कोरोना विषाणु

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 4 मई 2021 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Disamb2.jpg कोरोना एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कोरोना (बहुविकल्पी)
कोरोना विषाणु
कोरोना विषाणु
अधिजगत वायरस (Virus)
जगत राइबोविरिया (Riboviria)
संघ अनिश्चित
गण नीडोविरालीस (Nidovirales)
कुल कोरोनाविरिडाए (Coronaviridae)
उपकुल ऑर्थोकोरोनाविरिनाए (Orthocoronavirinae)
वंश अल्फ़ाकोरोनावायरस (Alfacoronavirus), बेटाकोरोनावायरस (Betacoronavirus)

गामाकोरोनावायरस (Gammacoronavirus), डेल्टाकोरोनावायरस (Deltacoronavirus)

अन्य जानकारी कोरोना वायरस तैलीय लिपिड के बुलबुले के अंदर होता है। इस बुलबुले के चारों तरफ प्रोटीन और लिपिड्स की परत होती है। इसी परत से प्रोटीन के कांटे निकले होते हैं। कोरोना वायरस नाक, मुंह या आंखों के जरिए शरीर में घुसता है।

कोरोना विषाणु (अंग्रेज़ी: Corona virus) कई प्रकार के विषाणुओं का एक समूह है, जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग के कारण हैं। यह आर.एन.ए. विषाणु होते हैं। मानव में यह श्वास तंत्र संक्रमण का कारण बनते हैं, जो अधिकांशत: कम घातक लेकिन कभी-कभी जानलेवा सिद्ध होते हैं। गाय और सूअर में कोरोना विषाणु अतिसार और मुर्गियों में ऊपरी श्वास तंत्र के रोग के कारण बनते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका (वैक्सीन) या एंटीवायरल अभी उपलब्ध नहीं है। साबुन से हाथ धोना ही बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है, क्योंकि कोरोना वायरस की बाहरी परत प्रोटीन या तैलीय लिपिड से बनी होती है, जिसे साबुन का पानी तोड़ देता है। इसके बाद वायरस का स्ट्रेन कमजोर पड़ जाता है। चीन के वूहान शहर से उत्पन्न होने वाला '2019 नोवेल कोरोना विषाणु' इसी समूह के वायरसों का एक उदहारण है, जिसका संक्रमण 2019-2020 से बड़ी ही तेज़ी से पूरे में फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 'कोविड-19' (COVID-19) नाम दिया है।

कोरोना विषाणु परिवार

कोरोना विषाणु समय-समय पर मानव आबादी में फैलते रहे हैं और वयस्कों और बच्चों में सांस लेने में संक्रमण का कारण बनते हैं। ये मुख्य रूप से सर्दियों और शुरुआती वसंत ऋतु में ही ज्यादा ताकतवर होते हैं। अभी तक कोरोना विषाणु परिवार के सात विषाणुओं का पता लगाया गया है, जिनका विवरण निम्न हैं-

एचसीओवी-229-ई

मानव कोरोना वायरस 229-ई (एचसीओवी-229-ई) कोरोना विषाणु की एक प्रजाति है, जो मनुष्यों और चमगादड़ों को संक्रमित करती है। यह संक्रामक वायरस एक सिंगल-स्ट्रांडेड आर.एन.ए. वायरस है, जो एपीएन रिसेप्टर के जरिये अपने मनुष्यों की कोशिकाओं में प्रवेश करता है। एचसीओवी-229-ई छोटी-छोटी उल्टी और श्वसन के माध्यम से प्रसारित होता है। इसके लक्षणों में सर्दी-जुकाम से लेकर तेज बुखार जैसे कि निमोनिया और ब्रोन्कोलाइटिस शामिल हैं।[1]

