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*बर्नियर, फ़्रैंको एक फ़्राँसीसी विद्वान डॉक्टर थे।
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[[Category:]]'''बर्नियर''' / '''फ्रांस्वां बर्नियर''' एक फ़्राँसीसी विद्वान् डॉक्टर थे। सत्रहवीं [[सदी]] में फ्राँस से [[भारत]] आए फ़्रेंसिस बर्नियर [[विदेशी यात्री]] थे। उस समय भारत पर मुग़लों का शासन था। बर्नियर के आगमन के समय [[मुग़ल]] बादशाह [[शाहजहाँ]] अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुग़ल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।
*सत्रहवीं सदी में फ्रांस से भारत आए फैंव्किस बर्नियर विदेशी यात्री थे। उस समय भारत पर मुग़लों का शासन था। मुग़ल बादशाह, शाहजहां उस समय अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुगल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएं बर्नियर ने स्वयं देखी थीं। उन्होंने लिखा है - 'मैंने सूरत में आकर यह भी मालूम किया कि शाहजहां की उमर इस समय सत्तर वर्ष के लगभग है और उसके चार पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं और कई वर्ष हुए उसने अपने चारों पुत्रों को भारतवर्ष के बड़े बड़े चार प्रदेशों का जिनको राज्य का एक एक भाग कहना चाहिए संपूर्ण अधिकार प्रदान कर दिया है। मुझे यह भी विदित हुआ है कि एक वर्ष से कुछ अधिक काल से बादशाह ऐसा बीमार है कि उसके जीवन में भी संदेह है और उसकी ऐसी अवस्था देखकर शाहजादों ने राज्य-प्राप्ति के लिए मंसूबे बांधने और उद्योग करने आरंभ कर दिए हैं। अंत में भाइयों में लड़ाई छिड़ी और वह पांच वर्ष तक चली।'<ref>{{cite web|url=http://bhartiyaaudiobooks.com/bs/home.php?bookid=4601|title=बर्नियर की भारत यात्रा|accessmonthday=22.10 |accessyear=2010|last= |first= |authorlink= |format=php|publisher=bhartiyaaudiobooks.com|language=हिन्दी}}</ref>
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==संक्षिप्त परिचय==
*'बर्नियर की भारत यात्रा' पुस्तक में बर्नियर द्वारा लिखित यात्रा का वृत्तांत उस काल के [[भारत]] की छवि हमारे समक्ष उजागर करता है। यूं तो हमारे इतिहासकारों ने उस काल के विषय में बहुत कुछ लिखा है, लेकिन एक विदेशी की नजर से भारत को देखने, जानने का रोमांच कुछ अलग ही है।
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*'बर्नियर की भारत यात्रा' पुस्तक में बर्नियर द्वारा लिखित यात्रा का वृत्तांत उस काल के भारत की छवि हमारे समक्ष उजागर करता है।
*[[भारत]] में वह 1656 ई. से 1668 ई. तक रहा, बर्नियर सारे देश का भ्रमण किया और [[शाहजहाँ]] तथा [[औरंगज़ेब]] के मध्यवर्ती शासनकालों में उसने भारत में जो कुछ देखा उसका रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।  
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*भारत में वह 1656 ई. से 1668 ई. तक रहे, बर्नियर ने सारे देश का भ्रमण किया और शाहजहाँ तथा [[औरंगज़ेब]] के मध्यवर्ती शासनकालों में उसने भारत में जो कुछ देखा उसका रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।  
 
*उसने मुग़ल दरबार के प्रमुख दरबारी दानिशमन्द की नौकरी कर ली थी।  
 
*उसने मुग़ल दरबार के प्रमुख दरबारी दानिशमन्द की नौकरी कर ली थी।  
*वह [[दिल्ली]] में उस समय मौजूद था, जब [[दारा शिकोह|शाहजादा दारा]] को राजधानी की सड़कों पर घुमाया गया।
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*वह [[दिल्ली]] में उस समय मौजूद था, जब [[दारा शिकोह]] को राजधानी की सड़कों पर घुमाया जा रहा था और औरंगज़ेब के सैनिक उसे घसीट रहे थे।
*शाहजादा दारा के पीछे-पीछे भारी भीड़ चल रही थी, जो कि उसके दुर्भाग्य पर विलाप कर रही थी। फिर भी भीड़ में से किसी व्यक्ति को अपनी तलवार निकाल कर दारा को छुड़ाने का साहस नहीं हुआ।  
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*शाहजादा दारा के पीछे-पीछे भारी भीड़ चल रही थी, जो कि उसके दुर्भाग्य पर विलाप कर रही थी। फिर भी भीड़ में से किसी व्यक्ति को अपनी तलवार निकालकर दारा को छुड़ाने का साहस नहीं हुआ।  
*इस प्रकार बर्नियर विदेशी होने पर भी सत्ताधारियों के सम्मुख भारतीय जनता की निष्क्रियता तथा असहायावस्था को लक्षित कर लिया था।  
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*इस प्रकार बर्नियर ने विदेशी होने पर भी सत्ताधारियों के सम्मुख भारतीय जनता की निष्क्रियता तथा असहायावस्था को लक्षित कर लिया था।  
 
*बर्नियर ने शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के रेखाचित्र भी प्रस्तुत किए हैं।  
 
*बर्नियर ने शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के रेखाचित्र भी प्रस्तुत किए हैं।  
 
*[[बंगाल]] की समृद्धि से वह बहुत प्रभावित हुआ था, परन्तु जनसाधारण की निर्धनता ने उसे अत्यधिक द्रवित भी किया था।  
 
*[[बंगाल]] की समृद्धि से वह बहुत प्रभावित हुआ था, परन्तु जनसाधारण की निर्धनता ने उसे अत्यधिक द्रवित भी किया था।  
 
*दरबार की शान-शौक़त तथा विशाल सेना का ख़र्च निकालने के लिए प्रजा पर करों का भारी बोझ लाद दिया जाता था।  
 
*दरबार की शान-शौक़त तथा विशाल सेना का ख़र्च निकालने के लिए प्रजा पर करों का भारी बोझ लाद दिया जाता था।  
*इस विशाल सेना का उपयोग जनता को दबाये रखने के लिए किया जाता था।
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*बर्नियर के अनुसार इस विशाल सेना का उपयोग जनता को दबाये रखने के लिए किया जाता था।
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==चिकित्सक, दार्शनिक एवं इतिहासकार==
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बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा इतिहासकार था। कई और लोगों की तरह वह भी मुग़ल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में यहां आया था। वर्ष 1668 तक [[भारत]] में रहा और मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा पहले सम्राट [[शाहजहां]] के ज्येष्ठ पुत्र [[दारा शिकोह]] के चिकित्सक के रूप में और बाद में एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद ख़ना के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में। बाद में उसी दारा शिकोह के कत्ल और सार्वजनिक नुमाइश का जिक्र भी उसने ब्योरेवार किया है। बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और जो देखा उसके विषय में विवरण लिखे। लगभग प्रत्येक दृष्टांत में बर्नियर ने [[भारत]] की स्थिति को [[यूरोप]] में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। उसका आकलन हमेशा सटीक नहीं था फिर भी उसके वृत्तांत लोकप्रिय सिद्ध हुए। बर्नियर के वृतांत फ्रांस में 1670-1671 ई. में प्रकाशित हुए थे और 5 वर्षों के भीतर ही अंग्रेज़ी, डच, जर्मन तथा 48 भाषाओं में अनुवाद हो गया था। बर्नियर के विवरणों ने पश्चिमी इतिहासकारों को बहुत प्रभावित किया। बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहता है जिससे उसका आशय उन नजरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका विश्वास था कि यह राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेज़ीसे पतनोन्मुख हो जाते थे।
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वास्तव में तब सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे-  उत्पादन केंद्र,  व्यापारिक नगर,  बंदरगाह नगर,  धार्मिक केंद्र,  तीर्थ स्थान आदि।  व्यापारी अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे।  [[पश्चिमी भारत]] में ऐसे समूह को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ।  [[अहमदाबाद]] जैसे शहरी केंद्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे ‘ नगर सेठ’ कहा जाता था।  अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग, जैसे- चिकित्सक, हकीम अथवा वैद्य, अध्यापक, पंडित या मुल्ला, अधिवक्ता, वकील, चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।<ref>अहा! ज़िन्दगी | अप्रैल 2018 | पृष्ठ संख्या- 71</ref>
  
 
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[[Category:]]बर्नियर / फ्रांस्वां बर्नियर एक फ़्राँसीसी विद्वान् डॉक्टर थे। सत्रहवीं सदी में फ्राँस से भारत आए फ़्रेंसिस बर्नियर विदेशी यात्री थे। उस समय भारत पर मुग़लों का शासन था। बर्नियर के आगमन के समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुग़ल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।

संक्षिप्त परिचय

  • 'बर्नियर की भारत यात्रा' पुस्तक में बर्नियर द्वारा लिखित यात्रा का वृत्तांत उस काल के भारत की छवि हमारे समक्ष उजागर करता है।
  • भारत में वह 1656 ई. से 1668 ई. तक रहे, बर्नियर ने सारे देश का भ्रमण किया और शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के मध्यवर्ती शासनकालों में उसने भारत में जो कुछ देखा उसका रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।
  • उसने मुग़ल दरबार के प्रमुख दरबारी दानिशमन्द की नौकरी कर ली थी।
  • वह दिल्ली में उस समय मौजूद था, जब दारा शिकोह को राजधानी की सड़कों पर घुमाया जा रहा था और औरंगज़ेब के सैनिक उसे घसीट रहे थे।
  • शाहजादा दारा के पीछे-पीछे भारी भीड़ चल रही थी, जो कि उसके दुर्भाग्य पर विलाप कर रही थी। फिर भी भीड़ में से किसी व्यक्ति को अपनी तलवार निकालकर दारा को छुड़ाने का साहस नहीं हुआ।
  • इस प्रकार बर्नियर ने विदेशी होने पर भी सत्ताधारियों के सम्मुख भारतीय जनता की निष्क्रियता तथा असहायावस्था को लक्षित कर लिया था।
  • बर्नियर ने शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के रेखाचित्र भी प्रस्तुत किए हैं।
  • बंगाल की समृद्धि से वह बहुत प्रभावित हुआ था, परन्तु जनसाधारण की निर्धनता ने उसे अत्यधिक द्रवित भी किया था।
  • दरबार की शान-शौक़त तथा विशाल सेना का ख़र्च निकालने के लिए प्रजा पर करों का भारी बोझ लाद दिया जाता था।
  • बर्नियर के अनुसार इस विशाल सेना का उपयोग जनता को दबाये रखने के लिए किया जाता था।

चिकित्सक, दार्शनिक एवं इतिहासकार

बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा इतिहासकार था। कई और लोगों की तरह वह भी मुग़ल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में यहां आया था। वर्ष 1668 तक भारत में रहा और मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा पहले सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में और बाद में एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद ख़ना के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में। बाद में उसी दारा शिकोह के कत्ल और सार्वजनिक नुमाइश का जिक्र भी उसने ब्योरेवार किया है। बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और जो देखा उसके विषय में विवरण लिखे। लगभग प्रत्येक दृष्टांत में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। उसका आकलन हमेशा सटीक नहीं था फिर भी उसके वृत्तांत लोकप्रिय सिद्ध हुए। बर्नियर के वृतांत फ्रांस में 1670-1671 ई. में प्रकाशित हुए थे और 5 वर्षों के भीतर ही अंग्रेज़ी, डच, जर्मन तथा 48 भाषाओं में अनुवाद हो गया था। बर्नियर के विवरणों ने पश्चिमी इतिहासकारों को बहुत प्रभावित किया। बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहता है जिससे उसका आशय उन नजरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका विश्वास था कि यह राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेज़ीसे पतनोन्मुख हो जाते थे।

वास्तव में तब सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे- उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। व्यापारी अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूह को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ। अहमदाबाद जैसे शहरी केंद्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे ‘ नगर सेठ’ कहा जाता था। अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग, जैसे- चिकित्सक, हकीम अथवा वैद्य, अध्यापक, पंडित या मुल्ला, अधिवक्ता, वकील, चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अहा! ज़िन्दगी | अप्रैल 2018 | पृष्ठ संख्या- 71

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