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==इतिहास==
 
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ग्रीक इतिहासकारों की मानें तो पतंगबाज़ी का खेल 2500 वर्ष पुराना है, जबकि अधिकतर लोगों का मानना है कि पतंगबाज़ी के खेल की शुरुआत [[चीन]] में हुई थी। चीन में पतंगबाज़ी का इतिहास दो हज़ार साल से भी ज्यादा पुराना माना गया है। कुछ लोग पतंगबाज़ी को पर्शिया की देन मानते हैं, वहीं अधिकांश इतिहासकार पतंगों का जन्म चीन में ही मानते हैं। उनके अनुसार चीन के एक सेनापति हानसीज ने [[काग़ज़]] को चौकोर काट कर उन्हें हवा में उड़ाकर अपने सैनिकों को संदेश भेजा और बाद में कई रंगों की पतंगें बनाईं। यह भी कहा जाता है कि दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो दी ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास कई वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था, जैसे- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस। चीन के बाद पतंगों का फैलाव [[जापान]], कोरिया, थाईलैंड, [[बर्मा]], [[भारत]], [[अरब]], उत्तरी अफ़्रीका तक हुआ।<ref name="ab">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/kidsworld-gk/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97-1130112057_1.htm|title=हवा के संग उड़े पतंग|accessmonthday=23 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
ग्रीक इतिहासकारों की मानें तो पतंगबाज़ी का खेल 2500 वर्ष पुराना है, जबकि अधिकतर लोगों का मानना है कि पतंगबाज़ी के खेल की शुरुआत [[चीन]] में हुई थी। चीन में पतंगबाज़ी का इतिहास दो हज़ार साल से भी ज्यादा पुराना माना गया है। कुछ लोग पतंगबाज़ी को पर्शिया की देन मानते हैं, वहीं अधिकांश इतिहासकार पतंगों का जन्म चीन में ही मानते हैं। उनके अनुसार चीन के एक सेनापति हानसीज ने [[काग़ज़]] को चौकोर काट कर उन्हें हवा में उड़ाकर अपने सैनिकों को संदेश भेजा और बाद में कई रंगों की पतंगें बनाईं। यह भी कहा जाता है कि दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो दी ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास कई वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था, जैसे- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस। चीन के बाद पतंगों का फैलाव [[जापान]], कोरिया, थाईलैंड, [[बर्मा]], [[भारत]], [[अरब]], उत्तरी अफ़्रीका तक हुआ।<ref name="ab">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/kidsworld-gk/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97-1130112057_1.htm|title=हवा के संग उड़े पतंग|accessmonthday=23 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==भारत में पतंग का आना==
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[[भारत]] में भी पतंग उड़ाने का शौक हजारों वर्ष पुराना हो गया है। कुछ लोगों के अनुसार पवित्र लेखों की खोज में लगे [[चीन]] के [[बौद्ध]] तीर्थयात्रियों के द्वारा पतंगबाजी का शौक भारत पहुँचा था। भारत के कोने-कोने से युवाओं के साथ उम्रदराज लोग भी यहाँ आते हैं और खूब पतंग उड़ाते हैं। एक हजार वर्ष पूर्व पतंगों का जिक्र संत नाम्बे के गीतों में भी दर्ज है। [[मुग़ल]] बादशाहों के शासन काल में तो पतंगों की शान ही निराली थी। खुद बादशाह और शाहज़ादे भी इस खेल को बड़ी ही रुचि से खेला करते थे। उस समय तो पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएँ भी होती थीं और जीतने वाले को बड़ा ईनाम भी मिलता था।
  
