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==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
 
* देवकरन ब्रज की तहसील सादाबाद के कुरसण्डा ग्राम के एक प्रतिष्ठित ज़मींदार थे। श्री धनीराम के पुत्र दौलतराम और दौलतराम के पुत्र थे श्री गिरधारी। गिरधारी जी के तीन पुत्र हुए मैकिशोर, देवकरन और पीताम्बर। स्वतंत्रता के यज्ञ कुण्ड में मस्तक चढ़ाने वाले देवकरन जी गिरधारी जी के मँझले पुत्र थे।
 
* देवकरन ब्रज की तहसील सादाबाद के कुरसण्डा ग्राम के एक प्रतिष्ठित ज़मींदार थे। श्री धनीराम के पुत्र दौलतराम और दौलतराम के पुत्र थे श्री गिरधारी। गिरधारी जी के तीन पुत्र हुए मैकिशोर, देवकरन और पीताम्बर। स्वतंत्रता के यज्ञ कुण्ड में मस्तक चढ़ाने वाले देवकरन जी गिरधारी जी के मँझले पुत्र थे।
* श्री देवकरन जी का विवाह [[भरतपुर]] के पथेने गाँव के राजा की पुत्री से बड़ी धूम-धाम से हुआ था। वहाँ से इन्हें 101 गाय दहेज में प्राप्त हुई थीं, जिनके सींग सोने से मढ़े गए थे। वह अपने क्षेत्र के एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार थे।
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* श्री देवकरन जी का विवाह [[भरतपुर]] के पथेने गाँव के राजा की पुत्री से बड़ी धूम-धाम से हुआ था। वहाँ से इन्हें 101 [[गाय]] दहेज में प्राप्त हुई थीं, जिनके सींग [[सोना|सोने]] से मढ़े गए थे। वह अपने क्षेत्र के एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार थे।
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=मुझे यह गौरव प्राप्त है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के यह महान बलिदानी वीर देवकरन जी मेरे पितामहों में से थे। उनके छोटे भाई श्री पीताम्बर सिंह जी के पुत्र श्री छत्तर सिंह जी मेरे पूज्य पिता थे। इस प्रकार [[ब्रज]] के इस बलिदानी और वीर परिवार में जन्म लेने का ही शायद यह परिणाम है कि राष्ट्रीयता व देशभक्ति के कुछ ऐसे बीज मेरे रक्त में भी परम्परा से रहे हैं, जिनके कारण भारत माता के स्वतंत्रता संग्राम में मुझे भी सन [[1941]] और [[1942]] के आन्दोलन में जेल जाने तथा देश की कुछ सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।|विचारक=[[चौधरी दिगम्बर सिंह]]}}
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=मुझे यह गौरव प्राप्त है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के यह महान बलिदानी वीर देवकरन जी मेरे पितामहों में से थे। उनके छोटे भाई श्री पीताम्बर सिंह जी के पुत्र श्री छत्तर सिंह जी मेरे पूज्य पिता थे। इस प्रकार [[ब्रज]] के इस बलिदानी और वीर परिवार में जन्म लेने का ही शायद यह परिणाम है कि राष्ट्रीयता व देशभक्ति के कुछ ऐसे बीज मेरे रक्त में भी परम्परा से रहे हैं, जिनके कारण भारत माता के स्वतंत्रता संग्राम में मुझे भी सन [[1941]] और [[1942]] के आन्दोलन में जेल जाने तथा देश की कुछ सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।|विचारक=[[चौधरी दिगम्बर सिंह]]}}
 
