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{अल्टामीरा की गुफ़ाओं में किस जानवर का चित्र अधिक दिखाई पड़ता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-2
 
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-बैल
 
-[[हाथी]]
 
-[[भालू]]
 
+जंगली भैंसा
 
||अल्टामीरा की गुफ़ा की छत पर अंकित चित्र सर्वाधिक सुरक्षित हैं। यहां प्राय: महिष (जंगली भैंसा-Bison) ही अंकित है। कुछ चित्रों में जंगली अश्व, लंबे सींग वाला बकरा, लाल हिरन (रेड डियर), [[बारहसिंगा]] तथा [[सूअर]] के अलावा मानव हाथ के विचित्र शैल चित्रों की विशेषता है। यदा- कदा जंगली [[वृषभ]] और दुर्लभ रूप में [[भेड़िया|भेड़िये]] तथा लंबे कानों वाला 'एल्क' नामक हिरण भी चित्रित है। सभी पशु प्राकृतिक मुद्राओं में बनाए गए हैं। यहां ऐसे चित्र अंकित हैं जिनमें हाथ को दीवाए पर रखकर चारों ओर रंग फूंक दिया गया है या रंग के चूर्ण को दीवार पर हाथ के चारों ओर फेंका गया है, जिससे हाथ रखने पर दीवार का धरातल रंगयुक्त हो गया है।
 
 
{[[जातक कथा|जातक कथाएं]] क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-36,प्रश्न-64
 
|type="()"}
 
-राजाओं की कहानियां
 
-[[गणेश]] की कहानियां
 
-[[काली देवी|काली]] का प्रताप
 
+[[महात्मा बुद्ध|बुद्ध]] के पूर्व जन्म की कथाएं
 
||[[जातक कथा|जातक कथाओं]] का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं [[महात्मा बुद्ध|बुद्ध]] के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि [[अजंता की गुफ़ाएं|अजंता]] में जीवन तथा [[धर्म]] दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिर भी विशेष रूप से जातक कथाओं या बुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य- (1) अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। (2) इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर अंकित करना प्राचीन काल की सामान्य परिपाटी थी। जैसे भरहुत, सांची, [[अमरावती]] आदि स्थानों पर तथा [[गांधार मूर्तिकला शैली|गांधार कला]] में [[जातक कथा|जातक कथाओं]] के दृश्य अंकित हैं।
 
 
{स्टेण्ड ग्लास विधा किस युग में विकसित हुई थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-6
 
|type="()"}
 
-रोमनस्क युग
 
-बाइजेन्टाइन युग
 
+गोथिक युग
 
-[[आधुनिक काल|आधुनिक युग]]
 
||स्टेंड ग्लास विधा गोथिक कला युग में विकसित हुई थी।
 
 
{निम्न में से किस शासक के समय में [[नाथ संप्रदाय]] संबंधी चित्र बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-1
 
|type="()"}
 
-[[जोधपुर]] के [[मान सिंह|महाराजा मान सिंह]]
 
-[[किशनगढ़]] के [[नागरीदास|नागरी दास]]
 
+[[जयपुर]] के [[सवाई जयसिंह]]
 
-[[बूंदी]] के राव बुद्ध सिंह
 
||[[जयपुर]] के [[सवाई जयसिंह|सवाई जय सिंह]] के समय [[नाथ संप्रदाय]] से संबंधी चित्र बने। वास्तव में नाथ संप्रदाय संबंधी पेंटिंग्स [[मेवाड़ की चित्रकला|मेवाड़ कला]] की एक उपशाखा है। नाथ संप्रदाय संबंधी चित्रकला राजसिंह के समय में फूली-फली अर्थात विकसित हुई जबकि इस कला को बढ़ाने में सर्वाधिक योगदान जय सिंह तथा अमर सिंह द्वारा दिया गया। अत: उपर्युक्त आधार पर विकल्प (c) सही उत्तर हो सकता है।
 
 
{'पट-चित्र' [[राजस्थान]] की किस शैली में अधिक बने थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
-[[बूंदी चित्रकला|बूंदी शैली]]
 
+नाथद्वारा शैली
 
-[[मेवाड़ की चित्रकला|मेवाड़ शैली]]
 
-अलवर शैली
 
||'पट-चित्र' [[राजस्थान]] की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं।
 
 
{[[अबुल हसन]] के पिता का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
-[[बसावन]]
 
+आकारिजा
 
-[[मनोहर]]
 
