एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

बर्नियर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:20, 10 फ़रवरी 2021 का अवतरण (Text replacement - "तेजी " to "तेज़ी")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

[[Category:]]बर्नियर / फ्रांस्वां बर्नियर एक फ़्राँसीसी विद्वान् डॉक्टर थे। सत्रहवीं सदी में फ्राँस से भारत आए फ़्रेंसिस बर्नियर विदेशी यात्री थे। उस समय भारत पर मुग़लों का शासन था। बर्नियर के आगमन के समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुग़ल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।

संक्षिप्त परिचय

  • 'बर्नियर की भारत यात्रा' पुस्तक में बर्नियर द्वारा लिखित यात्रा का वृत्तांत उस काल के भारत की छवि हमारे समक्ष उजागर करता है।
  • भारत में वह 1656 ई. से 1668 ई. तक रहे, बर्नियर ने सारे देश का भ्रमण किया और शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के मध्यवर्ती शासनकालों में उसने भारत में जो कुछ देखा उसका रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।
  • उसने मुग़ल दरबार के प्रमुख दरबारी दानिशमन्द की नौकरी कर ली थी।
  • वह दिल्ली में उस समय मौजूद था, जब दारा शिकोह को राजधानी की सड़कों पर घुमाया जा रहा था और औरंगज़ेब के सैनिक उसे घसीट रहे थे।
  • शाहजादा दारा के पीछे-पीछे भारी भीड़ चल रही थी, जो कि उसके दुर्भाग्य पर विलाप कर रही थी। फिर भी भीड़ में से किसी व्यक्ति को अपनी तलवार निकालकर दारा को छुड़ाने का साहस नहीं हुआ।
  • इस प्रकार बर्नियर ने विदेशी होने पर भी सत्ताधारियों के सम्मुख भारतीय जनता की निष्क्रियता तथा असहायावस्था को लक्षित कर लिया था।
  • बर्नियर ने शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के रेखाचित्र भी प्रस्तुत किए हैं।
  • बंगाल की समृद्धि से वह बहुत प्रभावित हुआ था, परन्तु जनसाधारण की निर्धनता ने उसे अत्यधिक द्रवित भी किया था।
  • दरबार की शान-शौक़त तथा विशाल सेना का ख़र्च निकालने के लिए प्रजा पर करों का भारी बोझ लाद दिया जाता था।
  • बर्नियर के अनुसार इस विशाल सेना का उपयोग जनता को दबाये रखने के लिए किया जाता था।

चिकित्सक, दार्शनिक एवं इतिहासकार

बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा इतिहासकार था। कई और लोगों की तरह वह भी मुग़ल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में यहां आया था। वर्ष 1668 तक भारत में रहा और मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा पहले सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में और बाद में एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद ख़ना के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में। बाद में उसी दारा शिकोह के कत्ल और सार्वजनिक नुमाइश का जिक्र भी उसने ब्योरेवार किया है। बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और जो देखा उसके विषय में विवरण लिखे। लगभग प्रत्येक दृष्टांत में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया। उसका आकलन हमेशा सटीक नहीं था फिर भी उसके वृत्तांत लोकप्रिय सिद्ध हुए। बर्नियर के वृतांत फ्रांस में 1670-1671 ई. में प्रकाशित हुए थे और 5 वर्षों के भीतर ही अंग्रेज़ी, डच, जर्मन तथा 48 भाषाओं में अनुवाद हो गया था। बर्नियर के विवरणों ने पश्चिमी इतिहासकारों को बहुत प्रभावित किया। बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहता है जिससे उसका आशय उन नजरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका विश्वास था कि यह राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेज़ीसे पतनोन्मुख हो जाते थे।

वास्तव में तब सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे- उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। व्यापारी अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूह को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ। अहमदाबाद जैसे शहरी केंद्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे ‘ नगर सेठ’ कहा जाता था। अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग, जैसे- चिकित्सक, हकीम अथवा वैद्य, अध्यापक, पंडित या मुल्ला, अधिवक्ता, वकील, चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अहा! ज़िन्दगी | अप्रैल 2018 | पृष्ठ संख्या- 71

संबंधित लेख