[[भारत]] में भी पतंग उड़ाने का शौक हजारों वर्ष पुराना हो गया है। कुछ लोगों के अनुसार पवित्र लेखों की खोज में लगे [[चीन]] के [[बौद्ध]] तीर्थयात्रियों के द्वारा पतंगबाजी का शौक भारत पहुँचा था। भारत के कोने-कोने से युवाओं के साथ उम्रदराज लोग भी यहाँ आते हैं और खूब पतंग उड़ाते हैं। एक हजार वर्ष पूर्व पतंगों का जिक्र संत नाम्बे के गीतों में भी दर्ज है। [[मुग़ल]] बादशाहों के शासन काल में तो पतंगों की शान ही निराली थी। खुद बादशाह और शाहज़ादे भी इस खेल को बड़ी ही रुचि से खेला करते थे। उस समय तो पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएँ भी होती थीं और जीतने वाले को बड़ा ईनाम भी मिलता था।
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पतंग उड़ाने की रिवाज आज से लगभग 2500 से 3000 साल पहले चीन में शुरू हुआ, लेकिन पतंगबाजी के ख़लीफ़ा व उस्तादों का मानना है कि सबसे पहली पतंग हकीम जालीनूस ने बनाई थी। कुछ हकीम लुकमान का भी नाम लेते हैं। बहरहाल, कोरिया और जापान के रास्ते होती हुई पतंग भारत पहुँची। यहाँ इसका अपना एक अलग [[इतिहास]] है। [[मुग़ल]] दरबार में इसका ऐसा बोलबाला और खुमार था कि राजा-रजवाड़े, जागीरदार एवं वज़ीर भी पतंगबाजी में खुद हिस्सा लेते थे। मुग़ल सम्राट [[बहादुरशाह ज़फ़र]] भी पतंगबाजी का बहुत शौकीन था। मुग़लिया दौर के बाद [[लखनऊ]], [[रामपुर]], [[हैदराबाद]] आदि शहरों के नवाबों में भी इसका खुमार चढ़ा। उन्होंने इसे एक बाजी की शक्ल दे दी। उन्होंने अपनी पतंगबाजी को गरीबी दूर करने का माध्यम बनाया। ये लोग पतंगों में अशरफियाँ बाँध कर उड़ाया करते थे और आखिर में पतंग की डोर तोड़ देते थे, ताकि गाँव के लोग पतंग लूट सकें। वाजिद अली शाह तो पतंगबाजी के लिए हर साल अपनी पतंगबाज़ टोली के साथ पतंगबाजी के मुकाबले में [[दिल्ली]] आते थे। धीरे-धीरे नवाबों का यह शौक आम लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बनता गया। वर्ष [[1927]] में 'गो बैक' वाक्य के साथ लिखी हुई पतंगों को आसमान में उड़ाकर '[[साइमन कमीशन]]' का विरोध किया गया था। आजादी की खुशी को जाहिर करने का माध्यम भी पतंग को बनाया गया।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-story-50-50-67841.html|title=चली चली रे पतंग मेरी|accessmonthday=23 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
====पतंगोत्सव====
 
====पतंगोत्सव====
 
आज भी चीन में पतंग उड़ाने का शौक कायम है। वहाँ प्रत्येक [[वर्ष]] [[9 सितम्बर]] की तारीख को पतंगोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चीन की लगभग समूची जनता पूरे जोश और उत्साह के साथ पतंगबाजी की प्रतियोगिता में भाग लेती है। [[अमेरिका]] में तो रेशमी कपड़े और प्लास्टिक से बनी पतंगें उड़ाई जाती हैं। वहाँ [[जून]] के महीने में पतंग प्रति‍योगिताओं का आयोजन होता है। जापानी भी पतंगबाजी के शौकीन बहुत शैकीन होते हैं। उनका मानना है कि पतंग उड़ाने से [[देवता]] प्रसन्न होते हैं। वहाँ प्रति वर्ष [[मई]] के महीने में पतंगबाजी की प्रतियो‍‍गिताएँ आयोजित की जाती हैं।<ref name="ab"/>
 
आज भी चीन में पतंग उड़ाने का शौक कायम है। वहाँ प्रत्येक [[वर्ष]] [[9 सितम्बर]] की तारीख को पतंगोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चीन की लगभग समूची जनता पूरे जोश और उत्साह के साथ पतंगबाजी की प्रतियोगिता में भाग लेती है। [[अमेरिका]] में तो रेशमी कपड़े और प्लास्टिक से बनी पतंगें उड़ाई जाती हैं। वहाँ [[जून]] के महीने में पतंग प्रति‍योगिताओं का आयोजन होता है। जापानी भी पतंगबाजी के शौकीन बहुत शैकीन होते हैं। उनका मानना है कि पतंग उड़ाने से [[देवता]] प्रसन्न होते हैं। वहाँ प्रति वर्ष [[मई]] के महीने में पतंगबाजी की प्रतियो‍‍गिताएँ आयोजित की जाती हैं।<ref name="ab"/>
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*पहले [[काग़ज़]] को चौकोर काटकर पतंगें बनाई जाती थीं, किंतु आज एक से बढ़कर एक डिज़ाइन, आकार, आकृति एवं रंगों वाली भिन्न प्रकार की मोटराइज्ड एवं फ़ाइबर ग्लास पतंगें बाज़ार में मौजूद हैं, जिन्हें उड़ाने का एहसास अपने आप में अनोखा और सुखद होता है। इन पतंगों की माँग भी बहुत ज़्यादा है और ये बहुत आकर्षक भी होती हैं।
 