-मंसूर
 
||[[अबुल हसन]] के पिता का नाम आकारिजा था। वह [[हेरात]] का निवासी था। अबुल हसन को [[जहांगीर]] ने 'नादिए अज़-जमा' की उपाधि से सम्मानित किया था। उसने जहांगीर की तख्तपोशी की तस्वीर बनाई थी।
 
 
{नारी अंकन का सुंदर चित्रण किस शैली में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
+[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी]]
 
-[[राजस्थानी कला|राजस्थानी]]
 
-जैन
 
-[[मुग़लकालीन चित्रकला|मुग़ल]]
 
||नारी अंकन का सुंदर चित्रण [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] की प्रमुख विशेषताओं में से एक थी। नायिका भेद संबंधी चित्र के अंतर्गत विविध प्रकार की नायिकाओं का वर्णन किया गया है। [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] में चित्रकारों ने 3 प्रकार की नायिकाओं का अंकन किया है। 1.स्वकीया, 2. परकीया तथा, 3.सामान्य। इन नायिकाओं की आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। वे इस प्रकार हैं- स्वाधीनपतिका, उत्का, वासक सज्जा, खंडिता, अभिसंघिता, प्रेषित पतिका, विप्रलब्धा और अभिसारिका आदि।
 
 
{रवि वर्मा कहां के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
-[[बंगाल]]
 
-[[मैसूर]]
 
-[[चेन्नई]]
 
+[[केरल]]
 
||राजा रवि वर्मा का जन्म [[29 अप्रैल]], 1848 को [[केरल]] के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: [[रामायण]] एवं [[महाभारत]] महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु [[2 अक्टूबर]], [[1906]] को हुई थीं।
 
 
{[[कला]] में आकृतियों के चित्रण का निषेध किस प्रकार की कला में किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-[[गोथिक कला]]
 
+बाइजेंटाइन-कला
 
-ईसाई कला
 
-रोमन कला
 
||आकृति विरोधी युग लगभग 100 वर्षों तक रहा जिसमें आकृति चित्रण को निषेध कर दिया गय। इस संकटपूर्ण का आरंभ 'लियो तृतीय' के शासन काल में हुआ जब 726 ई. में उसने [[कुस्तुन्तुनिया]] के राजकीय प्रासाद के कांस्य द्वार पर स्थित [[ईसा मसीह|ईसा]] की प्रतिमा को नष्ट करके उसके स्थान पर क्रास खड़ा कर दिया था। याज़ीद द्वितीय ने बहुत बड़ी संख्या में ईसाई चित्रों तथा मूर्तियों को नष्ट कराया। यह परिस्थिति लगभग 100 वर्षों तक चली। 843 ई. में मूर्ति विरोधी सम्राट थियोफाइलस की पत्नी थियोडोरा ने अपने पुत्र और साम्राज्य के उत्तराधिकारी माइकेल तृतीय की संरक्षिका के रूप में आकृति-रचना को फिर से वैध कर दिया तथा क्रास हटाकर ईसा की प्रतिमा को पुन: स्थापित कर दिया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-  [[ईसाई धर्म]] से संबंधित बाइजेंटाइन कला भवन वास्तु मूर्ति शिल्प, मणिकुट्टिम, भित्तिचित्र, पुस्तक चित्र, पेनल चित्र, लद्यु चित्र इत्यादि के रूप में विकसित हुई। इस युग के बाद ईसाई कला में दो प्रकार की आकृतियां चित्रित हुई। प्रथम प्रकार में सम्राटों को ईश्वर की सीधी वंश परंपरा में दिखाया जाने लगा और दूसरे में धार्मिक चित्र पुरानी पद्धतियों पर ही बनने आरंभ हुए। पश्चिमी देशों में भी ईसाई कला का स्वरूप पूर्वी दिशा की भांति रहा है। प्राय: रोम पद्धति की कला पर सीरियन प्रभाव भी देखे जा सकते हैं।
 
 
{गोथिक युग का वह चित्रकार कौन था, जिसके चित्रों ने पुनर्जागरण काल की चित्रकला को जन्म दिया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
-चिमाबू
 
-दुच्चो
 
+जिओत्तो
 
-बॉत्तीचेल्ली
 
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर [[गोथिक कला]] का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर [[इटली]] में सन् 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया।
 
 
 
 
 
 
{फ्रैंको-कैंटाब्रियन क्षेत्र किसे कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
+यूरोपीय प्रागैतिहासिक चित्रों का प्रमुख केंद्र
 
