचकर इलाहाबाद आये, नीलाभ प्रकाशन गृह की व्यवस्था की, जिससे उनके सम्पूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व को रचना और प्रकाशन दोनों दृष्टि से सहज पथ मिला।

कृतियाँ

अश्क जी ने अपनी कहानी, उपन्यास, निबन्ध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया है।

नाटक

नाटक के क्षेत्र में 1937 से लेकर उन्होंने जितनी कृतियाँ सम्पूर्ण नाटक और एकांकी के रूप में लिखी हैं, सब प्राय: अपने लेखनकाल के उपरान्त उसी वर्ष क्रम से प्रकाशित हुई हैं।

नाटक
सन कृति
1937 'जय पराजय'
1938 'एकांकी-'पापी'
1938 'वेश्या
1938 'लक्ष्मी का स्वागत'
1938 'अधिकार का रक्षक'
1939 'स्वर्ग की झलक'
1939 'जोंक'
1939 'आपस का समझौता'
1939 'पहेली'
1939 देवताओं की छाया में
1940 'विवाह के दिन'
1940 'छठा बेटा'
1941 'नया पुराना'
1941 'चमत्कार'
1941 'खिड़की'
1941 'सूखी डाली'
1942 बहनें
1942 कामदा
1942 मेमूना
1942 चिलमन
1942 चुम्बक
1943 'तौलिये'
1944 पक्का गाना
1946 'कइसा साब कइसी आया'
1947 'तूफ़ान से पहले'
1948 'चरवाहे'
1950 'आदि मार्ग'
1950 'बतसिया'
1950 'कस्बे क क्रिकेट क्लब का उदघाटन'
1950 'क़ैद और उड़ान'
1951 'मस्केबाज़ों का स्वर्ग'
1951 'पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ'
1953 'पैंतरे'
1954 'अलग-अलग रास्ते'
1954 'आदर्श और यथार्थ'
1955 'अंजोदीदी'
1956 'अन्धी गली के आठ एकांकी'
1954-1959 के एकांकी 'साहब को जुकाम है'
1961 'भँवर'

उपन्यास- 'सितारों के खेल' (1940), 'गिरती दीवार' (1947), 'गर्म राख' (1952), 'बड़ी-बड़ी आँखें' (1945) तथा 'पत्थर अलपत्थर' (1957), 'शहर में घूमता आईना' (1963), 'एक नन्हीं किंदील' (1969), कहानियाँ- 'अंकुर', 'नासुर', 'चट्टान', 'डाची', 'पिंजरा', 'गोखरू', बैगन का पौधा', 'मेमने', 'दालिये', 'काले साहब', 'बच्चे', 'उबाल', 'केप्टन रशीद' आदि अश्क जी की प्रतिनिधि कहानियों के नमूने सहित कुल डेढ़-दो सौ कहानियों में अश्क जी का कहानिकार व्यक्तित्व सफलता से व्यक्त हुआ है। काव्य ग्रन्थ- 'दीप जलेगा' (1950), 'चाँदनी रात और अजगर' (1952), 'बरगर की बेटी' (1949)। संस्मरण- 'मण्टो मेरा दुश्मन' (1956), 'निबन्ध, लेख, पत्र, डायरी और विचार ग्रन्थ-'ज़्यादा अपनी कम परायी' (1959), 'रेखाएँ और चित्र' (1955)। अनुवाद- 'रंग साज' (1958)-रूस के प्रसिद्ध कहानिकार 'ऐंटन चेखव' के लघु उपन्यास का अनुवाद, 'ये आदमी ये चूहे' (1950)-स्टीन बैंक के प्रसिद्ध उपन्यास 'आव माइस एण्ड मैन' का अनुवाद, 'हिज एक्सेलेन्सी' (1959)-अमर कथाकार दास्तवस्की के लघु उपन्यास 'डर्टी स्टोरी' का हिन्दी अनुवाद। सम्पादन-'प्रतिनिधि एकांकी' (1950), 'रंग एकांकी' (1956), 'संकेत' (1953)। सृजन की इतनी क्षमता से सहज ही अश्क जी की लेखन शक्ति और भाव जगत की समृद्धता का अनुमान लगाया जा सकता है। उपन्यास, नाटक, कहानी और काव्य क्षेत्र में अश्क जी की उपलब्धि मुख्यत: नाटक, उपन्यास और कहानी में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 'गिरती दीवार' और 'गर्म राख' हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में यथार्थवादी परम्परा के उपन्यास हैं। सम्पूर्ण नाटकों में 'छठा बेटा', 'अंजोदीदी' और 'क़ैद' अश्क जी की नाट्यकला के सफलतम उदाहरण हैं। 'छठा बेटा' के शिल्प में हास्य और व्यंग, 'अंजोदीदी' के स्थापत्य में व्यावहारिक रंग मंच के सफलतम तत्व और शिल्प का अनूठापन तथा 'क़ैद' में स्त्री का हृदयस्पर्शी चरित्र चित्रण तथा उसके रचना विधान में आधुनिक नाट्यतत्व की जैसी अभिव्यक्ति हुई है, उससे अश्क जी की नाट्य कला और रंग मंच के परिचय का संकेत मिलता है। एकांकी नाटकों में 'भँवर', 'चरवाहे', 'चिलमन', 'तौलिए' और 'सूखी डाली' अश्क जी की एकांकी कला के सुन्दरतम उदाहरण हैं। सभी एकांकी रंग मंच के स्वायत्त अधिकारी हैं। अश्क जी की कहानियाँ प्रेमचन्द के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद अथवा विकास क्रम से प्राप्त विशुद्ध यथार्थवादी परम्परा की हैं। कहानी कला और रचना शिल्प स्पष्ट कथा तत्व के सहित मूलत: चरित्र के केन्द्र बिन्दू से पूर्ण होता है। अश्क जी के समस्त चरित्र उपन्यास, नाटक अथवा कहानी किसी भी साहित्य प्रकार में जो आये हैं, वे सर्वथा यथार्थ हैं। उनसे सामाजिक और वैयक्तिक जीवन की समस्त समस्याओं-राग द्वेष का प्रतिनिधित्व होता है। (सहायक ग्रन्थ-1. ज़्यादा अपनी कम परायी: उपेन्द्र नाथ 'अश्क': 2. नाटककार 'अश्क': नीलाभ प्रकाशन)।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