एचसीओवी-एनएल-63

एचसीओवी-एनएल-63 अल्फा कोरोना वायरस है। इसकी पहचान 2004 के अंत में नीदरलैंड के ब्रोंकोलाइटिस वाले सात महीने के बच्चे में की गई थी। बाद में दुनिया में कई बीमारियों के साथ इसका जुड़ाव सामने आया है। इन बीमारियों में श्वांस नलिका के संक्रमण, क्रुप और ब्रोन्कोलाइटिस शामिल हैं। विषाणु मुख्य रूप से छोटे बच्चों, बुजुर्गों और तीव्र श्वसन संबंधी बीमारी के रोगियों में पाया जाता है। एम्स्टर्डम में एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 4.7% आम श्वसन रोगों में एचसीओवी-एनएल-63 की उपस्थिति है।

एचसीओवी-ओसी-43

एचसीओवी-229-ई के साथ-साथ, एचसीओवी-ओसी-43 भी एक सामान्य सर्दी का कारक विषाणु है। यह विषाणु शिशुओं में निमोनिया सहित, श्वसन नलिका संक्रमण पनपाता है। बुजुर्ग और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्तियों जैसे कि कीमोथेरेपी से गुजरने वाले और एचआईवी-एड्स से पीड़ित लोग भी इसके ज्यादा शिकार होते हैं। सर्दी के मौसम में जब जुखाम होता है तो यह इसी विषाणु की बदौलत है।

एचसीओवी-एचकेयू-1

एचसीओवी-एचकेयू-1 को पहली बार जनवरी, 2005 में हांगकांग के एक 71 वर्षीय व्यक्ति में पहचाना गया था, जो कि तीव्र श्वसन समस्या से जूझ रहा था। उसमें रेडियोलॉजिकल रूप से द्विपक्षीय निमोनिया की पुष्टि की गई थी। उस दौरान यह आदमी चीन के शेनझेन से लौटा था।

सार्स

कोरोना वायरस के परिवार का एक पूर्वज वायरस सार्स (सीवियर एक्यूट रिस्पिरेटरी सिंड्रोम) सबसे पहले 2003 में चीन में पाया गया था। यह चमगादड़ों से इंसानों में आया था। इसकी वजह से 2003 में चीन और हांगकांग में करीब 650 लोग मारे गए थे। जांच में पता चला था कि यह विषाणु चमगादड़ों से इंसानों में आया था।

मर्स

मध्य-पूर्व देशों में मर्स-सीओवी (मिडिल ईस्ट रिस्पिरेटरी सिंड्रोम वायरस) को 2012 में सऊदी अरब में खोजा गया था। यह वायरस कोरोना वायरस परिवार का पूर्वज है। मर्स-सीओवी की वजह से अब तक मध्य-पूर्व के देशों में 800 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। यह वायरस ऊंटों के जरिये इंसानों में आया था।

नोवल कोरोना वायरस

कोरोना विषाणु (कोविड-19)

नोवल कोरोना वायरस (कोविड-19) का पहला मामला दिसंबर, 2019 में चीन के वुहान में सामने आया था। इसके लक्षणों में बुखार, सर्दी-जुखाम, खांसी, सांस लेने में तकलीफ होती है। ये लक्षण सार्स और मेर्स से काफी मिलते-जुलते हैं। कोविड-19 की अनुवांशिक संरचना 80 फीसदी तक चमगादड़ों में पाए जाने वाले सार्स वायरस जैसी मिली है।

कोविड-19 ज़्यादा चिंताजनक

मानव में कोविड-19 का संक्रमण अत्यधिक गम्भीर है। इसके लक्षण जल्दी नहीं दिखते। हांगकांग यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल प्रोफेसर जॉन निकोलस के मुताबिक़, नोवल कोरोना वायरस की पुष्टि न होने पर भी खतरा बरकरार रहता है। एक-दो हफ्ते बाद दोबारा जांच जरूरी है, क्योंकि यह वायरस देरी से पनपता है। श्वसन तंत्र पर हमला करने वाला कोविड-19 खांसी, छींक के जरिये छह फीट के दायरे में दूसरे व्यक्ति तक पहुंच सकता है और 14 दिनों तक इसके लक्षण नहीं दिखते।