-[[फ़्राँस]] की प्रारंभिक कला का प्रमुख केंद्र
 
-फ़्राँस का मिदी क्षेत्र
 
-भूमध्य सागरीय कला का केंन्द्र
 
||फ्रैंको-कैंटाब्रियन क्षेत्र के अंतर्गत उत्तरी स्पेन तथा दक्षिणी-पश्चिमी फ्रांस की प्रागैतिहासिक कलात्मक गुफ़ाएं आती हैं। समस्त [[कला]] प्राय: तीन क्षेत्रों से संबंधित है- (1) दक्षिणी- पश्चिमी फ़्राँस का डोर्डोन तथा उसका निकटवर्ती क्षेत्र (2) दक्षिणी फ़्राँस का पेरीनियन क्षेत्र तथा (3) उत्तरी स्पेन का कैंटाब्रियन क्षेत्र।
 
 
{स्पेन की प्रागैतिहासिक चित्रकला में क्या चित्रित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-रेड डियर
 
-मानव
 
-बाइसन
 
+उपर्युक्त सभी
 
||अल्टामीरा की गुफ़ा की छत पर अंकित चित्र सर्वाधिक सुरक्षित हैं। यहां प्राय: महिष (जंगली भैंसा-Bison) ही अंकित है। कुछ चित्रों में जंगली अश्व, लंबे सींग वाला बकरा, लाल हिरन (रेड डियर), [[बारहसिंगा]] तथा [[सूअर]] के अलावा मानव हाथ के विचित्र शैल चित्रों की विशेषता है। यदा- कदा जंगली [[वृषभ]] और दुर्लभ रूप में [[भेड़िया|भेड़िये]] तथा लंबे कानों वाला 'एल्क' नामक हिरण भी चित्रित है। सभी पशु प्राकृतिक मुद्राओं में बनाए गए हैं। यहां ऐसे चित्र अंकित हैं जिनमें हाथ को दीवाए पर रखकर चारों ओर रंग फूंक दिया गया है या रंग के चूर्ण को दीवार पर हाथ के चारों ओर फेंका गया है, जिससे हाथ रखने पर दीवार का धरातल रंगयुक्त हो गया है।
 
 
{[[जातक कथा|जातक कथाएं]] किस के जीवन पर आधारित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-36,प्रश्न-65
 
|type="()"}
 
-[[महावीर]]
 
-[[शिव]]
 
+[[महात्मा बुद्ध]]
 
-[[शंकराचार्य]]
 
||[[जातक कथा|जातक कथाओं]] का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं [[महात्मा बुद्ध]] के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि [[अजंता की गुफ़ाएं|अजंता]] में जीवन तथा [[धर्म]] दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिर भी विशेष रूप से जातक कथाओं या बुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। (2) इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर सांची, [[अमरावती]] आदि स्थानों पर तथा [[गांधार मूर्तिकला शैली|गांधार कला]] में जातक कथाओं के दृश्य अंकित हैं।
 
 
{अंतर्राष्ट्रीय [[गोथिक कला|गोथिक शैली]] का स्पापत्य कहाँ पाया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-7
 
|type="()"}
 
-[[इंग्लैंड]]
 
-[[जर्मनी]]
 
-[[इटली]]
 
+उपरोक्त सभी
 
||अंतर्राष्ट्रीय गोथिक शैली का स्थापत्य [[फ़्राँस]], [[जर्मनी]], [[इंग्लैंड]], [[इटली]] इत्यादि में पाया जाता है।
 
 
{[[राजस्थान]] के पिछवई चित्र किस क्षेत्र के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-[[बूंदी]]
 
+[[नाथद्वारा]]
 
-[[किशनगढ़]]
 
-[[जयपुर]]
 
||'पट-चित्र' [[राजस्थान]] की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं।
 
 
{[[दिल्ली]] का [[लाल क़िला]] किसके पुत्र द्वारा बनवाया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-[[अकबर]]
 
-[[औरंगज़ेब]]
 
-[[हुमायूं]]
 
