|
|
(8 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 27 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | {{अभ्यास पन्ना}}
| |
− | <!--सम्पादन अभ्यास इस से नीचे करे -->
| |
− | [[Category:प्रकृति का सरंक्षण ]][[Category:प्रकृति का सरंक्षण ]][[Category:प्रकृति का सरंक्षण ]]
| |
− | {{लेख प्रगति|आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= प्रकृति}}
| |
| | | |
− | प्रकृति का सरंक्षण
| |
− | ...................
| |
− |
| |
− | प्रकृति का करो तुम संरक्षण
| |
− | यही करती है जीवन का सृजन
| |
− | वृक्षों को तुम लहलहाने दो
| |
− | पशु पक्षियों से तुम प्रेम करो
| |
− | करो नित्य सौंदर्य का अवलोकन
| |
− | तुम्हे देना होगा ये वचन
| |
− | करोगे कर्तव्यों का निर्वहन
| |
− |
| |
− | नदियों ने तुमको जल दिया
| |
− | मत रोको उनके धारा को
| |
− | वृक्षों ने तुमको फल दिया
| |
− | मत उनका करो तुम दोहन
| |
− | कुदरत देती तुम्हे जीवन दान
| |
− | तुम कर लो इसका अब नमन
| |
− |
| |
− | सोचो जब वर्षा न होगी
| |
− | क्या खाओगे क्या पिओगे
| |
− | जब नदियाँ सुख जाएँगी
| |
− | झुलसेगी ये धरती जब
| |
− | तब सह न सकोगे तुम तपन
| |
− | अगर बचाना है मानवता को
| |
− | तो मानना होगा ये कथन
| |
− | तुम्हे रोकना होगा प्रदुषण
| |
− |
| |
− | अगर तुम अब भी न सुनोगे ये पुकार
| |
− | तुम न करोगे इसका सम्मान
| |
− | तो कब तक करेगी ये तुझको वहन
| |
− | तुम्हे देखना होगा तब रौद्र रूप
| |
− | तब करना होगा सब सहन
| |
− | इसलिए तुम्हे मैं कहता हूँ
| |
− | ये प्रकृति देती है तुमको जीवन
| |
− | समझो तुम इसको अपना मित्र
| |
− | खोलो तुम अपना अंतर्मन
| |
− | प्रकृति का करो तुम संरक्षण
| |
− | यही करती है जीवन का सृजन
| |
− | यही करती है जीवन का सृजन
| |
− | .
| |