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'''नन्नय्य भट्ट''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nannaya Bhatt'') [[तेलुगु भाषा]] के [[कवि]] थे। इन्हें "आंध्र साहित्य का आदिकवि" कहा जाता है। इनके द्वारा रचित आँध्र महाभारत का आदि अंश तेलुगु के उपलब्ध [[साहित्य]] में सबसे पहली काव्य रचना मानी जाती है। इनके पहले के जो फुटकर गीत मिले, वे [[भाषा]] और [[छंद]] की दृष्टि से देशी पद्धति के अनुसार हैं, जो [[संस्कृत]] में प्रतिपादित लक्षण के अनुसार नहीं हैं और इस कारण पंडितों के आदर पर पात्र नहीं हुए। 'उदात्तवस्तुक महाकाव्य' की रचना भी नन्नय्य भट्ट ने की थी।
 
'''नन्नय्य भट्ट''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nannaya Bhatt'') [[तेलुगु भाषा]] के [[कवि]] थे। इन्हें "आंध्र साहित्य का आदिकवि" कहा जाता है। इनके द्वारा रचित आँध्र महाभारत का आदि अंश तेलुगु के उपलब्ध [[साहित्य]] में सबसे पहली काव्य रचना मानी जाती है। इनके पहले के जो फुटकर गीत मिले, वे [[भाषा]] और [[छंद]] की दृष्टि से देशी पद्धति के अनुसार हैं, जो [[संस्कृत]] में प्रतिपादित लक्षण के अनुसार नहीं हैं और इस कारण पंडितों के आदर पर पात्र नहीं हुए। 'उदात्तवस्तुक महाकाव्य' की रचना भी नन्नय्य भट्ट ने की थी।
  

09:59, 3 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

नन्नय्य भट्ट

नन्नय्य भट्ट (अंग्रेज़ी: Nannaya Bhatt) तेलुगु भाषा के कवि थे। इन्हें "आंध्र साहित्य का आदिकवि" कहा जाता है। इनके द्वारा रचित आँध्र महाभारत का आदि अंश तेलुगु के उपलब्ध साहित्य में सबसे पहली काव्य रचना मानी जाती है। इनके पहले के जो फुटकर गीत मिले, वे भाषा और छंद की दृष्टि से देशी पद्धति के अनुसार हैं, जो संस्कृत में प्रतिपादित लक्षण के अनुसार नहीं हैं और इस कारण पंडितों के आदर पर पात्र नहीं हुए। 'उदात्तवस्तुक महाकाव्य' की रचना भी नन्नय्य भट्ट ने की थी।

जैन धर्म का प्रचार जब दक्षिण में जोरों से हो रहा था। चोल राजा वैदिक धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हुए। तमिल संघों में महाभारत का पारायण होने लगा। इसी भाव से प्रेरित होकर आंध्र के प्रतापी राजा राजराज नरेन्द्र ने अपने आस्थान के कुलगुरु तथा महाकवि नन्नय्य से प्रार्थना की कि व्यासकृत महाभारत का आंध्र भाषा में परिवर्तन किया जाए। तदनुसार नन्नय्य ने संस्कृत महाभारत के आधार पर, बहुश: अनुवाद के रूप में, आंध्र महाभारत की रचना की।

नन्नय्य भट्ट ने अपनी रचना में संस्कृत शब्दों का प्रयोग उसी रीति से किया जो उस समय आंध्र प्रांत में होता था। जनता के व्यवहार में जो तद्भव एवं देशज शब्द थे, उनको भी परिमार्जित रूप में ग्रहण किया। कुछ संस्कृत छंदों को लेकर यतिमैत्री तथा प्रासमैत्री के नियमों के अनुसार लिखा और कन्नड काव्यों में पाए जाने वाले अनेक प्रशस्त छंदों को भी लिया। महाभारत की रचना में नन्नय को नारायण भट्ट नामक मित्र से बड़ी सहायता मिली, जिसका उल्लेख नन्नय्य ने स्वयं अपने ग्रंथ की प्रस्तावना में किया। चंपू की तरह छोटे-छोटे गद्य के अंश भी इनकी रचनाओं में मिलते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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