+[[जहांगीर]]
 
||[[जहांगीर]] के पुत्र [[शाहजहाँ]] ने [[दिल्ली]] में अपने नाम पर '[[शाहजहांनाबाद]]', नामक एक नगर की स्थापना वर्ष 1648 ई. में की तथा वहां अनेक सुंदर एवं वेभवपूर्ण भवनों के निर्माण कर उसे सुसज्जित करने का प्रयास किया। शाहजहांनाबाद के भवनों में [[लाल किला]] प्रमुख है। यह चतुर्भुज आकार का क़िला लाल बलुआ पत्थर से निर्मिण होने के कारण लाल किले के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1648 में पूर्ण हुआ। शाहजहाँ द्वारा बनवाए गए अन्य प्रमुख स्मारक हैं-[[ताजमहल]] ([[आगरा]]), [[जामा मस्जिद]] (दिल्ली), मोती मस्जिद (लाहौर) आदि।
 
 
{'[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]]' में कितने प्रकार की नायिकाएं होती थीं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-दो
 
-सात
 
+तीन
 
-पांच
 
||नारी अंकन का सुंदर चित्रण [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] की प्रमुख विशेषताओं में से एक थी। नायिका भेद संबंधी चित्र के अंतर्गत विविध प्रकार की नायिकाओं का वर्णन किया गया है। कांगड़ा शैली में चित्रकारों ने 3 प्रकार की नायिकाओं का अंकन किया है। 1.स्वकीया, 2. परकीया तथा, 3.सामान्य। इन नायिकाओं की आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। वे इस प्रकार हैं- स्वाधीनपतिका, उत्का, वासक सज्जा, खंडिता, अभिसंघिता, प्रेषित पतिका, विप्रलब्धा और अभिसारिका आदि।
 
 
{प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा का जन्म कहां हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-[[उत्तर प्रदेश]]
 
+[[केरल]]
 
-[[कर्नाटक]]
 
-[[पश्चिम बंगाल]]
 
||राजा रवि वर्मा का जन्म [[29 अप्रैल]], 1848 को [[केरल]] के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: [[रामायण]] एवं [[महाभारत]] महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु [[2 अक्टूबर]], [[1906]] को हुई थी।
 
 
{बाइजेन्टाइन-कला का प्रथम स्वर्णिम युग किस सम्राट का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-हेड्रियन
 
-कांस्टेन्टाइन
 
+जस्टीनियन
 
-वेस्पियन
 
||बाइजेन्टाइन-कला का प्रथम स्वर्णिम युग जस्टीनियन का शासन काल था। जस्टीनियन के शासन काल में सर्वोत्कृष्ट दर्जे के बड़े आकारों के व चमकीले पच्चीकारी चित्र बनाए गए। जस्टीनियन के समय विशुद्ध आलंकारिक कार्य अधिक प्रचलित थे। आकृति मूलक विषयों के अतिरिक्त पशु-पक्षी तथा ज्यामितीय अभिप्राय संभवत: फ़ारस आदि से आयातित टेक्सटाइल डिजाइनों की अनुकृति पर बने। कहीं-कहीं कूफी लिपि को उसका अर्थ समझे बिना ही, आलंकारिक अभिप्राय के रूप में प्राय: शिलाओं के हाथियों में उत्कीर्ण किया गया। ऐसी शिलाओं की एक पूरी शृंखला एथेंस के चर्च की दीवारों पर है जिसे 'लिटिल मेट्रोपोलिस' कहा जाता है।
 
 
{[[यूरोप]] की प्रारंभिक पुनर्जागरण युग की कला का समय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-1400-1480 ई.
 
-1410-1490 ई.
 
+1420-1500 ई.
 
-1430-1510 ई.
 
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर [[गोथिक कला]] का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर [[इटली]] में सन 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया।
 
 
 
 
 
 
{फ्रैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र किससे संबंधित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-धार्मिक कर्मकांड
 
+प्रागैतिहासिक कला
 
-आदिम गीत
 
-मध्यकालीन कला
 
||फ्रैंको-कैंटाब्रियन क्षेत्र की कलात्मक गुफ़ाओं का पता उन्नीसवीं शती के अंत में चला था। इन गुफ़ाओं में दीवारों तथा छतों पर अंकित चित्रों के रूप में हिमयुग (प्रागैतिहासिक कला) तक की प्राचीन सामग्री सुरक्षित है। इन चित्रों में अंकित पशुओं का अस्तित्व अब समाप्त हो चुका है। इनके अतिरिक्त इनमें अनेक उत्कीर्ण चित्र संकेताक्षर बने हुए हैं।
 
 
{सर्वप्रथम अल्टामीरा गुफ़ा में चित्रों की खोज किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-डी. पिरानी
 
+मारिया सातुओला
 
-ई. रेवियर
 
-एच. ब्रुइल
 
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफ़ा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 फ़ीट ऊंची है, अत: छत पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी।
 
