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'''नरेन्द्र देव''' (जन्म- [[31 अक्टूबर]], [[1889]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[19 फ़रवरी]], [[1956]], [[मद्रास]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध विद्वान, समाजवादी, विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त थे। अपने [[पिता]] के प्रभाव से ही इनका राजनीति की ओर झुकाव हुआ था। नरेन्द्र देव गरम विचारों के व्यक्ति थे। वे सन [[1916]] से [[1948]] तक 'ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी' सदस्य रहे थे। देश की आज़ादी के लिए इन्होंने कई बार जेल यात्राएँ भी कीं और [[जवाहरलाल नेहरू]] के साथ [[अहमदनगर]] क़िले में भी बन्द रहे। नरेन्द्र जी का व्यक्तित्व बड़ा ही असाधारण था। वे [[हिन्दी]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]], [[पाली भाषा|पाली]] आदि भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। [[बौद्ध दर्शन]] के अध्ययन आदि में उनकी विशेष रुचि थी।
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'''नरेन्द्र देव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narendra Deva'', जन्म- [[31 अक्टूबर]], [[1889]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[19 फ़रवरी]], [[1956]], [[मद्रास]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध विद्वान, समाजवादी, विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त थे। अपने [[पिता]] के प्रभाव से ही इनका राजनीति की ओर झुकाव हुआ था। नरेन्द्र देव गरम विचारों के व्यक्ति थे। वे सन [[1916]] से [[1948]] तक 'ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे थे। देश की आज़ादी के लिए इन्होंने कई बार जेल यात्राएँ भी कीं और [[जवाहरलाल नेहरू]] के साथ [[अहमदनगर]] क़िले में भी बन्द रहे। नरेन्द्र जी का व्यक्तित्व बड़ा ही असाधारण था। वे [[हिन्दी]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]], [[पाली भाषा|पाली]] आदि भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। [[बौद्ध दर्शन]] के अध्ययन आदि में उनकी विशेष रुचि थी।
 
==जन्म तथा नामकरण==
 
==जन्म तथा नामकरण==
 
नरेन्द्र देव का जन्म 31 अक्टूबर, 1889 ई. को [[सीतापुर]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था। कुछ समय बाद उनके पिता अपने पैतृक नगर [[फैजाबाद]] वापस आ गए और यहीं पर अविनाशी लाल का बचपन बीता। इनके पिता के एक मित्र ने इनका नाम बदलकर नरेन्द्र देव रख दिया। घर का वातावरण धार्मिक और सामाजिक रूप में चेतना सजग था। इसके फलस्वरूप नरेन्द्र देव को अपने घर पर ही [[स्वामी रामतीर्थ]], [[पंडित मदनमोहन मालवीय]] जैसे महानुभावों के दर्शन हुए। यहीं से उनके अंदर [[भारतीय संस्कृति]] के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ और पिता के प्रभाव से राजनीति की ओर भी झुकाव हो गया।
 
नरेन्द्र देव का जन्म 31 अक्टूबर, 1889 ई. को [[सीतापुर]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था। कुछ समय बाद उनके पिता अपने पैतृक नगर [[फैजाबाद]] वापस आ गए और यहीं पर अविनाशी लाल का बचपन बीता। इनके पिता के एक मित्र ने इनका नाम बदलकर नरेन्द्र देव रख दिया। घर का वातावरण धार्मिक और सामाजिक रूप में चेतना सजग था। इसके फलस्वरूप नरेन्द्र देव को अपने घर पर ही [[स्वामी रामतीर्थ]], [[पंडित मदनमोहन मालवीय]] जैसे महानुभावों के दर्शन हुए। यहीं से उनके अंदर [[भारतीय संस्कृति]] के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ और पिता के प्रभाव से राजनीति की ओर भी झुकाव हो गया।
 
====व्यावसायिक जीवन====
 
====व्यावसायिक जीवन====
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद नरेन्द्र देव ने अपने व्यावसायिक जीवन के तहत सन [[1920]] तक फैजाबाद में वकालत की, परन्तु राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] का '[[असहयोग आंदोलन]]' आंरभ होते ही इन्होंने वकालत त्याग दी। बाद में [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] के परामर्श वे पर '[[काशी विद्यापीठ]]' में अंध्यापक होकर चले गए। सन [[1926]] में नरेन्द्र देव इस संस्था के कुलपति भी बन गए। वहीं [[श्रीप्रकाश]] ने आपको 'आंयार्य़' सम्बोधन से पुकारना शुरु किया था, जो जीवन पर्यन्त इनके नाम का अंग बना रहा।
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==राजनीति में प्रवेश==
 
