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'''जीवाणु''' एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छङा, आदि आकार की हो सकती है। ये [[प्रोकैरियोटिक]], कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते है।
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[[चित्र:Bacteria.jpg|thumb|जीवाणु<br />Bacteria]]
ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में<ref>{{cite journal |author=Fredrickson J, Zachara J, Balkwill D, ''et al'' |title=Geomicrobiology of high-level nuclear waste-contaminated vadose sediments at the Hanford site, Washington state | url=http://aem.asm.org/cgi/content/full/70/7/4230?view=long&pmid=15240306 |journal=Appl Environ Microbiol |volume=70 |issue=7 |pages=4230–41 |year=2004 |pmid=15240306 |doi=10.1128/AEM.70.7.4230-4241.2004}}</ref>, जल में,भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में करोड़ जीवाणु [[कोशिका|कोष]] तथा मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाएं जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०<sup>३०</sup> जीवाणु पाएं जाते हैं.<ref>{{cite journal |author=Whitman W, Coleman D, Wiebe W |title=Prokaryotes: the unseen majority | url=http://www.pnas.org/cgi/content/full/95/12/6578 |journal=Proc Natl Acad Sci U S a |volume=95 |issue=12 |pages=6578–83 |year=1998|pmid = 9618454 |doi=10.1073/pnas.95.12.6578}}</ref> जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है।<ref>{{cite journal |author=Whitman W, Coleman D, Wiebe W |title=Prokaryotes: the unseen majority |url=http://www.pnas.org/cgi/content/full/95/12/6578 |journal=Proc Natl Acad Sci U S a |volume=95 |issue=12 |pages=6578–83 |year=1998|pmid=9618454 |doi=10.1073/pnas.95.12.6578}}</ref> ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलिए [[नाइट्रोजन]] के स्थीरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधे जातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है।<ref name=Rappe>{{cite journal |author=Rappé MS, Giovannoni SJ |title=The uncultured microbial majority |journal=Annu. Rev. Microbiol. |volume=57 |issue= |pages=369–94 |year=2003 |pmid=14527284 |doi=10.1146/annurev.micro.57.030502.090759}}</ref> जीवाणुओं का अध्ययन [[बैक्टिरियोलोजी]] के अन्तर्गत किया जाता है जो कि [[सूक्ष्मजैविकी]] की ही एक शाखा है।<br />
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'''जीवाणु''' एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिमी तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छङा, आदि आकार की हो सकती है। ये प्रोकैरियोटिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये [[पृथ्वी]] पर [[मिट्टी]] में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में [[जल]] में, भू-पपड़ी में, यहाँ तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में 4 करोड़ जीवाणु [[कोशिका|कोष]] तथा 1 मिलीलीटर जल में 10 लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग 5X10<sup>30</sup> जीवाणु पाए जाते हैं। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय [[नाइट्रोजन]] के स्थीरीकरण में। हाँलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधे जातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्मजैविकी की ही एक शाखा है।
मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा अधिक तो जीवाणु कोष है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहारनाल में पाएं जाते हैं। <ref>{{cite journal |author=Sears CL |title=A dynamic partnership: celebrating our gut flora |journal=Anaerobe |volume=11 |issue=5 |pages=247–51 |year=2005 |pmid=16701579 |doi=10.1016/j.anaerobe.2005.05.001}}</ref> हानिकारक जीवाणु इम्मयुन तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर का नुकसान नही पहुंचा पाते है। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमनिया, [[तपेदिक]] या [[क्षयरोग]], [[प्लेग]] इत्यादि. सिर्फ क्षय रग से प्रतिवर्ष लगभग २० लाख लोग मरते हैं जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं। <ref>{{cite web  | url = http://www.who.int/healthinfo/bodgbd2002revised/en/index.html | title = 2002 WHO mortality data | accessdate = 2007-01-20}}</ref> विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में [[प्रतिजैविक]] का उपयोग होता है, इसलिए जुवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्दोगिक क्षेत्र में जीवाणुओं के किण्वन क्रिया द्वारा [[दही]], [[पनीर]] इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा [[जैवप्रौद्योगिकी]] के क्षेत्र में होता है।<ref>{{cite journal |author=Ishige T, Honda K, Shimizu S |title=Whole organism biocatalysis |journal=Curr Opin Chem Biol |volume=9 |issue=2 |pages=174–80 |year=2005 |pmid=15811802 |doi=10.1016/j.cbpa.2005.02.001}}</ref><br />
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==परिचय==
पहले जीवाणुओं को पैधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण [[प्रोकैरियोट्स]] के रुप में होता है। दुसरे जन्तु कोशिकों तथा [[यूकैरियोट्स]] की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसीत [[केन्द्रक]] का सर्वथा आभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोसिकांग यदा कदा ही पाएं जाते है। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण [[१९९०]] में हुए एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने है जिनका [[क्रम विकाश]] एक ही पूर्वज से हुआ. इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं [[आर्किया]] कहा जाता है।<ref name=autogenerated2>{{cite journal |author=Woese C, Kandler O, Wheelis M |title=Towards a natural system of organisms: proposal for the domains Archaea, Bacteria, and Eucarya| url=http://www.pnas.org/cgi/reprint/87/12/4576 |journal=Proc Natl Acad Sci U S a |volume=87 |issue=12 |pages=4576–9 |year=1990 |pmid=2112744 |doi=10.1073/pnas.87.12.4576}}</ref>
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[[मानव शरीर]] में जितनी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग 10 गुणा अधिक तो जीवाणु कोष है। इनमें से अधिकांश जीवाणु [[त्वचा]] तथा [[आहारनाल]] में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्मयुन तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुक़सान नहीं पहुंचा पाते हैं। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमनिया, [[तपेदिक]] या क्षयरोग, [[प्लेग]] इत्यादि। सिर्फ़ क्षय रोग से प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख लोग मरते हैं जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं। विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा [[कृषि]] कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जीवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र में जीवाणुओं के किण्वन क्रिया द्वारा [[दही]], [[पनीर]] इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।  
  
