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मौसम है ये गुनाह का -आदित्य चौधरी

मौसम है ये गुनाह का इक करके देख लो
जी लो किसी के इश्क़ में या मर के देख लो

क्या ज़िन्दगी मिली तुम्हें डरने के वास्ते?
जो भी लगे कमाल उसे करके देख लो

जो लोग तुमसे कह रहे जाना नहीं ‘उधर’
इतना भी क्या है पूछना, जाकर के देख लो

कब-कब हैं ये मंज़र ये नज़ारे हयात के
इक बार ही देखो तो नज़र भर के देख लो

कुछ लोग रोज़ मर रहे, जीने की फ़िक्र में
जीना है अगर शान से तो मर के देख लो

जमती नहीं है रस्म-ओ-रिवायत की बंदिशें
परवाज़ नए ले, उड़ान भर के देख लो

‘आदित्य’ को रुसवा जो कर रहे हो शहर में
तो सारे गिरेबान इस शहर के देख लो


टीका टिप्पणी और संदर्भ