 
{[[महात्मा बुद्ध]] के पूर्व जन्मों की काल्पनिक कथाएं किससे संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-66
 
|type="()"}
 
-[[पंचतंत्र]]
 
+[[जातक कथा|जातक कथाएं]]
 
-[[हितोपदेश]]
 
-इनमें से कोई नहीं
 
||[[जातक कथा|जातक कथाओं]] का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं [[महात्मा बुद्ध]] के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि [[अजंता की गुफ़ाएं|अजंता]] में जीवन तथा [[धर्म]] दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिर भी विशेष रूप से जातक कथाओं या बुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। (2) इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर सांची, [[अमरावती]] आदि स्थानों पर तथा गांधार कला में जातक कथाओं के दृश्य अंकित हैं।
 
 
{[[गोथिक कला]] शैली मुख्यत: किस प्रकार की शैली है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-8
 
|type="()"}
 
-चित्र शैली
 
-मूर्ति शैली
 
+[[स्थापत्य कला|स्थापत्य शैली]]
 
-इनमें से कोई नहीं
 
||[[गोथिक कला]] शैली मुख्यत: स्थापत्य शैली है परंतु साथ ही साथ इस कला ने मूर्तिकला, रंजित कांच एवं पाण्डुलिपि अलंकरण को भी प्रोत्साहित किया।
 
 
{पिछवई लोक चित्र कहां मिलता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
+[[राजस्थान]]
 
-[[गुजरात]]
 
-[[बिहार]]
 
-[[कर्नाटक]]
 
||'पट-चित्र' [[राजस्थान]] की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं।
 
 
{[[जहांगीर]] के बेटे ने कौन-सा क़िला बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
+[[लाल क़िला]]
 
-दिलवाड़ा का क़िला
 
-[[इंदौर]] का क़िला
 
-इनमें से कोई नहीं
 
||[[जहांगीर]] के पुत्र [[शाहजहां]] ने [[दिल्ली]] में अपने नाम पर '[[शाहजहांनाबाद]]', नामक एक नगर की स्थापना वर्ष 1648 ई. में की तथा वहां अनेक सुंदर एवं वेभवपूर्ण भवनों के निर्माण कर उसे सुसज्जित करने का प्रयास किया। शाहजहांनाबाद के भवनों में लाल क़िला प्रमुख है। यह चतुर्भुज आकार का क़िला लाल बलुआ पत्थर से निर्मिण होने के कारण लाल क़िले के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1648 में पूर्ण हुआ। शाहजहां द्वारा बनवाए गए अन्य प्रमुख स्मारक हैं-[[ताजमहल]] ([[आगरा]]), [[जामा मस्जिद]] ([[दिल्ली]]), मोती मस्जिद ([[लाहौर]]) आदि।
 
 
{अंडाकार रूप में व्यक्ति चित्रण किस शैली में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]]
 
-[[कंपनी शैली]]
 
-[[अपभ्रंश चित्रकला|अपभ्रंश शैली]]
 
+[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]]
 
||अंडाकार रूप में व्यक्ति चित्रण [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] में हुआ है। पहाड़ी चित्रकला की [[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] में अंग तथा भाव-भंगिमाओं का सजीव चित्रण प्राप्त होता है। इस शैली में नारी चित्रण को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। लंबी पतली भौंह, चमकीली आंखें, अंडाकार भरे हुए चेहरे, पतली कमर, लंबी-पतली उंगलियां, लहराते बाल आदि का चित्रण कांगड़ा शैली की प्रमुख विशेषताएं रही हैं।
 
 
{राजा रवि वर्मा का जन्म 1848 में किस स्थान पर हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-[[मदुरा]]
 
-[[तिरुवांकुर|त्रिवांकुर]]
 
-[[मैसूर]]
 
+किलिमनूर
 
||राजा रवि वर्मा का जन्म [[29 अप्रैल]], 1848 को [[केरल]] के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: [[रामायण]] एवं [[महाभारत]] महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु [[2 अक्टूबर]], [[1906]] को हुई थी।
 
 
{बाइजेन्टाइन-कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण किसमें पाया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-5
 
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-[[बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस|बेसिलिका गिर्जा]]
 
