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*शाकों पर विजय प्राप्त करके उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की।  वह 'शकारि' भी कहलाया।
 
*शाकों पर विजय प्राप्त करके उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की।  वह 'शकारि' भी कहलाया।
 
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चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासन-काल भारत के इतिहास का बड़ा महत्वपूर्ण समय माना जाता है। चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] उसके समय में 6 वर्षों तक भारत में रहा।  वह बड़ा उदार और न्याय-परायण सम्राट था।  उसके समय में भारतीय संस्कृति का चतुर्दिक विकास हुआ। महाकवि [[कालिदास]] उसके दरबार की शोभा थे।  वह स्वयं वैष्णव था, पर अन्य धर्मों के प्रति भी उदार-भावना रखता था।  गुप्त राजाओं के काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। इसका बहुत कुछ श्रेय चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की शासन-व्यवस्था को है।
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चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासन-काल [[भारत]] के इतिहास का बड़ा महत्वपूर्ण समय माना जाता है। चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] उसके समय में 6 वर्षों तक [[भारत]] में रहा।  वह बड़ा उदार और न्याय-परायण सम्राट था।  उसके समय में भारतीय संस्कृति का चतुर्दिक विकास हुआ। महाकवि [[कालिदास]] उसके दरबार की शोभा थे।  वह स्वयं वैष्णव था, पर अन्य धर्मों के प्रति भी उदार-भावना रखता था।  गुप्त राजाओं के काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। इसका बहुत कुछ श्रेय चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की शासन-व्यवस्था को है।
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
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09:40, 20 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 380-413) गुप्त राजवंश का राजा।
  • समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा। उसका शासन काल 375 ई. से 413 ई. तक रहा।
  • वह अपने वंश में बड़ा पराक्रमी शासक हुआ। मालवा, काठियावाड़, गुजरात और उज्जयिनी को अपने साम्राज्य में मिलाकर उसने अपने पिता के राज्य का और भी विस्तार किया।
  • शाकों पर विजय प्राप्त करके उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की। वह 'शकारि' भी कहलाया।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासन-काल भारत के इतिहास का बड़ा महत्वपूर्ण समय माना जाता है। चीनी यात्री फ़ाह्यान उसके समय में 6 वर्षों तक भारत में रहा। वह बड़ा उदार और न्याय-परायण सम्राट था। उसके समय में भारतीय संस्कृति का चतुर्दिक विकास हुआ। महाकवि कालिदास उसके दरबार की शोभा थे। वह स्वयं वैष्णव था, पर अन्य धर्मों के प्रति भी उदार-भावना रखता था। गुप्त राजाओं के काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। इसका बहुत कुछ श्रेय चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की शासन-व्यवस्था को है।