"गणेश वासुदेव मावलंकर" के अवतरणों में अंतर

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'''गणेश वासुदेव मावलंकर''' प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और [[भारत]] की [[लोकसभा]] के प्रथम अध्यक्ष थे। इन्हें 'दादा साहेब' के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 27 नवम्बर, 1888 ई. को [[बड़ोदरा]] में हुआ था। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद इन्होंने [[अहमदाबाद]] से अपनी वकालत प्रारम्भ की थी। स्वतंत्रता के पश्चात इन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गय था। इनका कई भाषाओं पर एकाधिकार था। वासुदेव मावलंकर ने अनेक [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] की भी रचना की है।  
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'''गणेश वासुदेव मावलंकर''' प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और [[भारत]] की [[लोकसभा]] के प्रथम अध्यक्ष थे। इन्हें 'दादा साहेब' के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म [[27 नवम्बर]], [[1888]] ई. को [[बड़ोदरा]] में हुआ था। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद इन्होंने [[अहमदाबाद]] से अपनी वकालत प्रारम्भ की थी। स्वतंत्रता के पश्चात इन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गय था। इनका कई [[भाषा|भाषाओं]] पर एकाधिकार था। वासुदेव मावलंकर ने अनेक [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] की भी रचना की है।  
 
==शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन==
 
==शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन==
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारत की लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म बड़ोदरा में हुआ था। उनके पूर्वज [[महाराष्ट्र]] में [[रत्नागिरि]] के निवासी थे। मावलंकर अपनी उच्च शिक्षा के लिए 1902 ई. में अहमदाबाद आ गये थे। उन्होंने अपनी बी.ए. की परीक्षा 'गुजरात कॉलेज' से उत्तीर्ण की थी और क़ानून की डिग्री 'मुंबई यूनिवर्सिटी' से प्राप्त की। अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत इन्होंने अहमदाबाद में वकालत से प्रारम्भ की और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। शीघ्र ही वे सरदार [[वल्लभ भाई पटेल]] और [[गांधीजी]] के प्रभाव में आ गए। उन्होंने [[खेड़ा]] के [[किसान आंदोलन]] में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।
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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारत की लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म बड़ोदरा में हुआ था। उनके पूर्वज [[महाराष्ट्र]] में [[रत्नागिरि]] के निवासी थे। मावलंकर अपनी उच्च शिक्षा के लिए [[1902]] ई. में अहमदाबाद आ गये थे। उन्होंने अपनी बी.ए. की परीक्षा 'गुजरात कॉलेज' से उत्तीर्ण की थी और क़ानून की डिग्री '[[मुंबई यूनिवर्सिटी]]' से प्राप्त की। अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत इन्होंने अहमदाबाद में वकालत से प्रारम्भ की और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। शीघ्र ही वे सरदार [[वल्लभ भाई पटेल]] और [[गांधीजी]] के प्रभाव में आ गए। उन्होंने [[खेड़ा]] के [[किसान आंदोलन]] में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।
 
====राजनीतिक जीवन====
 
====राजनीतिक जीवन====
गणेश वासुदेव मावलंकर ने गाँधी जी के [[असहयोग आंदोलन]] के समय 1922 ई. में वकालत छोड़ दी। आंदोलन के बंद हो जाने पर वे फिर से अपनी वकालत करने लगे थे। लेकिन 1937 ई. में उन्होंने इस पेशे को सदा के लिए त्याग दिया। 1921 ई. की अहमदाबाद [[कांग्रेस]] की स्वागत-समिति के वे सचिव थे। 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के भी वे सचिव रहे थे। कुछ समय तक 'गुजरात विद्यापीठ' में अध्यापन कार्य किया। [[पंढरपुर]] के प्रसिद्ध मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए हुए सत्याग्रह के नेता मावलंकर ही थे। खादी आदि रचनात्मक कार्यों में इनका निरंतर सहयोग रहा।
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गणेश वासुदेव मावलंकर ने गाँधी जी के [[असहयोग आंदोलन]] के समय [[1922]] ई. में वकालत छोड़ दी। आंदोलन के बंद हो जाने पर वे फिर से अपनी वकालत करने लगे थे। लेकिन [[1937]] ई. में उन्होंने इस पेशे को सदा के लिए त्याग दिया। [[1921]] ई. की अहमदाबाद [[कांग्रेस]] की स्वागत-समिति के वे सचिव थे। 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के भी वे सचिव रहे थे। कुछ समय तक 'गुजरात विद्यापीठ' में अध्यापन कार्य किया। [[पंढरपुर]] के प्रसिद्ध मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए हुए सत्याग्रह के नेता मावलंकर ही थे। खादी आदि रचनात्मक कार्यों में इनका निरंतर सहयोग रहा।
 