अत्यधिक घातक

कोविड-19 ने संक्रमण और मौतों के मामले में कोरोना श्रेणी के ही वायरस सार्स को पीछे छोड़ दिया है। 2002-2003 में फैले सार्स की चपेट में चीन में 5,327 लोग आए थे और दुनिया भर में 750 लोग मारे गए थे। कोविड-19 वायरस पर काबू पाने की कोशिश वैज्ञानिक कर रहे हैं, जबकि सार्स और मर्स का भी जड़ से उन्मूलन नहीं हुआ है। कई देशों में सालों बाद भी इनके दोबारा सक्रिय होने की आशंका बनी रहती है। कोविड-19 से अभी तक जीव-जंतुओं के प्रभावित होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। एक शोध के अनुसार अन्य कोरोना वायरस गाय, सूअरों और ऊंट आदि में डायरिया का कारण बनते हैं।

मानव शरीर में प्रवेश

कोरोना वायरस तैलीय लिपिड के बुलबुले के अंदर होता है। इस बुलबुले के चारों तरफ प्रोटीन और लिपिड्स की परत होती है। इसी परत से प्रोटीन के कांटे (Spikes) निकले होते हैं। कोरोना वायरस नाक, मुंह या आंखों के जरिए शरीर में घुसता है। इसके बाद ये शरीर की कोशिकाओं तक जाता है। इंसानी शरीर की कोशिकाएं एसीई 2 नामक प्रोटीन पैदा करती हैं। इसके बाद कोरोना वायरस का तैलीय लिपिड बुलबुला फूट जाता है। वह कोशिका की बाहरी परत को खोल देता है। फिर तैलीय लिपिड के अंदर मौजूद कोरोना वायरस का स्ट्रेन या आरएनए हमारी कोशिकाओं में घुस जाता है। कोरोना वायरस का जीनोम शरीर की कोशिकाओं में एक निगेटिव वायरल प्रोटीन बनाना शुरू कर देता है। इसके लिए वह कोशिकाओं से ऊर्जा लेता है ताकि वह शरीर के अंदर ही नए कोरोना वायरस पैदा कर सके। धीरे-धीरे कोरोना वायरस जैसे कांटे हमारे शरीर की कोशिकाओं में विकसित होने लगते हैं। यानी हमारी कोशिकाएं भी कोरोना वायरस जैसी बनने लगती हैं। फिर, ये टूटकर नए कोरोना वायरसों को जन्म देना शुरू करती हैं। इसके बाद इंसान के शरीर में ही शुरू हो जाती है कोरोना वायरस की एसेंबलिंग अर्थात वायरस के नए आरएनए शरीर में फैलने लगते हैं। ये नए वायरस को पैदा करते हैं। फिर इंसानी शरीर के अंदर ही अलग-अलग कोशिकाओं से मिलकर नए कोरोना वायरस बनने लगते हैं।[2]

मानव शरीर के अंदर संक्रमित हर कोशिका लाखों विषाणु बना सकती है। अंत में इंसानी शरीर की कोशिकाएं मरने लगती हैं। फिर धीरे से ये विषाणु फेफड़ों में पहुंचकर ऑक्सीजन साफ करने की प्रक्रिया को बाधित कर देता है। ऐसी स्थिति में शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली विषाणु से मुकाबला करती है। तब बुखार आता है। जब स्थिति ज्यादा गंभीर होती है, तब हमारा इम्यून सिस्टम हमारे फेफड़ों की कोशिकाओं पर ही हमला करता है। इससे फेफड़े बाधित होते हैं; क्योंकि इस प्रक्रिया में कफ बनने लगता है। ये कफ मारी गई संक्रमित कोशिकाएं होती हैं। इसी वजह से मानव सांस नहीं ले पाता और उसकी मौत हो जाती है।