* सन 1857 के युद्ध में इन्होंने आस-पास के ग्रामवासियों को संगठित करके सादाबाद तहसील पर अपना अधिकार कर लिया था, इसलिए जब [[आगरा]] की सेना ने पुन: सादाबाद को जीता, तब श्री देवकरन गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेज़ी सेना ने यह शर्त लगाई कि "तुम हमें शान्त रह कर आस-पास के गाँवों की लूट करने दो, क्योंकि इन गाँव वालों ने बगावत में तुम्हारा साथ दिया है। हम तुम्हें इसी शर्त पर छोड़ सकते हैं अन्यथा तुम्हें फाँसी दी जायेगी।" इस बात को सुनकर देवकरन जी ने कहा "आप मेरे जीते जी गाँव वालों की लूट नहीं कर सकते, आप मुझे फाँसी दे दें।" उनका यह उत्तर सुनकर अंग्रेज़ सेनापति ने उनकी फाँसी का हुक्म दे दिया और उन्हें फाँसी देने के लिए आगरा ले जाने का बंदोबस्त कर दिया गया।
 
* सन 1857 के युद्ध में इन्होंने आस-पास के ग्रामवासियों को संगठित करके सादाबाद तहसील पर अपना अधिकार कर लिया था, इसलिए जब [[आगरा]] की सेना ने पुन: सादाबाद को जीता, तब श्री देवकरन गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेज़ी सेना ने यह शर्त लगाई कि "तुम हमें शान्त रह कर आस-पास के गाँवों की लूट करने दो, क्योंकि इन गाँव वालों ने बगावत में तुम्हारा साथ दिया है। हम तुम्हें इसी शर्त पर छोड़ सकते हैं अन्यथा तुम्हें फाँसी दी जायेगी।" इस बात को सुनकर देवकरन जी ने कहा "आप मेरे जीते जी गाँव वालों की लूट नहीं कर सकते, आप मुझे फाँसी दे दें।" उनका यह उत्तर सुनकर अंग्रेज़ सेनापति ने उनकी फाँसी का हुक्म दे दिया और उन्हें फाँसी देने के लिए आगरा ले जाने का बंदोबस्त कर दिया गया।
 
* सादाबाद से एक व्यक्ति उनके खाली घोड़े के साथ यह समाचार लेकर कुरसण्डा पहुँचा कि देवकरन फाँसी के लिए आगरा ले जाए जा रहे हैं। तब कुरसण्डा से भारी जनसमूह पैदल, घोड़ों और गाड़ियों पर चढ़-चढ़कर उन्हें छुड़ाने के लिए उमड़ पड़ा। जब भीड़ का यह सागर अंग्रेज़ी सेना ने दूर से आते देखा तो उन्होंने रास्ते के खदौली गाँव में एक बबूल के पेड़ पर लटका कर वहीं देवकरन जी को फाँसी दे दी और स्वयं आगरा भाग गए। जनता जब पेड़ के निकट पहुँची तो उन्हें देवकरन जी का निष्प्राण शरीर ही देखने को मिला। उन्होंने इस वीर शहीद को पेड़ से उतारा और हज़ारों लोगों की उपस्थिति में उस वीर का अन्तिम संस्कार सम्पन्न किया।
 
* सादाबाद से एक व्यक्ति उनके खाली घोड़े के साथ यह समाचार लेकर कुरसण्डा पहुँचा कि देवकरन फाँसी के लिए आगरा ले जाए जा रहे हैं। तब कुरसण्डा से भारी जनसमूह पैदल, घोड़ों और गाड़ियों पर चढ़-चढ़कर उन्हें छुड़ाने के लिए उमड़ पड़ा। जब भीड़ का यह सागर अंग्रेज़ी सेना ने दूर से आते देखा तो उन्होंने रास्ते के खदौली गाँव में एक बबूल के पेड़ पर लटका कर वहीं देवकरन जी को फाँसी दे दी और स्वयं आगरा भाग गए। जनता जब पेड़ के निकट पहुँची तो उन्हें देवकरन जी का निष्प्राण शरीर ही देखने को मिला। उन्होंने इस वीर शहीद को पेड़ से उतारा और हज़ारों लोगों की उपस्थिति में उस वीर का अन्तिम संस्कार सम्पन्न किया।
 