*पहले [[काग़ज़]] को चौकोर काटकर पतंगें बनाई जाती थीं, किंतु आज एक से बढ़कर एक डिज़ाइन, आकार, आकृति एवं रंगों वाली भिन्न प्रकार की मोटराइज्ड एवं फ़ाइबर ग्लास पतंगें बाज़ार में मौजूद हैं, जिन्हें उड़ाने का एहसास अपने आप में अनोखा और सुखद होता है। इन पतंगों की माँग भी बहुत ज़्यादा है और ये बहुत आकर्षक भी होती हैं।
 
*[[मलेशिया]] की वाऊबलांग, इंडो‍नेशिया की इयांग इन्यांघवे, यूएसए की विशाल वैनर, इटली की वास्तुपरक, जापान की रोक्काकू तथा चीन की ड्रैगन पतंगों की भव्यता लाखों पतंग प्रेमियों को आश्चर्य से अभिभूत कर देती है।
 
*[[मलेशिया]] की वाऊबलांग, इंडो‍नेशिया की इयांग इन्यांघवे, यूएसए की विशाल वैनर, इटली की वास्तुपरक, जापान की रोक्काकू तथा चीन की ड्रैगन पतंगों की भव्यता लाखों पतंग प्रेमियों को आश्चर्य से अभिभूत कर देती है।
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==फ़िल्मी गीतों का निर्माण==
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कवियों व साहित्यकारों से लेकर फिल्म निर्देशकों तक ने पतंग पर अपनी कला का [[रंग]] चढ़ाया। पतंग पर अनेक कविताएँ, गजल व फ़िल्मी गाने आदि लिखे गये, जैसे-
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*'न कोई उमंग है, न कोई तरंग है, मेरी जिंदगी है क्या, एक कटी पतंग है - कटी पतंग
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*'ढील दे ढील दे दे रे भैया' - हम दि‍ल दे चूके सनम ([[1999]])
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*'अरी छोड़ दे सजनि‍या छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे' - नागिन ([[1954]])
  
हर जगह पतंग उड़ाने के लिए अलग-अलग समय निर्धारित है और हर जगह के अपने-अपने तौर-तरीके हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य एक है आपसी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना।
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*'चली-चली रे पतंग मेरी चली रे' - भाभी ([[1957]])
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*'ये दुनि‍या पतंग नि‍त बदले रंग' - पतंग
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==महंगा शौक==
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अब पतंगबाजी व्यावसायिक हो गई है। [[दिल्ली]] व [[गुजरात]] में ही नहीं, [[भारत]] के हर कोने में पतंग उड़ायी जाती है। आज यह महंगे खेलों में शुमार है। दिल्ली में ही लगभग 140 पंजीकृत और लगभग 250 गैर-पंजीकृत पतंग क्लब हैं। ऐसे कई क्लब [[आगरा]], [[बरेली]], [[भोपाल]], [[इलाहाबाद]], [[बीकानेर]], [[गुजरात]], [[जम्मू]] के अलावा अन्य बड़े शहरों में भी हैं, जहाँ सदस्यों को मुकाबले के लिए तैयार किया जाता है। पतंगबाजी एक खेल है, एक कला है, जिसको सीखना पड़ता है और अभ्यास करना पड़ता है। इसके अपने नियम व शर्ते होती हैं, जैसे 500 गज के ऊपर ही पेंच लड़ा सकते हैं। पतंगबाजी की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए 500-1500 तक रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं। हर जगह पतंग उड़ाने के लिए अलग-अलग समय निर्धारित है और हर जगह के अपने-अपने तौर-तरीके हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही है- "आपसी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना"।
  
 
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*[http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Our-festival--50-50-307061.html बसंत मनाएँ, पतंग उड़ाएँ]
 