खांसने या छींकने से फेफड़ों में मारी गई संक्रमित कोशिकाएं पानी या थूक या कफ की बूंदों के रूप में बाहर आते हैं, जो कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक बाहरी वातावरण में जीवित रह सकते हैं। साथ ही अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। इसलिए लोग मास्क लगाने को कहते हैं। भविष्य में हो सकता है कि कोरोना वायरस कोविड-19 के लिए कोई वैक्सीन बना लिया जाए ताकि वह इंसानी शरीर पर यदि हमला करे तो वह कोई नुकसान न पहुंचा पाए। अभी इस विषाणु के नियंत्रण के लिए कोई वैक्सीन नहीं है। साबुन से हाथ धोना ही बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है, क्योंकि कोरोना विषाणु की बाहरी परत प्रोटीन या तैलीय लिपिड से बनी होती है, जिसे साबुन का पानी तोड़ देता है। इसके बाद विषाणु का स्ट्रेन कमजोर पड़ जाता है।

कोरोना का एल (L) स्ट्रेन

कोरोना वायरस के संक्रमण से भारत का गुजरात बुरी तरह से प्रभावित है। यहाँ 133 से भी अधिक मौत हो चुकी हैं।[3] विशषेज्ञों का मानना है कि इस राज्य में मृत्यु दर ज्यादा होने की वजह वायरस का L स्ट्रेन हो सकता है, जो कि इसका सबसे घातक स्ट्रेन है और यही चीन के वुहान में भी दिखा था। L टाइप स्ट्रेन नाम का ये स्ट्रेन काफी घातक है और गुजरात में मौत की दर ज्यादा होने के पीछे ये एक बड़ी वजह हो सकता है। वहीं केरल में इसका S टाइप स्ट्रेन मिल रहा है, जो अपेक्षाकृत कमजोर है और वहां पर मौत की दर कम होने के पीछे ये भी वजह हो सकती है। गुजरात में जी.बी.आर.सी. के डायरेक्टर सीजी जोशी के अनुसार- "L स्ट्रेन वायरस के दूसरे प्रकार S टाइप स्ट्रेन से काफी घातक होता है। दुनिया में जहां भी मौतों की दर ज्यादा है, वहां वायरस का यही स्ट्रेन मिला है।

तीन तरह के म्यूटेशन

हाल ही में जी.बी.आर.सी. को कोरोना वायरस का जीनोम सीक्वेंस अलग-अलग करने में बड़ी सफलता मिली। इसमें वायरस के तीन म्यूटेशन सामने आए। केरल में दुबई से वायरस का प्रसार हुआ, जहां S स्ट्रेन के मामले ज्यादा थे। वहीं इटली और फ्रांस में L स्ट्रेन वाले मरीज ज्यादा थे, जहां से लौटे भारतीयों के साथ L स्ट्रेन टाइप आया। एक और स्ट्रेन है जो न्यूयॉर्क में दिख रहा है, जिस पर वैज्ञानिक काम करने में जुटे हुए हैं।

कोरोना का स्ट्रेन क्या है, ये समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि कोरोना वायरस क्या है। कोरोना वायरस असल में सिंगल स्ट्रेंडेड RNA वायरस का समूह है, जो बीमारियां पैदा करता है। जानवरों में अब तक सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस देखे जा चुके हैं, वहीं इनमें से 7 ही कोरोना वायरस हैं, जो इंसानों पर असर डालते हैं। मानव को संक्रमित करने वाला कोरोना सबसे पहले साल 1960 में दिखा था। ये बच्चों में सांस देने में परेशानी जैसी समस्या पैदा करता था। साल 1965 में दो वैज्ञानिकों DJ Tyrrell और ML Bynoe ने इसकी पहचान की, लेकिन दो सालों बाद ही इसे कोरोना वायरस नाम दिया गया। इसके मुकुटनुमा नुकीले आकार के कारण इसे कोरोना कहा गया।

