"पंडित कांशीराम" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} '''पंडित कांशीराम''' गदर पार्टी के प्रमुख न...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
+
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=कांशीराम|लेख का नाम=कांशीराम (बहुविकल्पी)}}
 
'''पंडित कांशीराम''' गदर पार्टी के प्रमुख नेता और देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।  
 
'''पंडित कांशीराम''' गदर पार्टी के प्रमुख नेता और देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।  
*पंडित कांशीराम का जन्म [[1883]] ई. में [[पंजाब]] के अंबाला ज़िले में हुआ था। मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने तार भेजने प्राप्त करने का काम सीखा और कुछ दिन [[अंबाला]] और [[दिल्ली]] में नौकरी की। इसके बाद वे [[अमेरिका]] चले गए।  
+
*पंडित कांशीराम का जन्म [[1883]] ई. में [[पंजाब]] के [[अम्बाला ज़िला|अंबाला ज़िले]] में हुआ था। मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने तार भेजने प्राप्त करने का काम सीखा और कुछ दिन [[अंबाला]] और [[दिल्ली]] में नौकरी की। इसके बाद वे [[अमेरिका]] चले गए।  
 
*यहीं से उनका क्रांतिकारी जीवन आरंभ होता है। आजीविका के लिए पंडित कांशीराम ने ठेकेदारी का काम किया। साथ ही वे ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ और ‘इंडियन इंडिपैंडेंट लीग’ में शामिल हो गए। उनके ऊपर [[लाला हरदयाल]] का बहुत प्रभाव पड़ा। वे संगठन [[भारत]] को [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] की चुंगल से छुड़ाने के लिए बनाए गए थे। [[1913]] में पंडित कांशीराम ‘गदर पार्टी’ के कोषाध्यक्ष बन गए।
 
*यहीं से उनका क्रांतिकारी जीवन आरंभ होता है। आजीविका के लिए पंडित कांशीराम ने ठेकेदारी का काम किया। साथ ही वे ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ और ‘इंडियन इंडिपैंडेंट लीग’ में शामिल हो गए। उनके ऊपर [[लाला हरदयाल]] का बहुत प्रभाव पड़ा। वे संगठन [[भारत]] को [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] की चुंगल से छुड़ाने के लिए बनाए गए थे। [[1913]] में पंडित कांशीराम ‘गदर पार्टी’ के कोषाध्यक्ष बन गए।
 
*जिस समय [[यूरोप]] में प्रथम विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे, गदर पार्टी ने निश्चय किया कि कुछ लोगों को अमेरिका से भारत वापस जाना चाहिए। वे वहां जाकर भारतीय सेना में अंग्रेजों के विरूद्ध भावनाएँ भड़काएँ। इसी योजना के अंतर्गत पंडित कांशीराम भी भारत आए।  
 
*जिस समय [[यूरोप]] में प्रथम विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे, गदर पार्टी ने निश्चय किया कि कुछ लोगों को अमेरिका से भारत वापस जाना चाहिए। वे वहां जाकर भारतीय सेना में अंग्रेजों के विरूद्ध भावनाएँ भड़काएँ। इसी योजना के अंतर्गत पंडित कांशीराम भी भारत आए।  
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
  
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
 
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]]  
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]]  
 
[[Category:चरित कोश]]
 
[[Category:चरित कोश]]
[[Category:नया पन्ना अप्रॅल-2012]]
+
[[Category:इतिहास कोश]]
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

11:40, 5 अक्टूबर 2012 का अवतरण

Disamb2.jpg कांशीराम एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कांशीराम (बहुविकल्पी)

पंडित कांशीराम गदर पार्टी के प्रमुख नेता और देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।

  • पंडित कांशीराम का जन्म 1883 ई. में पंजाब के अंबाला ज़िले में हुआ था। मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने तार भेजने प्राप्त करने का काम सीखा और कुछ दिन अंबाला और दिल्ली में नौकरी की। इसके बाद वे अमेरिका चले गए।
  • यहीं से उनका क्रांतिकारी जीवन आरंभ होता है। आजीविका के लिए पंडित कांशीराम ने ठेकेदारी का काम किया। साथ ही वे ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ और ‘इंडियन इंडिपैंडेंट लीग’ में शामिल हो गए। उनके ऊपर लाला हरदयाल का बहुत प्रभाव पड़ा। वे संगठन भारत को अंग्रेजों की चुंगल से छुड़ाने के लिए बनाए गए थे। 1913 में पंडित कांशीराम ‘गदर पार्टी’ के कोषाध्यक्ष बन गए।
  • जिस समय यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे, गदर पार्टी ने निश्चय किया कि कुछ लोगों को अमेरिका से भारत वापस जाना चाहिए। वे वहां जाकर भारतीय सेना में अंग्रेजों के विरूद्ध भावनाएँ भड़काएँ। इसी योजना के अंतर्गत पंडित कांशीराम भी भारत आए।
  • उन्होंने सेना की कई छावनियों की यात्रा की और सैनिकों को अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। कांशीराम और उनके साथियों ने अपने कार्य के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से मोगा का सरकारी कोषागार लूटने का असफल प्रयत्न भी किया। इसी सिलसिले में एक सब इंस्पेक्टर और एक जिलेदार इनकी गोलियों से मारे गए।
  • कांशीराम और उनके साथी पकड़े गए, मुकदमा चला और 27 मार्च, 1915 को कांशीराम को फाँसी दे दी गई।

 


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख