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कोई फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता  
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फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता  
 
चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता  
 
चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता  
  

12:53, 5 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

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फ़ासले मिटाके -आदित्य चौधरी

फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता
चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता

उसे ज़िन्दगी में अपनी, मेरी तलाश होती
मैं उसकी सुबह होता, वो मेरी शाम होता

मेरी आरज़ू में उसके, ख़ाबों के फूल होते
यूँ साथ उसके रहना, कितना हसीन होता

जब शाम कोई तन्हा, खोई हुई सी होती
तब जिस्म से ज़ियादा, वो पास दिल के होता

दिल के हज़ार सदमे, ग़म के हज़ार लम्हे
इक साथ उसका होना, राहत तमाम होता


टीका टिप्पणी और संदर्भ