एल और एस स्ट्रेन में अंतर

नया यानी SARS-CoV-2 दो बड़े स्तरों में बंटा दिख रहा है। पेकिंग यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ लाइफ़ साइंस और शंघाई यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 103 मरीजों के सैंपल लेकर इस पर शोध किया, जिसमें ये निकलकर आया। इन दोनों स्तरों को L और S टाइप नाम दिया गया। लक्षणों में समान दिखने के बाद भी दोनों में काफी फर्क होता है। दिसम्बर 2019 में वुहान में वायरस का L टाइप दिखा, जो ज्यादा घातक होता है, लेकिन जनवरी 2020 के बाद आने वाले मामलों में ये S टाइप में बदल गया। S स्ट्रेन उतना गंभीर नहीं होता, लेकिन इसके साथ भी एक मुश्किल ये है कि बीमारी के लक्षण देर से या नहीं के बराबर रहते हैं। ऐसे में मरीज अस्पताल जाने या टेस्ट में देर करता है। यानी संक्रमण ज्यादा वक्त तक शरीर में रहता है और अनजाने ही एक से दूसरे में फैलता रहता है। नेशनल साइंस रिव्यू में छपी इस स्टडी के मुताबिक़ कोरोना का S स्ट्रेन टाइप ज्यादा पुराना है, लेकिन ये केवल 30 प्रतिशत मामलों में दिख रहा है। वहीं दूसरा टाइप नया है, जो वायरस के म्यूटेशन से बना माना जा रहा है। ये L टाइप ज्यादा घातक है।[4]

नये बदलाव

कोरोना वायरस में कई तरह के बदलाव हुए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार है[5]-

  • N501Y - ब्रिटेन में यह स्ट्रेन मिला है। इसमें अमीनो एसिड को N लिखा गया है। यह कोरोना वायरस की जेनेटिक संरचना में पोजिशन-501 पर था। इसे अब Y ने रिप्लेस कर लिया है।
  • P681H - नाइजीरिया में मिले इस कोरोना वायरस स्ट्रेन में पोजिशन-681 पर अमीनो एसिड P को H ने रिप्लेस कर दिया है। अमेरिका के सीडीसी के मुताबिक़, इस पोजिशन में बदलाव कई बार हो चुका है।
  • HV 69/70 - यह स्ट्रेन कोरोना वायरस में पोजिशन-69 और 70 पर अमीनो एसिड्स के डिलीट होने का नतीजा है। फ्रांस और दक्षिण अफ़्रीका में भी वायरस में यह बदलाव दिखा है।
  • N439K - ब्रिटेन में कोविड-19 जेनोमिक्स कंसोर्टियम (CoG-UK) के रिसर्चर्स ने इस नए वैरिएंट के बारे में बताया था। इसमें पोजिशन-439 पर स्थित अमीनो एसिड N को K ने रिप्लेस किया है।


कोरोना में लगातार म्यूटेशन होता रहता है, यानी इसके गुण बदलते रहते हैं। म्यूटेशन होने से ज्यादातर वेरिएंट खुद ही खत्म हो जाते हैं, लेकिन कभी-कभी यह पहले से कई गुना ज्यादा मजबूत और खतरनाक हो जाता है। यह प्रक्रिया इतनी तेज़ीसे होती है कि वैज्ञानिक एक रूप को समझ भी नहीं पाते और दूसरा नया रूप सामने आ जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कोरोना वायरस का जो नया रूप ब्रिटेन में मिला है, वह पहले से 70% ज्यादा तेज़ीसे फैल सकता है।

एपी स्ट्रेन

04 मई, 2021

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में कोरोना वायरस का नया एपी स्ट्रेन (AP Strain) खोजा गया है, जो कि B1.617 और B1.618 वैरिएंट से भी ज्यादा ताकतवर और खतरनाक बताया जा रहा है। कोरोना वायरस का संक्रमण देशभर में कहर मचा रहा है। इस बीच देश में Covid-19 का एक नया वैरिएंट सामने आया है। इसका नाम एपी स्ट्रेन है। इसको आंध्र प्रदेश में खोजा गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह वैरिएंट 15 गुना ज्यादा संक्रामक है। इस वायरस के चलते लोग सिर्फ तीन से चार दिनों में ही बीमार हो रहे हैं।