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पहले जीवाणुओं को पौधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण प्रोकैरियोट्स के रूप में होता है। दूसरे जन्तु कोशिकों तथा यूकैरियोट्स की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसित केन्द्रक का सर्वथा अभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग यदा कदा ही पाए जाते हैं। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण [[1990]] में हुए एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने है जिनका क्रम विकास एक ही पूर्वज से हुआ। इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं आर्किया कहा जाता है।
 
== इतिहास ==
 
== इतिहास ==
[[चित्र:Louis Pasteur.jpg|thumb|200px|right|लूई पाश्चर]]
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[[चित्र:Coxiella-Bacteria.jpg|thumb|कोक्सीएला बर्नेटी जीवाणु<br />Coxiella burnetti Bacteria]]
जीवाणुओं को सबसे पहले डच वैज्ञानिक [[एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक]] ने [[१६७६]] ई. में अपना ही बनाएं एकल लेंस [[सूक्ष्मदर्शी यंत्र]] से देखा,<ref>{{cite journal |author=Porter JR |title=Antony van Leeuwenhoek: Tercentenary of his discovery of bacteria |journal=Bacteriological reviews |volume=40 |issue=2 |pages=260–269 |year=1976 |pmid=786250 |pmc=413956 |doi= |url=http://mmbr.asm.org/cgi/pmidlookup?view=long&pmid=786250}}</ref> पर उस समय उसने इन्हें जंतुक समझा था। उसने रायल सोसाइटि को अपने अवलोकनों की पुष्टि के लिए कई पत्र लिखें।<ref>{{cite journal |author=van Leeuwenhoek A |title=An abstract of a letter from Mr. Anthony Leevvenhoek at Delft, dated Sep. 17, 1683, Containing Some Microscopical Observations, about Animals in the Scurf of the Teeth, the Substance Call'd Worms in the Nose, the Cuticula Consisting of Scales| url=http://www.journals.royalsoc.ac.uk/content/120136/?k=Sep.+17%2c+1683 |journal=Philosophical Transactions (1683–1775) |volume=14 |pages=568–574 |year=1684| accessdate = 2007-08-19}}</ref><ref>{{cite journal |author=van Leeuwenhoek A |title=Part of a Letter from Mr Antony van Leeuwenhoek, concerning the Worms in Sheeps Livers, Gnats, and Animalcula in the Excrements of Frogs | url=http://www.journals.royalsoc.ac.uk/link.asp?id=4j53731651310230 |journal=Philosophical Transactions (1683–1775) |volume=22 |pages=509–518 |year=1700| accessdate = 2007-08-19}}</ref><ref>{{cite journal |author=van Leeuwenhoek A |title=Part of a Letter from Mr Antony van Leeuwenhoek, F. R. S. concerning Green Weeds Growing in Water, and Some Animalcula Found about Them | url=http://www.journals.royalsoc.ac.uk/link.asp?id=fl73121jk4150280 |journal=Philosophical Transactions (1683-1775) |volume=23 |pages=1304–11|year = 1702| accessdate = 2007-08-19 |doi=10.1098/rstl.1702.0042}}</ref> १६८३ ई. में ल्यूवेनहॉक ने जीवाणु का चित्रण कर अपने मत की पुष्टि की। [[१८६४]] ई. में फ्रांसनिवासी [[लूई पाश्चर]] तथा [[१८९०]] ई. में कोच ने यह मत व्यक्त किया कि इन जीवाणुओं से रोग फैलते हैं।<ref>{{cite web | url = http://biotech.law.lsu.edu/cphl/history/articles/pasteur.htm#paperII | title = Pasteur's Papers on the Germ Theory | publisher = LSU Law Center's Medical and Public Health Law Site, Historic Public Health Articles | accessdate = 2006-11-23}}</ref> पाश्चर ने [[१९८९]] में प्रयोंगो द्वारा दिखाया कि [[किण्वन]] की रासायनिक क्रिया सुक्ष्मजीवों द्वारा होती है। कोच सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरूष माने जाते हैं, इन्होंने कॉलेरा, [[ऐन्थ्रेक्स]] तथा क्षय रोगो पर गहन अध्ययन किया। अंततः कोच ने यह सिद्ध कर दीया कि कई रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं। इसके लिए [[१९०५]] ई. में उन्हें [[नोबेल पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया।<ref>{{cite web | url = http://nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/1905/ | title = The Nobel Prize in Physiology or Medicine 1905 | publisher =  Nobelprize.org | accessdate = 2006-11-22}}</ref> कोच रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं।<ref>{{cite journal |author=O'Brien S, Goedert J |title=HIV causes AIDS: Koch's postulates fulfilled |journal=Curr Opin Immunol |volume=8 |issue=5 |pages=613–618 |year=1996 |pmid=8902385 |doi=10.1016/S0952-7915(96)80075-6}}</ref>
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जीवाणुओं को सबसे पहले डच वैज्ञानिक एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक ने 1676 ई. में अपने ही बनाए एकल लेंस सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा पर उस समय उसने इन्हें जंतुक समझा था। उसने रायल सोसाइटी को अपने अवलोकनों की पुष्टि के लिए कई पत्र लिखे। 1683 ई. में ल्यूवेनहॉक ने जीवाणु का चित्रण कर अपने मत की पुष्टि की। [[1864]] ई. में [[फ्रांस]] निवासी लूई पाश्चर तथा [[1890]] ई. में कोच ने यह मत व्यक्त किया कि इन जीवाणुओं से रोग फैलते हैं। पाश्चर ने [[1989]] में प्रयोंगो द्वारा दिखाया कि किण्वन की रासायनिक क्रिया सूक्ष्मजीवों द्वारा होती है। कोच सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरुष माने जाते हैं, इन्होंने कॉलेरा, ऐन्थ्रेक्स तथा क्षय रोगों पर गहन अध्ययन किया। अंततः कोच ने यह सिद्ध कर दिया कि कई रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं। इसके लिए [[1905]] ई. में उन्हें [[नोबेल पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया। कोच ने रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं। जीवाणु कई रोगों के कारक हैं यह 19वीं शताब्दी तक सभी जान गएं परन्तु फिर भी कोई प्रभावी प्रतिजैविकी की खोज नहीं हो सकी। सबसे पहले प्रतिजैविकी का आविष्कार [[1910]] में पॉल एहरिच ने किया। जिससे सिफलिस रोग की चिकित्सा संभव हो सकी। इसके लिए [[1908]] ई. में उन्हें चिकित्साशास्त्र में [[नोबेल पुरस्कार]] प्रदान किया गया। इन्होंने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की कारगार विधियां खोज निकाली, जिनके आधार पर ग्राम स्टेन की रचना संभव हुई।
जीवाणु कई रोगों के कारक हैं यह १९वीं शताब्दी तक सभी जान गएं परन्तु फिर भी कोई प्रभावी प्रतिजैविकी की खोज नहीं हो सकी।<ref>{{cite journal |author=Thurston A |title=Of blood, inflammation and gunshot wounds: the history of the control of sepsis |journal=Aust N Z J Surg |volume=70 |issue=12 |pages=855–61 |year=2000 |pmid=11167573 |doi=10.1046/j.1440-1622.2000.01983.x}}</ref> सबसे पहले प्रतिजैविकी का आविष्कार [[१९१०]] में पॉल एहरिच ने किया। जिससे [[सिफलिस]] रोग की चिकित्सा संभव हो सकी।<ref>{{cite journal |author=Schwartz R |title=Paul Ehrlich's magic bullets |journal=N Engl J Med |volume=350 |issue=11 |pages=1079–80 |year=2004|pmid = 15014180 |doi=10.1056/NEJMp048021}}</ref> इसके लिए [[१९०८]] ई. में उन्हें [[चिकित्साशास्त्र]] में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्होंने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की कारगार विधियां खोज निकाली, जिनके आधार पर ग्राम स्टेन की रचना संभव हुई।<ref>{{cite web | url = http://nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/1908/ehrlich-bio.html | title = Biography of Paul Ehrlich | publisher =  Nobelprize.org | accessdate = 2006-11-26}}</ref>
 