+सान विताले गिर्जा
 
-सेंट मार्क गिर्जा
 
-सेंट बसील गिर्जा
 
||रैवेन्ना के सान विताले के महामंदिर में (गिर्जा में) सम्राट जस्टीनियन व साम्राज्ञी थियोडोरा के परिचारकों सहित बने पच्चीकारी (मोजैक) चित्र इसके विश्व प्रसिद्ध उदाहरण हैं। इस [[कला]] के चरम उन्नति रैवेन्न के सान विताले नाम अष्टभुजी बाइजेन्टाइन भवन में दिखाई देती है।
 
 
{मानवतावाद किसकी कुंजी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-4
 
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+पुनरुत्थानवाद
 
-स्वच्छंदवाद
 
-यथार्थवाद
 
-उत्तर प्रभाववाद
 
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर गोथिक कला का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर इटली में सन् 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया।
 
 
 
 
 
 
 
{[[भारत]] में प्रागैतिहासिक चित्र कहां प्राप्त हुए है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-5
 
{[[भारत]] में प्रागैतिहासिक चित्र कहां प्राप्त हुए है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-5
 
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-खुर्जापुर
 
-खुर्जापुर
 
+[[सरगुजा ज़िला|सरगुजा]]
 
+[[सरगुजा ज़िला|सरगुजा]]
||दिए गए विकल्पों में [[भारत]] में प्रागैतिहासिक चित्र [[सरगुजा ज़िला|सरगुजा]] से प्राप्त हुए हैं। यह वर्तमान में [[छत्तीसगढ़ |छत्तीसगढ़ राज्य]] में स्थित है।
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||[[भारत]] में प्रागैतिहासिक चित्र [[सरगुजा ज़िला|सरगुजा]] से प्राप्त हुए हैं। यह वर्तमान में [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] में स्थित है।
  
{अल्टामीरा की गुफ़ाएं किस देश में हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-5
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{अल्तामिरा की गुफ़ाएं किस देश में हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-5
 
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-[[इटली]]
 
-[[इटली]]
 
-[[इंग्लैंड]]
 
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-[[फ़्राँस]]
 
-[[फ़्राँस]]
+स्पेन
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+[[स्पेन]]
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफ़ा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 फ़ीट ऊंची है, अत: छत पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी।
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||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्तामिरा गुफ़ा की गीली दीवार पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफ़ा सेंतेंदर से 31 कि.मी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित हैं। यहां की गुफ़ाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफ़ा की छत कहीं-कहीं 6-7 फ़ीट ऊंची है, अत: छत पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी।
  
 
{निम्न में से कौन-सी चित्रकला [[बौद्ध धर्म]] से सम्बधित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-68
 
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-[[कांगड़ा चित्रकला]]
 
-[[कांगड़ा चित्रकला]]
 
+अजंता चित्रकला
 
+अजंता चित्रकला
||अजंता चित्रकला शैली भित्तिचित्र कला का अप्रतिम नमूना है। इसकी विषय-वस्तु मुख्यत: [[बौद्ध धर्म]] से संबंधित रही है। इसके विपरीत [[मुग़ल चित्रकला]], [[राजस्थानी चित्रकला]] तथा [[कांगड़ा चित्रकला]] लद्यु चित्र शैली का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा अजंता चित्र शैली से काफी बाद की हैं।
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||अजंता चित्रकला शैली भित्तिचित्र कला का अप्रतिम नमूना है। इसकी विषय-वस्तु मुख्यत: [[बौद्ध धर्म]] से संबंधित रही है। इसके विपरीत [[मुग़ल चित्रकला]], [[राजस्थानी चित्रकला]] तथा [[कांगड़ा चित्रकला]] लद्यु चित्र शैली का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा अजंता चित्र शैली से काफ़ी बाद की हैं।
  
{गोथिक स्थापत्य शैली का प्रमुख निदर्शन कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-9
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{[[गोथिक शैली|गोथिक स्थापत्य शैली]] का प्रमुख निदर्शक कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-9
 
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-सेंट डेनिस कैथेड्रल
 
-सेंट डेनिस कैथेड्रल
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-मॅन्स गिर्जा
 
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-फ्लोरेन्स का गिर्जा
 
-फ्लोरेन्स का गिर्जा
||गोथिक स्थापत्य शैली का प्रमुख निदर्शन चार्ट्रेस कैथेड्रल थे।
 
  
 
{पिछवई किसके लिए चित्रित की गई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-5
 
{पिछवई किसके लिए चित्रित की गई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-5
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-महल
 
-महल
 
-गुहा
 
-गुहा
||'पट-चित्र' [[राजस्थान]] की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं।
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||'पट-चित्र' [[राजस्थान]] की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का उद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं।
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{[[हुमायूं]] का मकबरा किसने वनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-5
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{[[हुमायूं का मक़बरा]] किसने बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-5
 