कोरोना के नए स्ट्रेन की आक्रामकता से सभी परेशान हैं। हालांकि अभी तक देश भर में डबल म्यूटेंट वायरस ही चिह्नित हुआ है, जो यूके और साउथ अफ्रीकन स्ट्रेन हैं। वहीं अब आंध्र प्रदेश में मिले नए एपी स्ट्रेन को वैज्ञानिक भाषा में N440K वैरिएंट कहा जा रहा है। सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के वैज्ञानिकों ने इस वैरिएंट की खोज की है।

शुरुआती संकेत

कोरोना वायरस और लगातार मिल रहे उसके नए-नए स्ट्रेन ने दुनिया भर के लोगों को परेशान करके रख दिया है। जब से यह वायरस फैला है, तब से वैज्ञानिक लगातार इसके बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं। इसको लेकर शोध जारी हैं और नए-नए खुलासे भी हो रहे हैं। स्पेन के मैड्रिड में किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक़, मरीजों के जीभ, हाथ और पैरों में परिवर्तन कोविड-19 के शुरुआती संकेत हो सकते हैं। कोरोना से संक्रमित 666 मरीजों पर किए गए शोध में पाया गया कि चार में से एक मरीज के जीभ में सूजन, हथेलियों पर जलन और पैरों के तलवों पर लालिमा की शिकायत थी।[6]

जीभ में सूजन

अध्ययन के मुताबिक़, कोरोना मरीजों के मुंह के अंदर गंभीर संक्रमण देखने को मिल रहा है, जिससे जीभ पर सफेद धब्बे और सूजन हो रही है। इस दुर्लभ स्थिति को कई वैज्ञानिकों ने कोविड टंग का नाम दिया है। यह स्वाद की क्षमता के नुकसान के साथ जुड़ा हुआ है, जो कोविड-19 का एक सामान्य लक्षण है।

हथेलियों और पैर के तलवों में जलन और लालिमा

जीभ में सूजन के अलावा लगभग 15 फीसदी कोरोना मरीजों ने अपनी हथेलियों और पैरों के तलवों में जलन और लालिमा का अनुभव करने की शिकायत की। इसके अलावा उन जगहों पर छोटे-छोटे दाग भी दिखाई देते हैं। मुख्य शोधकर्ता नूनो गोंजालेज ने बताया कि हल्के से मध्यम कोविड-19 संक्रमण वाले लगभग आधे मरीजों को दो सप्ताह की अवधि के दौरान एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसमें इन संकेतों का पता चला। उन्होंने कहा कि ओरल कैविटी भी कई मरीजों में चिंता का कारण था और समय-समय पर इनके विशेष परीक्षण की जरूरत थी।

कोविड-19 के अन्य लक्षण

चूंकि समय-समय पर नए लक्षण पैदा होते हैं, लेकिन कोविड-19 के पहले से मौजूद आम लक्षणों को नजरअंदाज़नहीं किया जाना चाहिए। इसके कुछ सबसे खास संकेत इस प्रकार हैं- 

  1. बुखार 
  2. सूखी खांसी 
  3. गले में खराश 
  4. बहती हुई और भरी हुई नाक 
  5. सीने में दर्द और सांस की तकलीफ 
  6. थकान 

सावधानी जरूर बरतें

वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ पहले से ही ये कहते आ रहे हैं कि कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क का इस्तेमाल सबसे कारगर उपायों में से एक है। इसके अलावा आप समय-समय पर हाथ धोने या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने और सुरक्षित शारीरिक दूरी अपनाने जैसे नियमों का पालन करके भी इसके संक्रमण से बच सकते हैं। हालांकि अब तो ब्रिटेन, अमेरिका और भारत जैसे कई देशों में इस वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी इन नियमों का पालन जारी रखें, तभी वायरस से बचाव संभव है।