*[http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Our-festival--50-50-307061.html बसंत मनाएँ, पतंग उड़ाएँ]
 
*[http://dr-mahesh-parimal.blogspot.in/2011/01/blog-post_14.html पतंग से सीखो अनुशासन]
 
*[http://dr-mahesh-parimal.blogspot.in/2011/01/blog-post_14.html पतंग से सीखो अनुशासन]
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*[http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%B0%E0%A5%87/%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%87-1100114034_1.htm पतंग पर बने कुछ गीत]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भूले बिसरे शब्द}}
 
{{भूले बिसरे शब्द}}

08:51, 23 मई 2013 का अवतरण

पतंग हवा में उड़ने वाली एक वस्तु है, जो धागे के सहारे उड़ती है। प्राचीन काल से ही इंसान की यह इच्‍छा रही कि वह मुक्त आकाश में उड़े। मानव की इसी इच्छा ने पतंग की उत्पत्ति के लिए प्रेरणा का काम किया। कभी मनोरंजन के तौर पर उड़ाई जाने वाली पतंग आज पतंगबाज़ी के रूप में एक रिवाज, परंपरा और त्योहार का पर्याय बन गई है। पतंग विश्व के कई देशों में उड़ाई जाती हैं, किंतु भारत के कई राज्यों में यह बहुत बड़ी संख्या में बच्चों, बूढ़ों और जवानों द्वारा विभिन्न पर्वों और त्योहारों पर उड़ाई जाती है। आज भी महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली आदि में पतंग उड़ाने के लिए समय निर्धारित है। अलग-अलग राज्यों में पतंगों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आधुनिक समय में पतंग के प्रति लोगों का प्रेम कम हो गया है। पहले पतंगबाज़ी के मुकाबले बहुत होते थे, किंतु अब पहले जैसे पतंगबाज़ दिखाई नहीं देते और न ही उनके मुकाबले।

इतिहास

ग्रीक इतिहासकारों की मानें तो पतंगबाज़ी का खेल 2500 वर्ष पुराना है, जबकि अधिकतर लोगों का मानना है कि पतंगबाज़ी के खेल की शुरुआत चीन में हुई थी। चीन में पतंगबाज़ी का इतिहास दो हज़ार साल से भी ज्यादा पुराना माना गया है। कुछ लोग पतंगबाज़ी को पर्शिया की देन मानते हैं, वहीं अधिकांश इतिहासकार पतंगों का जन्म चीन में ही मानते हैं। उनके अनुसार चीन के एक सेनापति हानसीज ने काग़ज़ को चौकोर काट कर उन्हें हवा में उड़ाकर अपने सैनिकों को संदेश भेजा और बाद में कई रंगों की पतंगें बनाईं। यह भी कहा जाता है कि दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो दी ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास कई वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था, जैसे- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस। चीन के बाद पतंगों का फैलाव जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तरी अफ़्रीका तक हुआ।[1]

भारत में पतंग का आना

भारत में भी पतंग उड़ाने का शौक हजारों वर्ष पुराना हो गया है। कुछ लोगों के अनुसार पवित्र लेखों की खोज में लगे चीन के बौद्ध तीर्थयात्रियों के द्वारा पतंगबाजी का शौक भारत पहुँचा था। भारत के कोने-कोने से युवाओं के साथ उम्रदराज लोग भी यहाँ आते हैं और खूब पतंग उड़ाते हैं। एक हजार वर्ष पूर्व पतंगों का जिक्र संत नाम्बे के गीतों में भी दर्ज है। मुग़ल बादशाहों के शासन काल में तो पतंगों की शान ही निराली थी। खुद बादशाह और शाहज़ादे भी इस खेल को बड़ी ही रुचि से खेला करते थे। उस समय तो पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएँ भी होती थीं और जीतने वाले को बड़ा ईनाम भी मिलता था।