 
 
 
== उत्पत्ति एवं क्रमविकास ==
 
== उत्पत्ति एवं क्रमविकास ==
आधुनिक जीवाणुओं के पूर्वज वे एक कोशिकीय [[सूक्ष्मजीव]] थें जिनकी उत्पत्ति ४० करोड़ वर्षों पूर्व पृथ्वीं पर जीवन के प्रथम रूप में हुई। लगभग ३० करोड़ वर्षों तक पृथ्वीं पर जीवन के नाम पर सूक्ष्मजीव ही थे। इनमें जीवाणु तथा आर्किया मुख्य थें।<ref>{{cite journal |author=Schopf J |title=Disparate rates, differing fates: tempo and mode of evolution changed from the Precambrian to the Phanerozoic |journal=Proc Natl Acad Sci U S a |volume=91 |issue=15 |pages=6735–42 |year=1994 |pmid=8041691 |pmc=44277 |doi=10.1073/pnas.91.15.6735 |url=http://www.pnas.org/cgi/pmidlookup?view=long&pmid=8041691}}</ref><ref>{{cite journal |author=DeLong E, Pace N |title=Environmental diversity of bacteria and archaea |journal=Syst Biol |volume=50 |issue=4 |pages=470–78 |year=2001|pmid = 12116647 |doi=10.1080/106351501750435040}}</ref> स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे जीवाणुओं के जीवाश्म पाये गएं हैं परन्तु इनकी अस्पष्ट बाह्य संरचना के कारण जीवाणुओं को समझनें में इनसे कोई खास मदद नहीं मिली।
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आधुनिक जीवाणुओं के पूर्वज वे एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव थे जिनकी उत्पत्ति 40 करोड़ वर्षों पूर्व पृथ्वी पर जीवन के प्रथम रूप में हुई। लगभग 30 करोड़ वर्षों तक पृथ्वी पर जीवन के नाम पर सूक्ष्मजीव ही थे। इनमें जीवाणु तथा आर्किया मुख्य थे। स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे जीवाणुओं के जीवाश्म पाये गए हैं परन्तु इनकी अस्पष्ट बाह्य संरचना के कारण जीवाणुओं को समझनें में इनसे कोई ख़ास मदद नहीं मिली।
 
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====निस्संक्रामक====
== संदर्भ ==
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{{मुख्य|निस्संक्रामक}}
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रोगाणुओं, जीवाणुओं और सूक्ष्माणुओं को मार डालने के लिए [[निस्संक्रामक|निस्संक्रामकों]] का प्रयोग होता है। इससे संक्रामक रोगों को रोकने में सहायता मिलती है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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[[श्रेणी:जीव विज्ञान]]
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==संबंधित लेख==
[[श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी]]
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{{सूक्ष्म जीव}}
[[श्रेणी:जीवाणु]]
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07:54, 23 मार्च 2020 के समय का अवतरण

