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'''चमकौर''' [[हिमाचल प्रदेश]] की [[शिवालिक पहाड़ियाँ|शिवालिक पहाड़ियों]] की [[तराई]] में बसा हुआ एक छोटा-सा कस्बा है। पुरातत्व विभाग के अधीक्षक डॉ. वाई.डी. शर्मा के अनुसार इस स्थान पर किये गए [[उत्खनन]] में अति प्राचीन नगर के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। यह नगर आजकल [[सिक्ख|सिक्खों]] का पवित्र स्थान है, जहाँ [[गुरु गोविंद सिंह]] ने [[मुग़ल|मुग़लों]] के विरुद्ध अंतिम युद्ध किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=326|url=}}</ref>
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'''चमकौर''' [[हिमाचल प्रदेश]] की [[शिवालिक पहाड़ियाँ|शिवालिक पहाड़ियों]] की [[तराई]] में बसा हुआ एक छोटा-सा क़स्बा है। पुरातत्व विभाग के अधीक्षक डॉ. वाई.डी. शर्मा के अनुसार इस स्थान पर किये गए [[उत्खनन]] में अति प्राचीन नगर के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। यह नगर आजकल [[सिक्ख|सिक्खों]] का पवित्र स्थान है, जहाँ [[गुरु गोविंद सिंह]] ने [[मुग़ल|मुग़लों]] के विरुद्ध अंतिम युद्ध किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=326|url=}}</ref>
  
 
*मुग़लों से युद्ध के फलस्वरूप ही गुरुजी के दो ज्येष्ठ पुत्र मारे गए थे और दो कनिष्ठ पुत्र [[सरहिन्द]] के सूबेदार की आज्ञा से दीवार में चुनवा दिए गए।
 
*मुग़लों से युद्ध के फलस्वरूप ही गुरुजी के दो ज्येष्ठ पुत्र मारे गए थे और दो कनिष्ठ पुत्र [[सरहिन्द]] के सूबेदार की आज्ञा से दीवार में चुनवा दिए गए।

14:09, 6 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

चमकौर हिमाचल प्रदेश की शिवालिक पहाड़ियों की तराई में बसा हुआ एक छोटा-सा क़स्बा है। पुरातत्व विभाग के अधीक्षक डॉ. वाई.डी. शर्मा के अनुसार इस स्थान पर किये गए उत्खनन में अति प्राचीन नगर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह नगर आजकल सिक्खों का पवित्र स्थान है, जहाँ गुरु गोविंद सिंह ने मुग़लों के विरुद्ध अंतिम युद्ध किया था।[1]

  • मुग़लों से युद्ध के फलस्वरूप ही गुरुजी के दो ज्येष्ठ पुत्र मारे गए थे और दो कनिष्ठ पुत्र सरहिन्द के सूबेदार की आज्ञा से दीवार में चुनवा दिए गए।
  • डॉ. शर्मा के मत में इस नगर की नींव रामायण काल में पड़ी थी।
  • चमकौर नगर के आस-पास विस्तृत बालू के मैदान हैं, जिससे यह जान पड़ता है कि किसी समय सतलुज नदी यहाँ होकर बहती थी।
  • ई. सन के दो सहस्त्र वर्ष पूर्व हड़प्पा सभ्यता से प्रभावित अनेक अवशेष यहाँ से मिले हैं।
  • चमकौर की घनी बस्ती के कारण यहाँ विस्तृत खुदाई संभव नहीं हो सकी है, किंतु उत्तर-मध्य कालीन अवशेष काफ़ी प्रचुरता से मिले हैं।
  • यहाँ से प्राप्त अवशेषों में चमकीले मृदभांड एवं लाल ढक्कन और चपटी तली तथा चौड़े मुँह और तेज धार के किनारे वाले प्याले प्रमुख हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 326 |

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