==लोकसभा अध्यक्ष==
 
==लोकसभा अध्यक्ष==
वासुदेव मावलंकर 1937 ई. में [[मुंबई]] विधान सभा के सदस्य और उसके अध्यक्ष चुने गए। 1945 ई. तक वे इस पद पर बने रहे। उसके बाद उन्हें केन्द्रीय असेम्बली का अध्यक्ष बना दिया गया। स्वतंत्रता के बाद 1947 ई. में उन्हें सर्वसम्मति से [[लोकसभा]] का अध्यक्ष (स्पीकर) चुना गया। 1952 ई. में पहले सार्वजनिक चुनाव के बाद उन्हें पुनः अध्यक्ष का आसन मिला। अपनी अध्यक्षता की इस दीर्घ अवधि में मावलंकर ने सदन के संचालन में नए मानदंडों की स्थापना की।  
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वासुदेव मावलंकर 1937 ई. में [[मुंबई]] विधान सभा के सदस्य और उसके अध्यक्ष चुने गए। [[1945]] ई. तक वे इस पद पर बने रहे। उसके बाद उन्हें केन्द्रीय असेम्बली का अध्यक्ष बना दिया गया। स्वतंत्रता के बाद [[1947]] ई. में उन्हें सर्वसम्मति से [[लोकसभा]] का अध्यक्ष (स्पीकर) चुना गया। [[1952]] ई. में पहले सार्वजनिक चुनाव के बाद उन्हें पुनः अध्यक्ष का आसन मिला। अपनी अध्यक्षता की इस दीर्घ अवधि में मावलंकर ने सदन के संचालन में नए मानदंडों की स्थापना की।  
 
====ग्रन्थ रचना====
 
====ग्रन्थ रचना====
मावलंकर ने [[साइमन कमीशन]] के बहिष्कार के लिए [[अहमदाबाद]] में आगे बढ़कर भाग लिया। वे संविधान सभा के प्रमखु सदस्य थे। ‘कस्तूरबा स्मारक निधि’ और ‘गांधी स्मारक निधि’ के अध्यक्ष के रूप में भी इनकी सेवाएँ स्मरणीय हैं। उन्होंने [[मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] और [[अंग्रेज़ी भाषा]] में अनेक [[ग्रन्थ]] भी लिखे हैं।
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मावलंकर ने [[साइमन कमीशन]] के बहिष्कार के लिए [[अहमदाबाद]] में आगे बढ़कर भाग लिया। वे संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे। ‘कस्तूरबा स्मारक निधि’ और ‘गांधी स्मारक निधि’ के अध्यक्ष के रूप में भी इनकी सेवाएँ स्मरणीय हैं। उन्होंने [[मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] और [[अंग्रेज़ी भाषा]] में अनेक [[ग्रन्थ]] भी लिखे हैं।
 
==निधन==
 
==निधन==
वासुदेव मावलंकर के विचारों पर [[श्रीमद्भागवदगीता]] का बड़ा प्रभाव था। [[भारत]] की इस महान विभूति का 27 फ़रवरी, 1956 ई. को निधन हो गया।
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वासुदेव मावलंकर के विचारों पर [[श्रीमद्भागवदगीता]] का बड़ा प्रभाव था। [[भारत]] की इस महान विभूति का [[27 फ़रवरी]], [[1956]] ई. को निधन हो गया।
  
 
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13:20, 18 सितम्बर 2012 का अवतरण

