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07:03, 24 सितम्बर 2013 का अवतरण

Copyright.png
ये दास्तान कुछ ऐसी है -आदित्य चौधरी

जीने के लिए सदक़े कम थे [1]
मरने के लिए लम्हे कम थे 

चाहत का भरोसा कौन करे
रिश्ते के लिए वादे कम थे

ये दास्तान ही ऐसी है
सुनने के लिए राज़ी कम थे

मयख़ाने में रिंदों से कहा [2]
पीने वाले समझे कम थे

कहना लिख कर भी चाहा तो
लिखने के लिए काग़ज़ कम थे

अब आँख अचानक भर आई
रोने के लिए कोने कम थे

जब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
अर्थी के लिए कांधे कम थे



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सदक़ा = न्यौछावर, दान
  2. रिंद = शराबी