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+[[अकबर]]
 
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-[[जहांगीर]]
 
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-[[शाहजहां]]
 
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||[[हुमांयू]] का मकबरा [[दिल्ली]] में स्थित है, जो हमायूं की पत्नी के संरक्षण में निर्मित हुआ तथा मीरक मिर्ज़ा ग़ियास के द्वारा इसका डिज़ाइन तैयार किया गया। यह मकबरा भारतीय-फ़ारसी वास्तुकला शैली का उदाहरण है। विकल्प में उपर्युक्त में से किसी का नाम न होने के कारण [[अकबर]] माना जा सकता है क्योंकि हुमायूं की [[मृत्यु]] के बाद शासन कार्य अकबर के हाथों में आ गया था।
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||[[हुमांयू का मक़बरा]] [[दिल्ली]] में स्थित है, जो हमायूं की पत्नी के संरक्षण में निर्मित हुआ तथा मीरक मिर्ज़ा ग़ियास के द्वारा इसका डिज़ाइन तैयार किया गया। यह मक़बरा भारतीय-फ़ारसी वास्तुकला शैली का उदाहरण है।
  
 
{[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी चित्रों]] का निर्माण कब से प्रारंभ हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-5
 
{[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी चित्रों]] का निर्माण कब से प्रारंभ हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-5
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-11वीं शताब्दी
 
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-21वीं शताब्दी
 
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||[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी चित्रों]] का निर्माण 18 वीं शताब्दी से (1700 ई. से 1900 ई. तक) प्रारंभ हुआ। आर्चर महोदय के अनुसार, 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक पश्चिम्मी-हिमालय के क्षेत्र प्रकार की कला विकसित नहीं हुई थी।
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||[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी चित्रों]] का निर्माण 18वीं शताब्दी से (1700 ई. से 1900 ई. तक) प्रारंभ हुआ। आर्चर महोदय के अनुसार, 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक पश्चिमी-हिमालय के क्षेत्र प्रकार की कला विकसित नहीं हुई थी।
  
{राजा रवि वर्मा का जन्म किस [[राज्य]] में हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-5
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{फ़िल्म 'रंग रसिया' निम्न में से किस कलाकार के जीवन पर आधारित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-92,प्रश्न-22
 
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-[[उड़ीसा]]
+
-अकबर पदमसी
-[[मध्य प्रदेश]]
+
-[[जामिनी राय]]
+[[केरल]]
+
+[[राजा रवि वर्मा]]
-[[गुजरात]]
+
-साबाबाला
||राजा रवि वर्मा का जन्म [[29 अप्रैल]], 1848 को [[केरल]] के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: [[रामायण]] एवं [[महाभारत]] महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु [[2 अक्टूबर]], [[1906]] को हुई थी।
 
  
 
{बाइजेन्टाइन-कला की क्या विशेषताएं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-6
 
{बाइजेन्टाइन-कला की क्या विशेषताएं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-6
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||रैवेन्ना के सान विताले के महामंदिर में (गिर्जा में) सम्राट जस्टीनियन व साम्राज्ञी थियोडोरा के परिचारकों सहित बने पच्चीकारी (मोजैक) चित्र इसके विश्व प्रसिद्ध उदाहरण हैं। इस [[कला]] के चरम उन्नति रैवेन्न के सान विताले नाम अष्टभुजी बाइजेन्टाइन भवन में दिखाई देती है।
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||रैवेन्ना के सान विताले के महामंदिर में (गिर्जा में) सम्राट जस्टीनियन व साम्राज्ञी थियोडोरा के परिचारकों सहित बने पच्चीकारी (मोजैक) चित्र इसके विश्व प्रसिद्ध उदाहरण हैं। इस [[कला]] के चरम उन्नति रैवेन्ना के सान विताले नाम अष्टभुजी बाइजेन्टाइन भवन में दिखाई देती है।
  
 
{पुनरुत्थान कला का केंद्र कहाँ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-5
 
{पुनरुत्थान कला का केंद्र कहाँ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-5
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+[[इटली]]
 
+[[इटली]]
 
-[[फ़्राँस]]
 