* जब अंग्रेज़ों को यह पता चला तो वह और बौखला गए। पुलिस द्वारा देवकरन तथा उनके परिवार के घर बुरी तरह लूटे गए और 3 महिनों तक लगातार पुलिस उनके घर को घेरे पड़ी रही। इस प्रकार कुरसण्डा गाँव का सन 1857 ई. के प्रथम महायुद्ध में बड़ा प्रमुख भाग था।
 
* जब अंग्रेज़ों को यह पता चला तो वह और बौखला गए। पुलिस द्वारा देवकरन तथा उनके परिवार के घर बुरी तरह लूटे गए और 3 महिनों तक लगातार पुलिस उनके घर को घेरे पड़ी रही। इस प्रकार कुरसण्डा गाँव का सन 1857 ई. के प्रथम महायुद्ध में बड़ा प्रमुख भाग था।
 
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*In the mutiny the place was attacked by the Jats, and seven lives were lost before they could be repulsed. A Thakur of Hathras, by name Samant Sinh, who led the defence, subsequently had a grant of a village in Aligarh, while two of the Jat ringleaders, Zalim and Deokaran of Kursanda, were hanged.<ref>{{cite web |url=http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=Mathura_A_District_Memoir_Chapter-13 |title=Mathura A District Memoir Chapter-13 |accessmonthday=31 जुलाई |accessyear=2012 |last=[[ग्राउस]] |first=एफ.एस. |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=ब्रजडिस्कवरी |language=हिन्दी }} </ref>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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मूल स्रोत: {{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=राजा महेन्द्र प्रताप  |लेखक=चौधरी दिगम्बर सिंह |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौ. दिगम्बर सिंह |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=395 |url=|ISBN=}}
 
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08:21, 31 जुलाई 2012 का अवतरण

चौधरी देवकरन सिंह ब्रज के अमर शहीद थे। सन 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिन ब्रजवासियों ने वीरता पूर्वक सहर्ष मृत्यु का आलिंगन किया, उनमें से श्री देवकरन जी भी थे।

जीवन परिचय

  • देवकरन ब्रज की तहसील सादाबाद के कुरसण्डा ग्राम के एक प्रतिष्ठित ज़मींदार थे। श्री धनीराम के पुत्र दौलतराम और दौलतराम के पुत्र थे श्री गिरधारी। गिरधारी जी के तीन पुत्र हुए मैकिशोर, देवकरन और पीताम्बर। स्वतंत्रता के यज्ञ कुण्ड में मस्तक चढ़ाने वाले देवकरन जी गिरधारी जी के मँझले पुत्र थे।
  • श्री देवकरन जी का विवाह भरतपुर के पथेने गाँव के राजा की पुत्री से बड़ी धूम-धाम से हुआ था। वहाँ से इन्हें 101 गाय दहेज में प्राप्त हुई थीं, जिनके सींग सोने से मढ़े गए थे। वह अपने क्षेत्र के एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार थे।

Blockquote-open.gif मुझे यह गौरव प्राप्त है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के यह महान बलिदानी वीर देवकरन जी मेरे पितामहों में से थे। उनके छोटे भाई श्री पीताम्बर सिंह जी के पुत्र श्री छत्तर सिंह जी मेरे पूज्य पिता थे। इस प्रकार ब्रज के इस बलिदानी और वीर परिवार में जन्म लेने का ही शायद यह परिणाम है कि राष्ट्रीयता व देशभक्ति के कुछ ऐसे बीज मेरे रक्त में भी परम्परा से रहे हैं, जिनके कारण भारत माता के स्वतंत्रता संग्राम में मुझे भी सन 1941 और 1942 के आन्दोलन में जेल जाने तथा देश की कुछ सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। Blockquote-close.gif