गणेश वासुदेव मावलंकर
गणेश वासुदेव मावलंकर
अन्य नाम दादासाहेब
जन्म 27 नवम्बर, 1888 ई.
जन्म भूमि बड़ोदरा, भारत
मृत्यु 27 फ़रवरी, 1956 ई.
मृत्यु स्थान अहमदाबाद
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि भारतीय लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष
पार्टी कांग्रेस
शिक्षा बी.ए. और क़ानून की डिग्री
विद्यालय 'गुजरात कॉलेज', 'मुम्बई विश्वविद्यालय'
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
विशेष योगदान पंढरपुर के प्रसिद्ध मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए हुए सत्याग्रह के नेता गणेश वासुदेव मावलंकर ही थे।

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गणेश वासुदेव मावलंकर प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारत की लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष थे। इन्हें 'दादा साहेब' के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 27 नवम्बर, 1888 ई. को बड़ोदरा में हुआ था। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद इन्होंने अहमदाबाद से अपनी वकालत प्रारम्भ की थी। स्वतंत्रता के पश्चात इन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गय था। इनका कई भाषाओं पर एकाधिकार था। वासुदेव मावलंकर ने अनेक ग्रन्थों की भी रचना की है।

शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारत की लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म बड़ोदरा में हुआ था। उनके पूर्वज महाराष्ट्र में रत्नागिरि के निवासी थे। मावलंकर अपनी उच्च शिक्षा के लिए 1902 ई. में अहमदाबाद आ गये थे। उन्होंने अपनी बी.ए. की परीक्षा 'गुजरात कॉलेज' से उत्तीर्ण की थी और क़ानून की डिग्री 'मुंबई यूनिवर्सिटी' से प्राप्त की। अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत इन्होंने अहमदाबाद में वकालत से प्रारम्भ की और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। शीघ्र ही वे सरदार वल्लभ भाई पटेल और गांधीजी के प्रभाव में आ गए। उन्होंने खेड़ा के किसान आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।

राजनीतिक जीवन

गणेश वासुदेव मावलंकर ने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय 1922 ई. में वकालत छोड़ दी। आंदोलन के बंद हो जाने पर वे फिर से अपनी वकालत करने लगे थे। लेकिन 1937 ई. में उन्होंने इस पेशे को सदा के लिए त्याग दिया। 1921 ई. की अहमदाबाद कांग्रेस की स्वागत-समिति के वे सचिव थे। 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के भी वे सचिव रहे थे। कुछ समय तक 'गुजरात विद्यापीठ' में अध्यापन कार्य किया। पंढरपुर के प्रसिद्ध मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए हुए सत्याग्रह के नेता मावलंकर ही थे। खादी आदि रचनात्मक कार्यों में इनका निरंतर सहयोग रहा।

लोकसभा अध्यक्ष

वासुदेव मावलंकर 1937 ई. में मुंबई विधान सभा के सदस्य और उसके अध्यक्ष चुने गए। 1945 ई. तक वे इस पद पर बने रहे। उसके बाद उन्हें केन्द्रीय असेम्बली का अध्यक्ष बना दिया गया। स्वतंत्रता के बाद 1947 ई. में उन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष (स्पीकर) चुना गया। 1952 ई. में पहले सार्वजनिक चुनाव के बाद उन्हें पुनः अध्यक्ष का आसन मिला। अपनी अध्यक्षता की इस दीर्घ अवधि में मावलंकर ने सदन के संचालन में नए मानदंडों की स्थापना की।

ग्रन्थ रचना

मावलंकर ने साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए अहमदाबाद में आगे बढ़कर भाग लिया। वे संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे। ‘कस्तूरबा स्मारक निधि’ और ‘गांधी स्मारक निधि’ के अध्यक्ष के रूप में भी इनकी सेवाएँ स्मरणीय हैं। उन्होंने मराठी, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा में अनेक ग्रन्थ भी लिखे हैं।

निधन

वासुदेव मावलंकर के विचारों पर श्रीमद्भागवदगीता का बड़ा प्रभाव था। भारत की इस महान विभूति का 27 फ़रवरी, 1956 ई. को निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 218 |


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