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डाकघर

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डाकघर, कोलकाता

लगभग 500 साल पुरानी 'भारतीय डाक प्रणाली' आज दुनिया की सबसे विश्वसनीय और बेहतर डाक प्रणाली में अव्वल स्थान पर है। आज भी हमारे यहाँ हर साल क़रीब 900 करोड़ चिठिया को भारतीय डाक द्वारा दरवाज़े - दरवाज़े तक पहुंचा जाता है।

भारतीय डाक-व्यवस्था

अंग्रेज़ों ने सैन्य और खुफ़िया सेवाओं की मदद के मक़सद लिए भारत में पहली बार 1688 में मुंबई में पहला डाकघर खोला। फिर उन्होंने अपने सुविधा के लिए देश के अन्य इलाकों में डाकघरों की स्थापना करवाई। 1766 में लॉर्ड क्‍लाइव द्वारा डाक-व्‍यवस्‍था के विकास के लिए कई कदम उठाते हुए, भारत में एक आधुनिक डाक-व्यवस्था की नींव रखी गई। इस सम्बंध में आगे का काम वारेन हेस्‍टिंग्‍स द्वारा किया गया, उन्होंने 1774 में कलकत्ता में पहले जनरल पोस्‍ट ऑफिस की स्‍थापना की। यह जी.पी ओ (जनरल पोस्‍ट ऑफिस) एक पोस्‍टमास्‍टर जनरल के अधीन कार्य करता था। फिर आगे 1786 में मद्रास और 1793 में बंबई प्रेसीडेंसी में 'जनरल पोस्‍ट ऑफिस' की स्थापना की गई।[1]

डाकघर, लखनऊ

अखिल भारतीय सेवा

1837 में एक अधिनियम द्वारा भारतीय डाकघरों के लिए एक अखिल भारतीय सेवा को प्रारम्भ किया गया और फिर 1854 के 'पोस्‍ट ऑफिस अधिनियम' से पूरी डाक प्रणाली के स्‍वरूप में एक नया बदलाव आया  और पहली अक्तूबर 1854 को एक महानिदेशक के नियंत्रण में भारतीय डाक-प्रणाली ने आधुनिक रूप में काम करना प्रारम्भ कर दिया। उस समय भारत में कुल 701 डाकघर थे। इसी साल 'रेल डाक सेवा' की भी स्थापना हुई और भारत से ब्रिटेन और चीन के बीच 'समुद्री डाक सेवा' भी प्रारम्भ की गई। इसी वर्ष देश भर में पहला वैध डाक टिकट भी जारी किया गया।[1]

सदस्यता

डाकघर, बैंगलोर

भारत 1876 से 'यूनिवर्सल पोस्‍टल यूनियन' (यू.पी.यू.) का और 1964 से 'एशिया प्रशांत पोस्‍टल यूनियन' (ए.पी.पी.यू.) का सदस्‍य है। भारतीय डाक 217 से भी अधिक देशों के साथ स्‍थलीय और विमान सेवा द्वारा पत्रों का आदान-प्रदान करता है। भारतीय डाक द्वारा 27 देशों के साथ मनीऑर्डर सेवा की व्‍यवस्‍था की गई है और 25 देशों के साथ सिर्फ पैसा आने वाली ( भुगतान) सुविधा उपलब्‍ध की गई है। जबकि भूटान एवं नेपाल के साथ दोतरफा मनीऑर्डर सेवा की व्यवस्था की गई है। 'अंतरराष्ट्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक मनीऑर्डर सेवा' द्वारा 97 देशों के साथ इलेक्‍ट्रॉनिक मनीऑर्डर सेवा चलायी जा रही है।