जीवाणु
Bacteria

जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिमी तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छङा, आदि आकार की हो सकती है। ये प्रोकैरियोटिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में जल में, भू-पपड़ी में, यहाँ तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में 4 करोड़ जीवाणु कोष तथा 1 मिलीलीटर जल में 10 लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग 5X1030 जीवाणु पाए जाते हैं। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थीरीकरण में। हाँलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधे जातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्मजैविकी की ही एक शाखा है।

परिचय

मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग 10 गुणा अधिक तो जीवाणु कोष है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा आहारनाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्मयुन तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुक़सान नहीं पहुंचा पाते हैं। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि। सिर्फ़ क्षय रोग से प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख लोग मरते हैं जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं। विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जीवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र में जीवाणुओं के किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।

पहले जीवाणुओं को पौधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण प्रोकैरियोट्स के रूप में होता है। दूसरे जन्तु कोशिकों तथा यूकैरियोट्स की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसित केन्द्रक का सर्वथा अभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग यदा कदा ही पाए जाते हैं। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण 1990 में हुए एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने है जिनका क्रम विकास एक ही पूर्वज से हुआ। इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं आर्किया कहा जाता है।

इतिहास

कोक्सीएला बर्नेटी जीवाणु
Coxiella burnetti Bacteria

जीवाणुओं को सबसे पहले डच वैज्ञानिक एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक ने 1676 ई. में अपने ही बनाए एकल लेंस सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा पर उस समय उसने इन्हें जंतुक समझा था। उसने रायल सोसाइटी को अपने अवलोकनों की पुष्टि के लिए कई पत्र लिखे। 1683 ई. में ल्यूवेनहॉक ने जीवाणु का चित्रण कर अपने मत की पुष्टि की। 1864 ई. में फ्रांस निवासी लूई पाश्चर तथा 1890 ई. में कोच ने यह मत व्यक्त किया कि इन जीवाणुओं से रोग फैलते हैं। पाश्चर ने 1989 में प्रयोंगो द्वारा दिखाया कि किण्वन की रासायनिक क्रिया सूक्ष्मजीवों द्वारा होती है। कोच सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरुष माने जाते हैं, इन्होंने कॉलेरा, ऐन्थ्रेक्स तथा क्षय रोगों पर गहन अध्ययन किया। अंततः कोच ने यह सिद्ध कर दिया कि कई रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं। इसके लिए 1905 ई. में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कोच ने रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं। जीवाणु कई रोगों के कारक हैं यह 19वीं शताब्दी तक सभी जान गएं परन्तु फिर भी कोई प्रभावी प्रतिजैविकी की खोज नहीं हो सकी। सबसे पहले प्रतिजैविकी का आविष्कार 1910 में पॉल एहरिच ने किया। जिससे सिफलिस रोग की चिकित्सा संभव हो सकी। इसके लिए 1908 ई. में उन्हें चिकित्साशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्होंने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की कारगार विधियां खोज निकाली, जिनके आधार पर ग्राम स्टेन की रचना संभव हुई।

उत्पत्ति एवं क्रमविकास

आधुनिक जीवाणुओं के पूर्वज वे एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव थे जिनकी उत्पत्ति 40 करोड़ वर्षों पूर्व पृथ्वी पर जीवन के प्रथम रूप में हुई। लगभग 30 करोड़ वर्षों तक पृथ्वी पर जीवन के नाम पर सूक्ष्मजीव ही थे। इनमें जीवाणु तथा आर्किया मुख्य थे। स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे जीवाणुओं के जीवाश्म पाये गए हैं परन्तु इनकी अस्पष्ट बाह्य संरचना के कारण जीवाणुओं को समझनें में इनसे कोई ख़ास मदद नहीं मिली।

निस्संक्रामक

रोगाणुओं, जीवाणुओं और सूक्ष्माणुओं को मार डालने के लिए निस्संक्रामकों का प्रयोग होता है। इससे संक्रामक रोगों को रोकने में सहायता मिलती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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