नींद में चलने की बीमारी

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नींद में चलना (SOMNAMBULISM)
परिचय

नींद में चलना (स्लीपवाकिंग) एक विचित्र प्रकार की गंभीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है जो कि कुछ ही लोगों में पायी जाती है। जिसे सोमनाबुलिज्म (SOMNAMBULISM) या स्लीपिंग डिसऑर्डर भी कहा जाता है। इस रोग में रोगी नींद में ही चलने लगता है। इस बीमारी का रोगी रात में नींद से उठकर अपने बिस्तर से चलता है और एक जागे हुए मनुष्य की तरह विभिन्न कार्य को आसानी से कर देता है। उन्हें पता नहीं चलता कि वे रात को क्या कर रहे थे या कहाँ घूम रहे थे। जब वे ऐसा कर रहे होते हैं तब वे अर्धजागृत अवस्था में होते हैं। लेकिन फिर से सो जाने के बाद जब वह सुबह जागता है तो उसे अपने द्वारा नींद में किए गए कार्य याद नहीं रहता। यह एक विचित्र बीमारी है जो कि स्नायुविक गड़बड़ी से होती है।

नींद में चलना एक विकार है। आंकड़ों के अनुसार इससे देश के लगभग चौदह प्रतिशत किशोर इस रोग से पीड़ित होते है। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में नींद में चलने की बीमारी ज्यादा पाई जाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार 4 से 8 वर्ष के बच्चों में सोमनाबुलिज्म की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।

नींद में चलना एक मस्तिष्क रोग के साथ-साथ नींद का भी विकार है। यह तंत्रिका-तंत्र का मस्तिष्क विकार है उदाहरण के लिए जैसे जब हम जागृत अवस्था में होते हैं तो मस्तिष्क भी पूर्णतः जागृत अवस्था में होता है, परंतु नींद में चलने वालों के मस्तिष्क का एक हिस्सा तो गतिशील रहता है जबकि दूसरा हिस्सा सुप्त अवस्था में रहता है, जिसके कारण वे नींद में भी उठ कर चलने लगते है। लेकिन यह अवस्था ज्यादा देर नहीं रहती, सिर्फ उतनी देर ही रहती है जब बच्चा चल रहा होता है।

बच्चा नींद में चलते समय भी गहरी नींद में ही होता है और उसे अपनी उस स्थिति का अहसास तक नहीं होता क्योंकि नींद में चलते वक्त भी उसकी आँखे खुली रहती हैं, लेकिन चेहरा एकदम भावहीन रहता है। लेकिन वह आस-पास की चीजों से टकरा कर घायल हो सकता है। वह अपने अपने आस-पास हो रही बातचीत पर ध्यान नहीं देता। यहां तक की यदि उसकी नाम लेकर पुकारा जाय, तब भी वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।

नींद के प्रारंभिक दो घंटो के मध्य ही नींद में चलने की घटनाएं सबसे आम होती है। नींद में चलने का समय 15 मिनट से लेकर दो घंटे तक का हो सकता है। इस अवस्था में बच्चा तैयार होकर घर से बाहर भी जा सकता है।

नींद की चार अवस्थाएं होती हैं। अकसर यह समस्या नींद की चौथी अवस्था में होती है। इसे स्लोवेव स्लीप भी कहा जाता है। यह नींद की नॉन ड्रीमिंग स्टेज होती है और इसकी अवधि लंबी होती है। इसमें सांस लेने तथा नाडी की गति धीमी हो जाती है। शरीर का तापमान कम हो जाता है तथा मांसपेशियां भी शिथिल हो जाती हैं। यह अवस्था प्राय: पांच से पंद्रह मिनट तक की हो सकती हैं। नींद में चलने वाले व्यक्ति को खुद इस बात का एहसास नहीं होता कि वह नींद में चल रहा है।

यदि आप चाहे तो इस विषय पर अपने की डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। लेकिन बच्चा घर से बाहर न जा सके, इसका सबसे अच्छा उपाय यही है कि सोने से पहले घर के सभी खिड़की दरवाजों को अच्छी तरह बंद कर दें और मुख्य द्वार पर ताला लगा कर उसकी चाभी अपने पास रखे। यदि खिड़कियां नीची हैं और आपको लगता है कि इससे भी बाहर निकला जा सकता है तो आपके लिए यही सलाह है कि सोने के पहले खिड़की को भी अच्छी तरह लॉक करें। अगर आप सभी सावधानियां बरतते हैं तो आपको अपनी रातों की नींद खराब करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।

