मनोज कुमार

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पद्मश्री व राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मनोज कुमार अथवा हरिकिशन गिरि गोस्वामी (अंग्रेज़ी: Manoj Kumar अथवा Harikrishna Giri Goswami) (जन्म- 24 जुलाई 1937 अबोटाबाद, (अब पाकिस्तान में) फ़िल्म जगत के प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता, निर्माता व निर्देशक हैं। अपनी फ़िल्मों के जरिए लोगों को देशभक्ति की भावना का गहराई से एहसास कराने वाले मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बेहद प्रभावित हैं और इसी भावना ने उन्हें शहीद जैसी कालजई फ़िल्म में देश के इस अमर सपूत के किरदार को जीवंत करने की प्रेरणा दी थी। 1992 में मनोज कुमार को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

जन्म

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के अबोटाबाद में हुआ था। उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी है। देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में बस गया था।

प्रमुख फ़िल्म

मनोज ने अपने करियर में शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम और क्रांति जैसी देशभक्ति पर आधारित अनेक बेजोड़ फ़िल्मों में काम किया। इसी वजह से उन्हें भारत कुमार भी कहा जाता है।

निर्देशक

शहीद के दो साल बाद उन्होंने बतौर निर्देशक अपनी पहली फ़िल्म उपकार का निर्माण किया। उसमें मनोज ने भारत नाम के किसान युवक का किरदार निभाया था जो परिस्थितिवश गांव की पगडंडियाँ छोड़कर मैदान-ए-जंग का सिपाही बन जाता है। जय जवान जय किसान के नारे पर आधारित वह फ़िल्म उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के विशेष आग्रह पर बनाई थी। उस फ़िल्म में गांव के आदमी के शहर की तरफ भागने, फिर वापस लौटने और उससे जुड़े सामाजिक रिश्तों की कहानी थी जिसमें उस वक्त के हालात को ज़्यादा से ज़्यादा समेटने की कोशिश की गई थी।

फ़िल्म उपकार

उपकार खूब सराही गई और उसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला था। फ़िल्म को द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार तथा सर्वश्रेष्ठ संवाद का बीएफजेए अवार्ड भी दिया गया।

फ़िल्म शहीद

मनोज को शहीद के लिए सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। मनोज कुमार ने शहीद फ़िल्म में सरदार भगत सिंह की भूमिका को जीकर उस किरदार के फ़िल्मी रूपांतरण को भी अमर बना दिया था।

फ़िल्मी दुनिया

मनोज कुमार दिलीप कुमार से बेहद प्रभावित थे और उन्होंने अपना नाम फ़िल्म शबनम में दिलीप के किरदार के नाम पर मनोज रख लिया था। मनोज कुमार ने वर्ष 1957 में बनी फ़िल्म फ़ैशन के जरिए बड़े पर्दे पर कदम रखा। प्रमुख भूमिका की उनकी पहली फ़िल्म कांच की गुडि़या (1960) थी। उसके बाद उनकी दो और फ़िल्में पिया मिलन की आस और रेशमी रुमाल आई लेकिन उनकी पहली हिट फ़िल्म हरियाली और रास्ता (1962) थी। मनोज कुमार ने वो कौन थी, हिमालय की गोद में, गुमनाम, दो बदन, पत्थर के सनम, यादगार, शोर, सन्यासी, दस नम्बरी और क्लर्क जैसी अच्छी फ़िल्मों में काम किया। उनकी आखिरी फ़िल्म मैदान-ए-जंग (1995) थी। बतौर निर्देशक उन्होंने अपनी अंतिम फ़िल्म ‘जय हिंद’ 1999 में बनाई थी।

प्रसिद्धि

मनोज कुमार अपनी देशभक्तिपूर्ण फ़िल्मों की वजह से जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी फ़िल्मों में भारतीयता की खोज की। उन्होंने दर्शकों को देशप्रेम और देशभक्ति के बारे में बताया। उन्होंने आँसूतोड़ फ़िल्में बनाईं और मुनाफे से ज़्यादा अपना नाम कमाया जिसके कारण वे भारत कुमार कहलाए। फ़िल्म जगत में मनोज कुमार अपनी देशभक्तिपूर्ण फ़िल्मों के कारण जाने जाते हैं, अपने अभिनय के कारण नहीं।

पुरस्कार

मनोज कुमार को वर्ष 1972 में फ़िल्म बेईमान के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और वर्ष 1975 में रोटी कपड़ा और मकान के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फ़िल्मफेयर अवार्ड दिया गया था। बाद में वर्ष 1992 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मनोज कुमार को फालके रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

  • 1992- भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार
  • 1968- फ़िल्म 'उपकार' के लिए सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फ़िल्मफेयर पुरस्कार
  • 1972 - फ़िल्म 'बेईमान' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार
  • 1975 - फ़िल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार
  • 1999 - लाइफ़ टाइम अचीवमेंट के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार


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