==राजनीति में प्रवेश==
आचार्य नरेन्द्र देव विधाथी जीवन से ही रातनीति की गतिविधिय़ों में भाग लेने थे। वे अपने गरम विचारों के व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। सन [[1916]] से [[1948]] तक वे 'ऑल इंड़िया कांग्रेस कमेटी' के सदस्य भी रहे थे। नेहरू जी के साथ 'कांग्रेस वर्किंग कमेटी' के भी सदस्य रहे।
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आचार्य नरेन्द्र देव विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति की गतिविधियों में भाग लेने थे। वे अपने गरम विचारों के व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। सन [[1916]] से [[1948]] तक वे 'ऑल इंड़िया कांग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे थे। नेहरू जी के साथ 'कांग्रेस वर्किंग कमेटी' के भी वे सक्रिय सदस्य रहे।
 
====जेल यात्रा====
 
====जेल यात्रा====
 
सन [[1930]], [[1932]] और [[1942]] के आंदोलनों में आचार्य नरेन्द्र देव ने जेल यात्राएँ कीं। वे 1942 से [[1945]] तक [[जवाहरलाल नेहरू|जवाहरलाल नेहरू जी]] आदि के साथ [[अहमदनगर]] क़िले में भी बंद रहे। यहीं पर उनके पांड़ित्य से प्रभावित होकर नेहरूजी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ़ इंड़िया" की पांडुलिपि में उनसे संशोधन करवाया।
 
सन [[1930]], [[1932]] और [[1942]] के आंदोलनों में आचार्य नरेन्द्र देव ने जेल यात्राएँ कीं। वे 1942 से [[1945]] तक [[जवाहरलाल नेहरू|जवाहरलाल नेहरू जी]] आदि के साथ [[अहमदनगर]] क़िले में भी बंद रहे। यहीं पर उनके पांड़ित्य से प्रभावित होकर नेहरूजी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ़ इंड़िया" की पांडुलिपि में उनसे संशोधन करवाया।
 
==कांग्रेस से त्यागपत्र==
 
==कांग्रेस से त्यागपत्र==
[[कांग्रेस]] को समाजवादी विचारों की ओर ले जाने के उद्देश्य से सन [[1934]] में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में 'कांग्रेस समाजावादी पार्टी' का गठन हुआ था। [[जयप्रकाश नारायण]] इसके सचिव थे। [[गांधीजी]] आचार्य का बड़ा सम्मान करते थे। पहली भेंट में ही उन्होंने आचार्य को 'महान नररत्न' बताया था। [[कांग्रेस]] द्वारा यह निश्चय करने पर कि उसके अंदर कोई अन्य दल नहीं रहेगा, समाजवादी पार्टी के अपने साथियों के साथ आचार्य़ नरेन्द्र देव ने भी कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के साथ ही पार्टी के टिकट पर जीती [[विधान सभा]] से त्याग-पत्र देकर इन्होंने राजनैतिक नैतिकता का एक नया आदर्श उपस्थित किया था।
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[[कांग्रेस]] को समाजवादी विचारों की ओर ले जाने के उद्देश्य से सन [[1934]] में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में 'कांग्रेस समाजावादी पार्टी' का गठन हुआ था। [[जयप्रकाश नारायण]] इसके सचिव थे। [[गांधीजी]] आचार्य का बड़ा सम्मान करते थे। पहली भेंट में ही उन्होंने आचार्य को 'महान नररत्न' बताया था। [[कांग्रेस]] द्वारा यह निश्चय करने पर कि उसके अंदर कोई अन्य दल नहीं रहेगा, समाजवादी पार्टी के अपने साथियों के साथ आचार्य नरेन्द्र देव ने भी कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के साथ ही पार्टी के टिकट पर जीती [[विधान सभा]] से त्याग-पत्र देकर इन्होंने राजनीतिक नैतिकता का एक नया आदर्श उपस्थित किया था।
 
====भाषा विद्वान====
 
====भाषा विद्वान====
राजनीतिक चेतना और विद्वता का नरेन्द्र देव में असाधारण सामंजस्य था। वे [[संस्कृत]], [[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[पाली भाषा|पाली]], [[बंगला भाषा|बंगला]], फ़्रेंच और [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]] भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे। '[[काशी विद्यापीठ]]' के बाद आचार्य नरेन्द्र देव ने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' और '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' के कुलपति के रूप में शिक्षा जगत पर अपनी छाप छोड़ी।
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राजनीतिक चेतना और विद्वता का नरेन्द्र देव में असाधारण सामंजस्य था। वे [[संस्कृत]], [[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[पाली भाषा|पाली]], [[बंगला भाषा|बंगला]], फ़्रेंच और [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]] भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे। '[[काशी विद्यापीठ]]' के बाद आचार्य नरेन्द्र देव ने '[[लखनऊ विश्वविद्यालय]]' और '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' के कुलपति के रूप में शिक्षा जगत् पर अपनी छाप छोड़ी।
 
