ऐसे ही उमर गई -आदित्य चौधरी
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वो कहाँ गई किधर गई
क्यूँ एक गुमनाम मौत मर गई
कितनी चुलबुली थी
कुछ भी कर लेती थी
भाई ने कहा तो...
समाज से डर गई
पढ़ने की चाह थी
खुली राह थी
पिता ने भेजा तो
पति के घर गई
कुछ कर दिखाना था
बदला ज़माना था
पति ने चाहा तो
आग से गुज़र गई
उम्र ढलने लगी
बाहर निकलने लगी
बेटे ने टोका तो
बंधन में घिर गई
अब क्या बताना है
क़िस्सा पुराना है
माँ बहन बेटियों की तो
ऐसे ही उमर गई
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