  • सन 1857 के युद्ध में इन्होंने आस-पास के ग्रामवासियों को संगठित करके सादाबाद तहसील पर अपना अधिकार कर लिया था, इसलिए जब आगरा की सेना ने पुन: सादाबाद को जीता, तब श्री देवकरन गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेज़ी सेना ने यह शर्त लगाई कि "तुम हमें शान्त रह कर आस-पास के गाँवों की लूट करने दो, क्योंकि इन गाँव वालों ने बगावत में तुम्हारा साथ दिया है। हम तुम्हें इसी शर्त पर छोड़ सकते हैं अन्यथा तुम्हें फाँसी दी जायेगी।" इस बात को सुनकर देवकरन जी ने कहा "आप मेरे जीते जी गाँव वालों की लूट नहीं कर सकते, आप मुझे फाँसी दे दें।" उनका यह उत्तर सुनकर अंग्रेज़ सेनापति ने उनकी फाँसी का हुक्म दे दिया और उन्हें फाँसी देने के लिए आगरा ले जाने का बंदोबस्त कर दिया गया।
  • सादाबाद से एक व्यक्ति उनके खाली घोड़े के साथ यह समाचार लेकर कुरसण्डा पहुँचा कि देवकरन फाँसी के लिए आगरा ले जाए जा रहे हैं। तब कुरसण्डा से भारी जनसमूह पैदल, घोड़ों और गाड़ियों पर चढ़-चढ़कर उन्हें छुड़ाने के लिए उमड़ पड़ा। जब भीड़ का यह सागर अंग्रेज़ी सेना ने दूर से आते देखा तो उन्होंने रास्ते के खदौली गाँव में एक बबूल के पेड़ पर लटका कर वहीं देवकरन जी को फाँसी दे दी और स्वयं आगरा भाग गए। जनता जब पेड़ के निकट पहुँची तो उन्हें देवकरन जी का निष्प्राण शरीर ही देखने को मिला। उन्होंने इस वीर शहीद को पेड़ से उतारा और हज़ारों लोगों की उपस्थिति में उस वीर का अन्तिम संस्कार सम्पन्न किया।
  • जब अंग्रेज़ों को यह पता चला तो वह और बौखला गए। पुलिस द्वारा देवकरन तथा उनके परिवार के घर बुरी तरह लूटे गए और 3 महिनों तक लगातार पुलिस उनके घर को घेरे पड़ी रही। इस प्रकार कुरसण्डा गाँव का सन 1857 ई. के प्रथम महायुद्ध में बड़ा प्रमुख भाग था।
  • In the mutiny the place was attacked by the Jats, and seven lives were lost before they could be repulsed. A Thakur of Hathras, by name Samant Sinh, who led the defence, subsequently had a grant of a village in Aligarh, while two of the Jat ringleaders, Zalim and Deokaran of Kursanda, were hanged.[1]
  • Kursanda was the home of the outlaw Deo Karan, who plundered Sadabad in the Mutiny and was subsequently, along with Zalim of the same village, hanged for rebellion.[2]
  • Sadabad and Mahaban had been tranquillized by Mr. Thornhill, but as soon as the news of the burning of Agra spread, all the country round Sadabad rose and plundered the tahsil and thana. This rising was headed by one Deo Karan.[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

मूल स्रोत: राजा महेन्द्र प्रताप |लेखक: चौधरी दिगम्बर सिंह |प्रकाशक: चौ. दिगम्बर सिंह |पृष्ठ संख्या: 395 |

  1. ग्राउस, एफ.एस.। Mathura A District Memoir Chapter-13 (हिन्दी) (पी.एच.पी) ब्रजडिस्कवरी। अभिगमन तिथि: 31 जुलाई, 2012।
  2. ड्रैक-ब्रोकमैन, डी.एल.। Mathura A Gazetteer-15 (हिन्दी) (पी.एच.पी) ब्रजडिस्कवरी। अभिगमन तिथि: 31 जुलाई, 2012।
  3. ड्रैक-ब्रोकमैन, डी.एल.। Mathura A Gazetteer-15 (हिन्दी) (पी.एच.पी) ब्रजडिस्कवरी। अभिगमन तिथि: 31 जुलाई, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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