"मंडावर उत्तर प्रदेश" के अवतरणों में अंतर

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[[कालीदास]] के [[अभिज्ञान शाकुंतलम्]] में वर्णित [[मालिनी नदी]] (मालन) के तट पर बसा हुआ प्राचीन स्थान है। स्थानीय किंवदन्ती में इस क़स्बे को बड़े प्राचीन काल से ही [[कण्व]] ऋषि का आश्रम माना गया है, जो यहाँ की स्थिति को देखते हुए ठीक जान पड़ता है। [[पाणिनी]] ने शायद इसी स्थान को <ref>अष्टाध्यायी 4,2,10</ref> में '''मार्देयपुर''' कहा है।
 
[[कालीदास]] के [[अभिज्ञान शाकुंतलम्]] में वर्णित [[मालिनी नदी]] (मालन) के तट पर बसा हुआ प्राचीन स्थान है। स्थानीय किंवदन्ती में इस क़स्बे को बड़े प्राचीन काल से ही [[कण्व]] ऋषि का आश्रम माना गया है, जो यहाँ की स्थिति को देखते हुए ठीक जान पड़ता है। [[पाणिनी]] ने शायद इसी स्थान को <ref>अष्टाध्यायी 4,2,10</ref> में '''मार्देयपुर''' कहा है।
 
   
 
   
मंडावर के उत्तर की ओर कुछ ही दूर पर [[गंगा नदी|गंगा]] है, जिसके दूसरे तट पर वर्तमान [[शुक्करताल]] है <ref>जो [[उत्तर प्रदेश]] के ज़िले [[मुज़फ़्फ़र नगर]] में स्थित है</ref>, या अभिज्ञान शाकुंतल का [[शक्रावतार]] है। हस्तिनापुर जाते समय [[शकुंतला]] की उंगली से [[दुष्यंत]] की अंगूठी इसी स्थान पर गंगा के स्रोत में गिर गई थी।  
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मंडावर के उत्तर की ओर कुछ ही दूर पर [[गंगा नदी|गंगा]] है, जिसके दूसरे तट पर वर्तमान [[शुक्करताल]] है <ref>जो [[उत्तर प्रदेश]] के ज़िले [[मुज़फ़्फ़र नगर ज़िला]] में स्थित है</ref>, या अभिज्ञान शाकुंतल का [[शक्रावतार]] है। हस्तिनापुर जाते समय [[शकुंतला]] की उंगली से [[दुष्यंत]] की अंगूठी इसी स्थान पर गंगा के स्रोत में गिर गई थी।  
 
[[हस्तिनापुर]] का मार्ग मंडावर से गंगा पार शुक्करताल हो कर ही जाता है। मंडावर के उत्तर-पश्चिम में नजीबाबाद के ऊपर कजलीवन स्थित है। जहाँ कालिदास के वर्णन के अनुसार दुष्यंत आखेट के लिए आया था।  
 
[[हस्तिनापुर]] का मार्ग मंडावर से गंगा पार शुक्करताल हो कर ही जाता है। मंडावर के उत्तर-पश्चिम में नजीबाबाद के ऊपर कजलीवन स्थित है। जहाँ कालिदास के वर्णन के अनुसार दुष्यंत आखेट के लिए आया था।  
 
==प्राचीन नाम==
 
==प्राचीन नाम==

10:55, 21 जुलाई 2010 का अवतरण

मंडावर बिजनौर से प्रायः 10 मील उत्तर-पूर्व की ओर है।

प्राचीन स्थान

कालीदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् में वर्णित मालिनी नदी (मालन) के तट पर बसा हुआ प्राचीन स्थान है। स्थानीय किंवदन्ती में इस क़स्बे को बड़े प्राचीन काल से ही कण्व ऋषि का आश्रम माना गया है, जो यहाँ की स्थिति को देखते हुए ठीक जान पड़ता है। पाणिनी ने शायद इसी स्थान को [1] में मार्देयपुर कहा है।

मंडावर के उत्तर की ओर कुछ ही दूर पर गंगा है, जिसके दूसरे तट पर वर्तमान शुक्करताल है [2], या अभिज्ञान शाकुंतल का शक्रावतार है। हस्तिनापुर जाते समय शकुंतला की उंगली से दुष्यंत की अंगूठी इसी स्थान पर गंगा के स्रोत में गिर गई थी। हस्तिनापुर का मार्ग मंडावर से गंगा पार शुक्करताल हो कर ही जाता है। मंडावर के उत्तर-पश्चिम में नजीबाबाद के ऊपर कजलीवन स्थित है। जहाँ कालिदास के वर्णन के अनुसार दुष्यंत आखेट के लिए आया था।

प्राचीन नाम

मंडावर का प्राचीन नाम कर्निघम के अनुसार मतिपुर है, जहाँ 634 ई. के लगभग चीनी यात्री युवानच्वांग आया था। यहाँ पर उस समय बौद्ध विहार था, जहाँ गुणप्रभ का शिष्य मित्रसेन रहता था। इसकी आयु 90 वर्ष की थी। गुणप्रभ ने सैकड़ों ग्रंथों की रचना की थी। युवानच्वांग के अनुसार मतिपुर जिस देश की राजधानी था, उसका क्षेत्रफल 6000 ली या 1000 मील था। यहाँ पर उस समय 20 बौद्ध संघाराम और 50 देव मन्दिर स्थित थे। युवानच्वांग ने इस नगर को, जिसका राजा उस समय शूद्र जाति का था, बहुत समृद्ध दशा में पाया था। उसने इसे माटीपोलो नाम से अभिहित किया है। चीनी यात्री ने जिन स्तूपों का वर्णन किया है, उनका अभियान करने का प्रयास भी कर्निघम ने किया है। यहाँ से उत्खनन में कुषाण तथा गुप्त नरेशों के सिक्के, मध्यकालीन मूर्तियाँ तथा अन्य अवशेष मिले हैं। किंवदन्ती है कि यहाँ का पीरवाली ताल, बौद्ध संत विमल मित्र के मरने पर जो भूचाल आया था, उसके कारण बना है। यह घटना प्रायः 700 वर्ष पुरानी कही जाती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 684-685| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार</ span>
  1. अष्टाध्यायी 4,2,10
  2. जो उत्तर प्रदेश के ज़िले मुज़फ़्फ़र नगर ज़िला में स्थित है