==रचना कार्य==
 
==रचना कार्य==
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[[बौद्ध दर्शन]] के अध्ययन में नरेन्द्र देव की विशेष रुचि थी। इस विषय के अनेक [[ग्रंथ]] 'बौद्ध धर्म दर्शन' और 'अभिधर्म कोश' बहुत प्रसिद्ध हैं। आचार्य जी उच्च कोटि के वक्ता भी थे। उनके महत्त्वपूर्ण भाषणों के संकलन निम्नलिखित हैं-
 
#राष्ट्रीयता औऱ समाजवाद
 
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#समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन
 
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#किसानों का सवाल
 
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====पत्र-पत्रिकाएँ====
 
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आचार्य नरेन्द्र देव ने 'संघर्ष' औऱ 'समाज' नामक साप्ताहिकों, 'जनवाणी' मासिक एवं 'विद्यापीठ' त्रैमासिक पत्रिका का संपादन भी किया।
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आचार्य नरेन्द्र देव ने 'संघर्ष' औऱ 'समाज' नामक साप्ताहिकों, 'जनवाणी' मासिक एवं 'विद्यापीठ' त्रैमासिक [[पत्रिका]] का संपादन भी किया।
 
==निधन==
 
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आचार्य जी जीवन पर्यन्त दमे के मरीज रहे। इसी रोग के कारण [[19 फ़रवरी]], [[1956]] ई. को [[मद्रास]] (वर्तमान [[चेन्नई]]) के एडोर में उनका निधन हो गया। वे अपने मित्र और मद्रास के तत्कालीन [[राज्यपाल]] [[श्रीप्रकाश]] के निमंत्रण पर स्वास्थ्य लाभ के लिए वहाँ गए थे।  
 
आचार्य जी जीवन पर्यन्त दमे के मरीज रहे। इसी रोग के कारण [[19 फ़रवरी]], [[1956]] ई. को [[मद्रास]] (वर्तमान [[चेन्नई]]) के एडोर में उनका निधन हो गया। वे अपने मित्र और मद्रास के तत्कालीन [[राज्यपाल]] [[श्रीप्रकाश]] के निमंत्रण पर स्वास्थ्य लाभ के लिए वहाँ गए थे।  
  
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09:31, 12 मार्च 2024 के समय का अवतरण

नरेन्द्र देव
नरेन्द्र देव
पूरा नाम आचार्य नरेन्द्र देव
अन्य नाम अविनाशी लाल (बचपन में)
जन्म 31 अक्टूबर, 1889
जन्म भूमि सीतापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 19 फ़रवरी, 1956
मृत्यु स्थान मद्रास
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि समाजवादी, विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त
आंदोलन असहयोग आंदोलन
जेल यात्रा सन 1930, 1932 और 1942 के आंदोलनों में आचार्य नरेन्द्र देव ने जेल यात्राएँ कीं।
भाषा ज्ञान हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, पाली
अन्य जानकारी नरेन्द्र देव सन 1916 से 1948 तक 'ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे थे। देश की आज़ादी के लिए इन्होंने कई बार जेल यात्राएँ भी कीं और जवाहरलाल नेहरू के साथ अहमदनगर क़िले में भी बन्द रहे।

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नरेन्द्र देव (अंग्रेज़ी: Narendra Deva, जन्म- 31 अक्टूबर, 1889, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 19 फ़रवरी, 1956, मद्रास) भारत के प्रसिद्ध विद्वान, समाजवादी, विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त थे। अपने पिता के प्रभाव से ही इनका राजनीति की ओर झुकाव हुआ था। नरेन्द्र देव गरम विचारों के व्यक्ति थे। वे सन 1916 से 1948 तक 'ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे थे। देश की आज़ादी के लिए इन्होंने कई बार जेल यात्राएँ भी कीं और जवाहरलाल नेहरू के साथ अहमदनगर क़िले में भी बन्द रहे। नरेन्द्र जी का व्यक्तित्व बड़ा ही असाधारण था। वे हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, पाली आदि भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। बौद्ध दर्शन के अध्ययन आदि में उनकी विशेष रुचि थी।

