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लिखने के लिए काग़ज़ कम थे
 
लिखने के लिए काग़ज़ कम थे
  
जब आँख अचानक भर आई
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रोने के लिए कोने कम थे
 
रोने के लिए कोने कम थे
  
अब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
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जब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
पर अर्थी को कांधे कम थे
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अर्थी के लिए कांधे कम थे
 
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14:20, 10 जून 2012 का अवतरण

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ये दास्तान कुछ ऐसी है -आदित्य चौधरी


जीने के लिए सदक़े कम थे [1]
मरने के लिए लम्हे कम थे 

चाहत का भरोसा कौन करे
रिश्ते के लिए वादे कम थे

ये दास्तान ही ऐसी है
सुनने के लिए राज़ी कम थे

मयख़ाने में रिंदों से कहा [2]
पीने वाले समझे कम थे

कहना लिख कर भी चाहा तो
लिखने के लिए काग़ज़ कम थे

अब आँख अचानक भर आई
रोने के लिए कोने कम थे

जब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
अर्थी के लिए कांधे कम थे

सम्पादकीय विषय सूची
अतिथि रचनाकार 'चित्रा देसाई' की कविता सम्पादकीय आदित्य चौधरी की कविता

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सदक़ा = न्यौछावर, दान
  2. रिंद = शराबी