डाकघर, मुम्बई

सबसे बड़ी डाक प्रणाली

आज़ादी के समय देश भर में 23,344 डाकघर थे। इनमें से 19,184 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में और 4,160 शहरी क्षेत्रों में थे। आजादी के बाद डाक नेटवर्क का सात गुना से ज्यादा विस्तार हुआ है। आज एक लाख 55 हज़ार डाकघरों के साथ भारतीय डाक प्रणाली विश्व में पहले स्थान पर है। लगभग एक लाख 55 हज़ार से भी ज़्यादा डाकघरों वाला भारतीय डाक तंत्र विश्व की सबसे बड़ी डाक प्रणाली होने के साथ-साथ देश में सबसे बड़ा रिटेल नेटवर्क भी है। यह देश का पहला बचत बैंक भी था और आज इसके 16 करोड़ से भी ज़्यादा खातेदार हैं और डाकघरों के खाते में दो करोड़ 60 लाख करोड़ से भी अधिक राशि जमा है। इस विभाग का सालाना राजस्व 1500 करोड़ से भी अधिक है।[1]

स्वरूप

डाकघर, संसद मार्ग

देशभर में डेढ़ लाख से ज़्यादा डाकघर हैं। जिसकी सेवाएं लोग कई तरीकों से रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करते हैं।

बड़े डाकघर

  1. सब पोस्ट ऑफिस
  2. हेड पोस्ट ऑफिस
  3. जनरल पोस्ट ऑफिस
  • ये पोस्ट ऑफिस सभी प्रकार की सेवाएं उपलब्ध कराते हैं ।

छोटे डाकघऱ

  1. शाखा पोस्ट ऑफिस
  2. विभागेत्तर पोस्ट ऑफिस
  • इन पोस्ट ऑफिसों में रोजमर्रा की जरुरतों की जरुरी सेवाएं ही उपलब्ध होती हैं।[2]

डाक सेवा का विकास

पिछले कई सालों में डाक वितरण के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ है और यह डाकिए द्वारा चिट्ठी बांटने से स्पीड पोस्ट और स्पीड पोस्ट से ई-पोस्ट के युग में पहुंच गया है । पोस्ट कार्ड 1879 में चलाया गया जबकि 'वैल्यू पेएबल पार्सल' (वीपीपी), पार्सल और बीमा पार्सल 1977 में शुरू किए गए। भारतीय पोस्टल आर्डर 1930 में शुरू हुआ । तेज डाक वितरण के लिए पोस्टल इंडेक्स नंबर (पिनकोड) 1972 में शुरू हुआ । तेजी से बदलते परिदृश्य और हालात को मद्दे नजर रखते हुए 1985 में डाक और दूरसंचार विभाग को अलग-अलग कर दिया गया । समय की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 1986 में स्पीड पोस्ट शुरू हुई ओर 1994 में मेट्रो, राजधानी, व्यापार चैनल, ईपीएस और वीसैट के माध्यम से मनी ऑर्डर भेजा जाना शुरू किया गया।

संचार का मजबूत साधन

डाकघर ने राष्ट्र को परस्पर जोड़ने, वाणिज्य के विकास में सहयोग करने और विचार व सूचना के अबाध प्रवाह में मदद की है। डाक वितरण में पैदल से घोड़ा गाड़ी द्वारा, फिर रेल मार्ग से, वाहनों से लेकर हवाई जहाज तक विकास हुआ है । पिछले कई सालों में डाक लाने ले जाने के तरीकों और परिमाण में बदलाव आया है । आज डाक यंत्रीकरण और स्वचालन पर जोर दिया जा रहा है, जिन्हें उत्पादकता और गुणवत्ता सुधारने तथा उत्तम डाक सेवा प्रदान करने के लिए अपना लिया गया है । डाक सेवाओं के सामाजिक और आर्थिक कर्तव्य हैं जो कारोबारी नज़रिए से बिलकुल अलग हैं । विशेषतः विकासशील देशों में ऐसा ही है। भरोसेमंद डाक व्यवस्था आधुनिक सूचना व वितरण ढांचे का अहम अंग है। इसके अलावा वह आर्थिक विकास और ग़रीबी कम करने में एक महत्वपूर्ण साधन है।[3]

चित्र वीथिका


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 डाकघर की कहानी इतिहास की जुबानी (हिंदी) IAS। अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  2. डाक सेवा का अधिकार (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।
  3. भारतीय डाकघर का इतिहास (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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