"काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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पंडित जी जूतों के मामले में काफ़ी प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण रखते थे। विभिन्न मौसमों का सामना करते-करते जूतों का भार और आकार किसी भी जीव-वैज्ञानिक के लिए वैसी ही चुनौती बन सकता था जैसी कि उसे हज़ारों वर्ष पहले लुप्त हो चुके भारी भरकम आदि मानव 'नीएन्डरटल' के जूते कहीं खुदाई में मिल जाने पर मिलती। | पंडित जी जूतों के मामले में काफ़ी प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण रखते थे। विभिन्न मौसमों का सामना करते-करते जूतों का भार और आकार किसी भी जीव-वैज्ञानिक के लिए वैसी ही चुनौती बन सकता था जैसी कि उसे हज़ारों वर्ष पहले लुप्त हो चुके भारी भरकम आदि मानव 'नीएन्डरटल' के जूते कहीं खुदाई में मिल जाने पर मिलती। | ||
"पंडिज्जी धीरे...! पंडिज्जी धीरे...!" जूते के प्रत्येक प्रहार पर छोटे की कराह निकल जाती। साथ ही छोटे के सिर पर जूता पड़ते ही पहलवान की आँखों में तरह-तरह के चमकीले रंगों की रोशनी डिस्को लाइट जैसी भी दिख जाती। | "पंडिज्जी धीरे...! पंडिज्जी धीरे...!" जूते के प्रत्येक प्रहार पर छोटे की कराह निकल जाती। साथ ही छोटे के सिर पर जूता पड़ते ही पहलवान की आँखों में तरह-तरह के चमकीले रंगों की रोशनी डिस्को लाइट जैसी भी दिख जाती। | ||
− | बीस जूते खाकर छोटे बोला "पंडिज्जी रुक जाओ, जूतों से अच्छी तो प्याज़ पड़ रही थी। मैं प्याज़ ही खाऊँगा।" प्याज़ खाने और जूते खाने का सिलसिला काफ़ी देर चलता रहा। कुल-मिलाकर हुआ ये कि छोटे ने अस्सी प्याज़ | + | बीस जूते खाकर छोटे बोला "पंडिज्जी रुक जाओ, जूतों से अच्छी तो प्याज़ पड़ रही थी। मैं प्याज़ ही खाऊँगा।" प्याज़ खाने और जूते खाने का सिलसिला काफ़ी देर चलता रहा। कुल-मिलाकर हुआ ये कि छोटे ने अस्सी प्याज़ ख़ाली और जूते पूरे सौ पड़े और एक रुपया भी इनाम मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। |
दरअसल छोटे पहलवान की असमंजस वाली मन: स्थिति हम में से बहुतों के साथ घटती रहती है। अपनी वर्तमान स्थिति, नौकरी, पढ़ाई, स्थान, गृहस्थी, जीवन साथी आदि जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर हम असंतुष्ट रहते हैं और जिनका विश्लेषण और मूल्यांकन भी नहीं करना चाहते। परिवर्तन-शीलता मनुष्य का सहज स्वभाव है, इसलिए किसी भी स्थान, व्यक्ति या कार्य से ऊब हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और यही प्रक्रिया हमारी असंतुष्टि का कारण बनती है। | दरअसल छोटे पहलवान की असमंजस वाली मन: स्थिति हम में से बहुतों के साथ घटती रहती है। अपनी वर्तमान स्थिति, नौकरी, पढ़ाई, स्थान, गृहस्थी, जीवन साथी आदि जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर हम असंतुष्ट रहते हैं और जिनका विश्लेषण और मूल्यांकन भी नहीं करना चाहते। परिवर्तन-शीलता मनुष्य का सहज स्वभाव है, इसलिए किसी भी स्थान, व्यक्ति या कार्य से ऊब हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और यही प्रक्रिया हमारी असंतुष्टि का कारण बनती है। | ||
मनुष्य के इस स्वभाव पर शोध होते रहते हैं, जैसे कि लगातार इक्कीस मिनट तक कोई एक ही चीज़ को सुनते या देखते रहने से हमारा ध्यान उसकी ओर से हटने लगता है। | मनुष्य के इस स्वभाव पर शोध होते रहते हैं, जैसे कि लगातार इक्कीस मिनट तक कोई एक ही चीज़ को सुनते या देखते रहने से हमारा ध्यान उसकी ओर से हटने लगता है। |
12:28, 14 मई 2013 का अवतरण
काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी "ये प्याज़ कमबख़्त ऐसी चीज़ है जो ज़्यादा नहीं खाई जा सकती... और हम तो भैया प्याज़ का एक टुकड़ा भी नहीं खा सकते !" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