जन्म तथा नामकरण

नरेन्द्र देव का जन्म 31 अक्टूबर, 1889 ई. को सीतापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था। कुछ समय बाद उनके पिता अपने पैतृक नगर फैजाबाद वापस आ गए और यहीं पर अविनाशी लाल का बचपन बीता। इनके पिता के एक मित्र ने इनका नाम बदलकर नरेन्द्र देव रख दिया। घर का वातावरण धार्मिक और सामाजिक रूप में चेतना सजग था। इसके फलस्वरूप नरेन्द्र देव को अपने घर पर ही स्वामी रामतीर्थ, पंडित मदनमोहन मालवीय जैसे महानुभावों के दर्शन हुए। यहीं से उनके अंदर भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ और पिता के प्रभाव से राजनीति की ओर भी झुकाव हो गया।

व्यावसायिक जीवन

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद नरेन्द्र देव ने अपने व्यावसायिक जीवन के तहत सन 1920 तक फैजाबाद में वकालत की, परन्तु राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 'असहयोग आंदोलन' आंरभ होते ही इन्होंने वकालत त्याग दी। बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू के परामर्श पर वे 'काशी विद्यापीठ' में अध्यापक होकर चले गए। सन 1926 में नरेन्द्र देव इस संस्था के कुलपति भी बन गए। यहीं पर श्रीप्रकाश ने आपको 'आंयार्य' सम्बोधन से पुकारना शुरू किया, जो जीवन पर्यन्त इनके नाम का अंग बना रहा।

राजनीति में प्रवेश

आचार्य नरेन्द्र देव विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति की गतिविधियों में भाग लेने थे। वे अपने गरम विचारों के व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। सन 1916 से 1948 तक वे 'ऑल इंड़िया कांग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे थे। नेहरू जी के साथ 'कांग्रेस वर्किंग कमेटी' के भी वे सक्रिय सदस्य रहे।

जेल यात्रा

सन 1930, 1932 और 1942 के आंदोलनों में आचार्य नरेन्द्र देव ने जेल यात्राएँ कीं। वे 1942 से 1945 तक जवाहरलाल नेहरू जी आदि के साथ अहमदनगर क़िले में भी बंद रहे। यहीं पर उनके पांड़ित्य से प्रभावित होकर नेहरूजी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ़ इंड़िया" की पांडुलिपि में उनसे संशोधन करवाया।

कांग्रेस से त्यागपत्र

कांग्रेस को समाजवादी विचारों की ओर ले जाने के उद्देश्य से सन 1934 में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में 'कांग्रेस समाजावादी पार्टी' का गठन हुआ था। जयप्रकाश नारायण इसके सचिव थे। गांधीजी आचार्य का बड़ा सम्मान करते थे। पहली भेंट में ही उन्होंने आचार्य को 'महान नररत्न' बताया था। कांग्रेस द्वारा यह निश्चय करने पर कि उसके अंदर कोई अन्य दल नहीं रहेगा, समाजवादी पार्टी के अपने साथियों के साथ आचार्य नरेन्द्र देव ने भी कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के साथ ही पार्टी के टिकट पर जीती विधान सभा से त्याग-पत्र देकर इन्होंने राजनीतिक नैतिकता का एक नया आदर्श उपस्थित किया था।

भाषा विद्वान

राजनीतिक चेतना और विद्वता का नरेन्द्र देव में असाधारण सामंजस्य था। वे संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और प्राकृत भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे। 'काशी विद्यापीठ' के बाद आचार्य नरेन्द्र देव ने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' और 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' के कुलपति के रूप में शिक्षा जगत् पर अपनी छाप छोड़ी।

रचना कार्य

नरेन्द्र देव पर डाक टिकट

बौद्ध दर्शन के अध्ययन में नरेन्द्र देव की विशेष रुचि थी। इस विषय के अनेक ग्रंथ 'बौद्ध धर्म दर्शन' और 'अभिधर्म कोश' बहुत प्रसिद्ध हैं। आचार्य जी उच्च कोटि के वक्ता भी थे। उनके महत्त्वपूर्ण भाषणों के संकलन निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीयता औऱ समाजवाद
  2. समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन
  3. सोशालिस्ट पार्टी औऱ मार्क्सवाद
  4. भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास
  5. युद्ध और भारत
  6. किसानों का सवाल

पत्र-पत्रिकाएँ

आचार्य नरेन्द्र देव ने 'संघर्ष' औऱ 'समाज' नामक साप्ताहिकों, 'जनवाणी' मासिक एवं 'विद्यापीठ' त्रैमासिक पत्रिका का संपादन भी किया।

निधन

आचार्य जी जीवन पर्यन्त दमे के मरीज रहे। इसी रोग के कारण 19 फ़रवरी, 1956 ई. को मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के एडोर में उनका निधन हो गया। वे अपने मित्र और मद्रास के तत्कालीन राज्यपाल श्रीप्रकाश के निमंत्रण पर स्वास्थ्य लाभ के लिए वहाँ गए थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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