इस अवस्था में इंसान अपने आप से पूरी तरह बेखबर होता है। इसलिए ऐसे लोगों के साथ दुर्घटना की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए ऐसे मरीजों की सुरक्षा का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी को यह समस्या हो तो उसके बेडरूम के डोर नॉब के साथ एक ऑटोमेटिक अलार्म फिट होता है, ताकि जब वह व्यक्ति दरवाजा खोलने की कोशिश करेगा तो अलार्म बज उठेगा। इससे संभावित दुर्घटना को टालना आसान हो जाएगा। अक्सर ये लोग घर में रखी चीजों से टकरा जाते हैं इसलिए उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखिए कि घर में बाहर निकली हुई कोई नुकीली वस्तु न हो जिससे टकरा कर वे घायल हो जाएं।

वयस्कों में यह बीमारी औसतन एक प्रतिशत लोगों को ही होती है। यह भी जरूरी नहीं है कि जो बच्चे बचपन में नींद मे चलते थे बड़े होकर भी नींद में चलेंगे ही। बड़ों में नींद में चलने के कारण एकदम अलग होते हैं, वे तनाव, चिंता, अनिद्रा या मिर्गी जैसे रोगों के कारण इस रोग का शिकार हो जाते हैं। कारण दूर होते ही रोग का निवारण अपने आप हो जाता है। किसी मामूली न्यूरोलॉजिक समस्या के कारण भी ऐसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

वयस्कों को इलाज की जरूरत पड़ सकती है यदि नींद में चलने वाला रात में उठ कर लिविंगरूम में आ जाता है या दरवाजा खोल कर घर से बाहर भीड़ भरी सड़कों पर भी निकल जाता है। ऐसे में वह दुर्घटना का शिकार हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि सम्मोहन से इस रोग का इलाज संभव है।

इस समस्या के निदान के लिए सबसे पहले नींद में चलने का सही कारण पता लगाकर उसे दूर करने की कोशिश की जाती है। बिहेवियर थेरेपी द्वारा व्यक्ति को अवचेतन में ले जाकर उसे मनोचिकित्सक द्वारा वही कार्य करने के निर्देश दिए जाते हैं, जिन्हें वह प्राय: नींद की अवस्था में करता है। उपचार की प्रक्रिया थोडी लंबी जरूर होती है, लेकिन इससे यह समस्या दूर हो जाती है।

वैज्ञानिकों का शोध

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह बिमारी अनुवांशिक है और पीढी दर पीढी आगे बढती रहती है। नींद में चलने के पीछे जिनेटिक खामी जिम्मेदार है। डीएनए में इतना सा दोष भी इस डिसऑर्डर के लिए काफी है। हाल में की गई एक शोध के अनुसार हमारे शरीर में स्थित क्रोमोसोम 20 की वजह से ऐसा होता है। इस क्रोमोसोम के खराब हो जाने से नींद में चलने की आदत लग जाती है।

वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसीन (वाशिंगटन यूनिवर्सिटी) की डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट और उनकी टीम ने एक ही परिवार के 22 सदस्यों का परीक्षण कर ये नतीजे प्राप्त किए। इस परिवार के 9 सदस्य नींद में चलने की बिमारी से ग्रसित हैं। डॉ. गर्नट के अनुसार इस बिमारी से ग्रसित व्यक्ति से यह क्रोमोसोम खामी उसकी संतान तक जाती है। ऐसा होने की सम्भावना लगभग 50% तक होती है।

डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट का मानना है कि इससे इस बीमारी का इलाज ढूंढने में मदद मिलेगी। यह डिसऑर्डर 10 में से एक बच्चे को कभी ना कभी प्रभावित करता है और 50 वयस्कों में से एक को। इस स्थिति को साम्नैम्ब्यलिजम भी कहा जाता है। जर्नेट के मुताबिक इसके लिए क्रोमोसोम 20 जिम्मेदार है। यह एक जीन है, जो कि विशेष तौर से एक परिवार में मिला, लेकिन यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस बीमारी से पीड़ित हर परिवार में यही जीन जिम्मेदार होगा।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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