पतंग उड़ाने की रिवाज आज से लगभग 2500 से 3000 साल पहले चीन में शुरू हुआ, लेकिन पतंगबाजी के ख़लीफ़ा व उस्तादों का मानना है कि सबसे पहली पतंग हकीम जालीनूस ने बनाई थी। कुछ हकीम लुकमान का भी नाम लेते हैं। बहरहाल, कोरिया और जापान के रास्ते होती हुई पतंग भारत पहुँची। यहाँ इसका अपना एक अलग इतिहास है। मुग़ल दरबार में इसका ऐसा बोलबाला और खुमार था कि राजा-रजवाड़े, जागीरदार एवं वज़ीर भी पतंगबाजी में खुद हिस्सा लेते थे। मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र भी पतंगबाजी का बहुत शौकीन था। मुग़लिया दौर के बाद लखनऊ, रामपुर, हैदराबाद आदि शहरों के नवाबों में भी इसका खुमार चढ़ा। उन्होंने इसे एक बाजी की शक्ल दे दी। उन्होंने अपनी पतंगबाजी को गरीबी दूर करने का माध्यम बनाया। ये लोग पतंगों में अशरफियाँ बाँध कर उड़ाया करते थे और आखिर में पतंग की डोर तोड़ देते थे, ताकि गाँव के लोग पतंग लूट सकें। वाजिद अली शाह तो पतंगबाजी के लिए हर साल अपनी पतंगबाज़ टोली के साथ पतंगबाजी के मुकाबले में दिल्ली आते थे। धीरे-धीरे नवाबों का यह शौक आम लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बनता गया। वर्ष 1927 में 'गो बैक' वाक्य के साथ लिखी हुई पतंगों को आसमान में उड़ाकर 'साइमन कमीशन' का विरोध किया गया था। आजादी की खुशी को जाहिर करने का माध्यम भी पतंग को बनाया गया।[2]

पतंगोत्सव

आज भी चीन में पतंग उड़ाने का शौक कायम है। वहाँ प्रत्येक वर्ष 9 सितम्बर की तारीख को पतंगोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चीन की लगभग समूची जनता पूरे जोश और उत्साह के साथ पतंगबाजी की प्रतियोगिता में भाग लेती है। अमेरिका में तो रेशमी कपड़े और प्लास्टिक से बनी पतंगें उड़ाई जाती हैं। वहाँ जून के महीने में पतंग प्रति‍योगिताओं का आयोजन होता है। जापानी भी पतंगबाजी के शौकीन बहुत शैकीन होते हैं। उनका मानना है कि पतंग उड़ाने से देवता प्रसन्न होते हैं। वहाँ प्रति वर्ष मई के महीने में पतंगबाजी की प्रतियो‍‍गिताएँ आयोजित की जाती हैं।[1]

पतंग का उड़ना

पतंग मजबूत धागे के सहारे उड़ने वाली वस्तु है। यह धागे पर पडने वाले तनाव पर निर्भर करती है। पतंग हवा में तब उठती है, जब हवा का प्रवाह पतंग के ऊपर और नीचे से होता है, जिससे पतंग के ऊपर कम दबाव और पतंग के नीचे अधिक दबाव बन जाता है। यह विक्षेपन हवा की दिशा के साथ क्षैतिज खींच भी उत्पन्न करता है। पतंग का लंगर बिंदु स्थिर या चलित हो सकता है। पतंग आमतौर पर हवा से भारी होती है, लेकिन हवा से हल्की पतंग भी होती है, जिसे 'हैलिकाइट' पुकारा जाता है। ये पतंगें हवा में या हवा के बिना भी उड़ सकती हैं। हैलिकाइट पतंगे अन्य पतंगों की तुलना में एक अन्य स्थिरता सिद्धांत पर काम करती हैं, क्योंकि हैलिकाइट हीलियम-स्थिर और हवा-स्थिर होती हैं। जब हवा अच्छी-ख़ासी बह रही हो तो पतंग उड़ाना बड़ा आसान हो जाता है, क्योंकि इस समय पतंग को कम मेहनत में ही काफ़ी ऊँचाई तक उड़ाया जा सकता है, किंतु जब हवा नहीं बह रही होती तो पतंग बड़ी मुश्किल से ऊपर उठती है और मेहनत भी बहुत करनी पड़ती है।

भारत में पतंगबाज़ी

भारत के हैदराबाद और पाकिस्तान के लाहौर में पतंगबाजी का खेल बड़े उत्साह के साथ खेला जाता था। आज भी महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली आदि में पतंग उड़ाने के लिए समय निर्धारित है। अलग-अलग राज्यों में पतंगों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है।[1]

  • उत्तर भारत के लोग रक्षा बंधन और 'स्वतंत्रता दिवस' वाले दिन खूब पतंग उड़ाते हैं। इस दिन लोग नीले आसमान में अपनी पतंगें उड़ाकर आजादी की खुशी का इजहार करते हैं।
  • दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के लोग इस दिन पतंगबाजी का जमकर लुत्फ उठाते हैं। पतंग उड़ाते और काटते समय वे आपस के छोटे-बड़े सारे भेद भूल जाते हैं। इस दिन चारों तरफ़ कुछ ख़ास वाक्य सुनाई देते हैं, जैसे- 'वो काटा', 'कट गई', 'लूटो', 'पकड़ो' 'वो मारा वे' आदि।
  • गुजरात की औद्योगिक राजधानी अहमदाबाद की बाद करें तो भारत ही नहीं, यह पूरे विश्व में पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध है। हर वर्ष 14 जनवरी को 'मकर संक्रांति' सूर्य के उत्तरायण होने के अवसर पर यहाँ "अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव" का आयोजन होता है, जिसमें अहमदाबादी नीला आसमान इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो जाता है। चीन, नीदरलैंड, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्राजील, इटली और चिली आदि देशों से भी पतंगबाजों की फौज यहाँ आती है। यह पतंग महोत्सव 1989 से प्रतिवर्ष मनाया जाता रहा है। यहाँ एक पतंग म्यूजियम भी बना है।
  • पहले काग़ज़ को चौकोर काटकर पतंगें बनाई जाती थीं, किंतु आज एक से बढ़कर एक डिज़ाइन, आकार, आकृति एवं रंगों वाली भिन्न प्रकार की मोटराइज्ड एवं फ़ाइबर ग्लास पतंगें बाज़ार में मौजूद हैं, जिन्हें उड़ाने का एहसास अपने आप में अनोखा और सुखद होता है। इन पतंगों की माँग भी बहुत ज़्यादा है और ये बहुत आकर्षक भी होती हैं।
  • मलेशिया की वाऊबलांग, इंडो‍नेशिया की इयांग इन्यांघवे, यूएसए की विशाल वैनर, इटली की वास्तुपरक, जापान की रोक्काकू तथा चीन की ड्रैगन पतंगों की भव्यता लाखों पतंग प्रेमियों को आश्चर्य से अभिभूत कर देती है।

फ़िल्मी गीतों का निर्माण

कवियों व साहित्यकारों से लेकर फिल्म निर्देशकों तक ने पतंग पर अपनी कला का रंग चढ़ाया। पतंग पर अनेक कविताएँ, गजल व फ़िल्मी गाने आदि लिखे गये, जैसे-

  • 'न कोई उमंग है, न कोई तरंग है, मेरी जिंदगी है क्या, एक कटी पतंग है - कटी पतंग
  • 'ढील दे ढील दे दे रे भैया' - हम दि‍ल दे चूके सनम (1999)
  • 'अरी छोड़ दे सजनि‍या छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे' - नागिन (1954)
  • 'चली-चली रे पतंग मेरी चली रे' - भाभी (1957)
  • 'ये दुनि‍या पतंग नि‍त बदले रंग' - पतंग

महंगा शौक

अब पतंगबाजी व्यावसायिक हो गई है। दिल्लीगुजरात में ही नहीं, भारत के हर कोने में पतंग उड़ायी जाती है। आज यह महंगे खेलों में शुमार है। दिल्ली में ही लगभग 140 पंजीकृत और लगभग 250 गैर-पंजीकृत पतंग क्लब हैं। ऐसे कई क्लब आगरा, बरेली, भोपाल, इलाहाबाद, बीकानेर, गुजरात, जम्मू के अलावा अन्य बड़े शहरों में भी हैं, जहाँ सदस्यों को मुकाबले के लिए तैयार किया जाता है। पतंगबाजी एक खेल है, एक कला है, जिसको सीखना पड़ता है और अभ्यास करना पड़ता है। इसके अपने नियम व शर्ते होती हैं, जैसे 500 गज के ऊपर ही पेंच लड़ा सकते हैं। पतंगबाजी की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए 500-1500 तक रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं। हर जगह पतंग उड़ाने के लिए अलग-अलग समय निर्धारित है और हर जगह के अपने-अपने तौर-तरीके हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही है- "आपसी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना"।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हवा के संग उड़े पतंग (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 मई, 2013।
  2. चली चली रे पतंग मेरी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 मई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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