-[[फ़्राँस]]
||[[इटली]] 16वीं सदी की यूरोपीय उच्च पुनर्जागरण (हाई रेनेसां) कालीन [[कला]] का केंद्र था। इसके बाद [[जर्मनी]], फ्लैंर्ड्स, हॉलैंड, स्पेन व [[फ़्राँस]] में भी इस पुनर्जागरण का प्रभाव फैल गया और समग्र यूरोपियन कला को नई चेतना मिली। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पुनरुत्थान कला की सबसे प्रमुख विशेषता थी 'घनत्वांकन' जिसके कारण चित्रित मानवों, प्राणियों व वस्तुओं के आकार ठोस प्रतीत होते हैं। (2) रंगों का गौण स्थान था। मानवाकृतियों को आदर्श, कुलीन, व्यक्तिदर्शी रूप में व भावपूर्ण मुद्रा में अंकित करना इस समय के कलाकारों ने प्रारंभ किया। (3) इस समय के प्रमुख चित्रकार लियोनार्दो द विंसी, माइकेल एंजेलो व राफेल थे। तीनों कलाकारों (चरम पुनरुत्थान काल के तीनों कलाकार) में सबसे छोटा राफेल था। (4) राफेल की सर्वाधिक प्रसिद्ध 'मैडोना' चित्रों से है। (5) राफेल को 'डिवाइन पेंटर' कहा गया है।
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||[[इटली]] 16वीं सदी की यूरोपीय उच्च पुनर्जागरण (हाई रेनेसां) कालीन [[कला]] का केंद्र था। इसके बाद [[जर्मनी]], फ्लैंर्ड्स, हॉलैंड, स्पेन व [[फ़्राँस]] में भी इस पुनर्जागरण का प्रभाव फैल गया और समग्र यूरोपियन कला को नई चेतना मिली। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पुनरुत्थान कला की सबसे प्रमुख विशेषता थी 'घनत्वांकन' जिसके कारण चित्रित मानवों, प्राणियों व वस्तुओं के आकार ठोस प्रतीत होते हैं। (2) रंगों का गौण स्थान था। मानवाकृतियों को आदर्श, कुलीन, व्यक्तिदर्शी रूप में व भावपूर्ण मुद्रा में अंकित करना इस समय के कलाकारों ने प्रारंभ किया। (3) इस समय के प्रमुख चित्रकार लियोनार्दो द विंसी, माइकेल एंजेलो व राफेल थे। तीनों कलाकारों (चरम पुनरुत्थान काल के तीनों कलाकार) में सबसे छोटा राफेल था। (4) राफेल की सर्वाधिक प्रसिद्ध 'मैडोना' चित्रों से है। (5) राफेल को 'डिवाइन पेंटर' कहा गया है।
 
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12:38, 15 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

1 भारत में प्रागैतिहासिक चित्र कहां प्राप्त हुए है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-5

मुजफ़्फ़रपुर
बिन्दकी
खुर्जापुर
सरगुजा

2 अल्तामिरा की गुफ़ाएं किस देश में हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-5

इटली
इंग्लैंड
फ़्राँस
स्पेन

3 निम्न में से कौन-सी चित्रकला बौद्ध धर्म से सम्बधित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-68

मुग़ल चित्रकला
राजस्थानी चित्रकला
कांगड़ा चित्रकला
अजंता चित्रकला

4 गोथिक स्थापत्य शैली का प्रमुख निदर्शक कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-9

सेंट डेनिस कैथेड्रल
चार्ट्रेस कैथेड्रल
मॅन्स गिर्जा
फ्लोरेन्स का गिर्जा

5 पिछवई किसके लिए चित्रित की गई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-5

मंदिर
स्तूप
महल
गुहा

6 हुमायूं का मक़बरा किसने बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-5

अकबर
बाबर
जहांगीर
शाहजहां

7 पहाड़ी चित्रों का निर्माण कब से प्रारंभ हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-5

20 वीं शताब्दी
18वीं शताब्दी
11वीं शताब्दी
21वीं शताब्दी

8 फ़िल्म 'रंग रसिया' निम्न में से किस कलाकार के जीवन पर आधारित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-92,प्रश्न-22

अकबर पदमसी
जामिनी राय
राजा रवि वर्मा
साबाबाला

9 बाइजेन्टाइन-कला की क्या विशेषताएं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-6

मोजैक भित्तिचित्र
चित्रित भित्तिचित्र
टेराकोटा भित्तिचित्र
फ्रेस्को भित्तिचित्र

10 पुनरुत्थान कला का केंद्र कहाँ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-5

जर्मनी
इंग्लैंड
इटली
फ़्राँस