प्रजनन क्षमता पर प्रभाव

Blockquote-open.gif हाल ही में 'ओपन बायोलॉजी' नामक पत्रिका में भी एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें दावा किया गया है कि कोरोना वायरस पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डाल सकता है, क्योंकि यह वायरस महिलाओं के मुकाबले पुरुषों पर ज्यादा कारगर तरीके से हमला करता है। शोधकर्ताओं ने इस बात की भी आशंका जताई है कि हो सकता है कोरोना का संक्रमण यौन संबंध बनाने के दौरान भी फैलने लगे। Blockquote-close.gif

  पहले ऐसा माना जा रहा था कि कोरोना वायरस श्वसन तंत्र को मुख्य रूप से प्रभावित करता है, लेकिन अब शोधकर्ताओं ने यह जान लिया है कि इसके लक्षण कई और विविध हैं। 'रिप्रोडक्शन' नामक पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक़, कोविड-19 के गंभीर मामले एक आदमी के शुक्राणु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं और इस प्रकार संभवतः उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये निष्कर्ष इस बात का पहला और प्रत्यक्ष प्रयोगात्मक सबूत है कि कोविड-19 पुरुष प्रजनन प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि इस शोध को लेकर विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि पुरुषों में प्रजनन क्षमता पर वायरस का प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोविड-19 से संक्रमित 84 पुरुषों और 105 स्वस्थ पुरुषों के स्पर्म को लेकर अध्ययन किया गया था। 

जर्मनी में जस्टस लिबिग विश्वविद्यालय के शोधकर्ता बेहजाद हाजीजादे मालेकी ने कहा, 'शुक्राणु कोशिकाओं पर ये प्रभाव कम शुक्राणु की गुणवत्ता और कम प्रजनन क्षमता से जुड़े हैं। हालांकि इन प्रभावों में समय के साथ सुधार हुआ, लेकिन वे कोविड-19 से जूझ रहे मरीजों में महत्वपूर्ण और असामान्य रूप से उच्च बने रहे।' उन्होंने कहा कि 'यह बीमारी जितनी अधिक गंभीर होती है, परिवर्तन उतने ही बड़े होते हैं'। शोधकर्ता बेहजाद हाजीजादे मालेकी ने कहा, 'पुरुष प्रजनन प्रणाली को 'कोविड-19 संक्रमण का एक संवेदनशील मार्ग माना जाना चाहिए और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे उच्च जोखिम वाला अंग घोषित किया जाना चाहिए'।

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अभी इस पर और शोध की जरूरत है। वहीं ब्रिटेन में केयर फर्टिलिटी ग्रुप के भ्रूण विज्ञान की निदेशक एलिसन कैंपबेल का भी कहना है कि पुरुषों को अनुचित रूप से चिंतित नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 की वजह से शुक्राणुओं की गुणवत्ता या पुरुष प्रजनन क्षमता पर स्थायी क्षति का वर्तमान में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। हाल ही में 'ओपन बायोलॉजी' नामक पत्रिका में भी एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें दावा किया गया है कि कोरोना वायरस पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डाल सकता है, क्योंकि यह वायरस महिलाओं के मुकाबले पुरुषों पर ज्यादा कारगर तरीके से हमला करता है। शोधकर्ताओं ने इस बात की भी आशंका जताई है कि हो सकता है कोरोना का संक्रमण यौन संबंध बनाने के दौरान भी फैलने लगे। 


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सात तरह के कोरोना विषाणु, लेकिन जानिए कोविड-19 ने चिंता क्यों बढ़ाई (हिंदी) livehindustan.com। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2020।
  2. कोरोना वायरस ऐसे घुसता है आपके शरीर में (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2020।
  3. 27 अप्रॅल, 2020 तक
  4. भारत में 20 मई तक खत्म हो सकता है कोरोना वायरस- सिंगापुर यूनिवर्सिटी की रिसर्च (हिंदी) hindi.news18.com। अभिगमन तिथि: 27 अप्रॅल, 2020।
  5. भारत पहुंचा ब्रिटेन वाला वायरस (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 29 दिसंबर, 2020।
  6. कोरोना वायरस (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2020।

संबंधित लेख