"दूर्वा" के अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
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[[चित्र:Cynodon-dactylon-1.jpg|thumb|250px|दूर्वा घास]]
*[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष]] की अष्टमी को इस नाम से पुकारा जाता है।<ref>निर्णयामृत (61); समयमयूख (56-57)</ref>
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'''दूर्वा''' अथवा 'दूब' ज़मीन पर फैल कर बढ़ने वाली घास है, जिसका [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। इस घास का वैज्ञानिक नाम 'साइनोडान डेक्टीलान' है। यह घास औषधि के रूप में भी विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। [[वर्षा]] काल में दूर्वा घास अधिक वृद्धि करती है तथा [[वर्ष]] में दो बार [[सितम्बर]]-[[अक्टूबर]] और [[फ़रवरी]]-[[मार्च]] में इसमें [[फूल]] आते है। दूर्वा सम्पूर्ण [[भारत]] में पाई जाती है।
*उस अष्टमी को यह व्रत किया जाता है।
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*[[हिन्दू]] मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान [[गणेश|श्रीगणेश]] को बहुत प्रिय है।
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*दूर्वा को [[संस्कृत]] में 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से भी जानते हैं।
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*हिन्दू [[संस्कार|संस्कारों]] एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है।
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*चाहे '[[नाग पंचमी]]' का पूजन हो या [[विवाह]] आदि का उत्सव या फिर अन्य कोई शुभ मांगलिक अवसर, पूजन-सामग्री के रूप में दूर्वा की उपस्थिति से उस समय उत्सव की शोभा और भी बढ़ जाती है।
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*दूर्वा का पौधा ज़मीन से ऊँचा नहीं उठता, बल्कि ज़मीन पर ही फैला हुआ रहता है, इसलिए इसकी नम्रता को देखकर [[गुरु नानक]] ने एक स्थान पर कहा है-
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12:15, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

दूर्वा घास

दूर्वा अथवा 'दूब' ज़मीन पर फैल कर बढ़ने वाली घास है, जिसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। इस घास का वैज्ञानिक नाम 'साइनोडान डेक्टीलान' है। यह घास औषधि के रूप में भी विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। वर्षा काल में दूर्वा घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूर्वा सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है।

  • हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है।
  • दूर्वा को संस्कृत में 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से भी जानते हैं।
  • हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है।
  • चाहे 'नाग पंचमी' का पूजन हो या विवाह आदि का उत्सव या फिर अन्य कोई शुभ मांगलिक अवसर, पूजन-सामग्री के रूप में दूर्वा की उपस्थिति से उस समय उत्सव की शोभा और भी बढ़ जाती है।
  • दूर्वा का पौधा ज़मीन से ऊँचा नहीं उठता, बल्कि ज़मीन पर ही फैला हुआ रहता है, इसलिए इसकी नम्रता को देखकर गुरु नानक ने एक स्थान पर कहा है-

नानकनी चाहो चले, जैसे नीची दूब
और घास सूख जाएगा, दूब खूब की खूब।

  • भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है।
  • तीन दूर्वा का प्रयोग यज्ञ में होता है। ये 'आणव'[1], 'कार्मण'[2] और 'मायिक'[3] रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है।



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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भौतिक
  2. कर्मजनित
  3. माया से प्रभावित

संबंधित लेख