एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

"यूँ तो कुछ भी नया नहीं -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो ("यूँ तो कुछ भी नया नहीं -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि)))
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:transparent;"
+
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
|- valign="top"
 
| style="width:85%"|
 
{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; margin-left:5px; border-radius:5px; padding:10px;"
 
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
[[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]]  
+
<br />
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>यूँ तो कुछ भी नया नहीं<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
+
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>
 +
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>यूँ तो कुछ भी नया नहीं<br />
 +
<small>-आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
<font color=#003333 size=4>
+
<poem style="color=#003333">
<poem>
 
 
यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
 
यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
 
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!
 
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!
पंक्ति 28: पंक्ति 26:
 
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!
 
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!
 
</poem>
 
</poem>
</font>
 
|}
 
| style="width:15%"|
 
<noinclude>{{सम्पादकीय}}</noinclude>
 
 
|}
 
|}
  
पंक्ति 38: पंक्ति 32:
 
<references/>
 
<references/>
 
{{भारतकोश सम्पादकीय}}
 
{{भारतकोश सम्पादकीय}}
</noinclude>
 
 
[[Category:कविता]]
 
[[Category:कविता]]
 
[[Category:आदित्य चौधरी की रचनाएँ]]
 
[[Category:आदित्य चौधरी की रचनाएँ]]
 +
</noinclude>
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__

07:49, 4 अक्टूबर 2012 का अवतरण


Copyright.png
यूँ तो कुछ भी नया नहीं
-आदित्य चौधरी

यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!

वो जो इक दूर से आवाज़ आ रही थी कोई !
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!

तुझे भुला न सकूँगा ये मेरी फ़ितरत है !
चैन मिलता है मुझे, ख़ुद को भूल जाने में !!

सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
मैं भी हैरान हूँ, इस क़िस्म के वीराने में !!
 
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
तन्हा जीने की भी, इक शर्त है ज़माने में !!
 
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!


टीका टिप्पणी और संदर्भ