"ये दास्तान कुछ ऐसी है -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| width="100%" style="background:transparent;"
+
{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;"
|- valign="top"
 
| style="width:85%"|
 
{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:10px;"
 
 
|-
 
|-
 
|  
 
|  
[[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]]  
+
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>ये दास्तान कुछ ऐसी है <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div>
+
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>ये दास्तान कुछ ऐसी है<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
 
----
 
----
<br />
+
{| width="100%" style="background:transparent"
<font color=#003333 size=4>
+
|-valign="top"
<poem>
+
| style="width:35%"|
जीने के लिए सदक़े कम थे <ref>सदक़ा=न्यौछावर, दान</ref>
+
| style="width:35%"|
 +
<poem style="color=#003333">
 +
जीने के लिए सदक़े कम थे <ref>सदक़ा = न्यौछावर, दान</ref>
 
मरने के लिए लम्हे कम थे 
 
मरने के लिए लम्हे कम थे 
  
पंक्ति 20: पंक्ति 19:
 
सुनने के लिए राज़ी कम थे
 
सुनने के लिए राज़ी कम थे
  
मयख़ाने में रिंदों से कहा <ref>रिंद=शराबी </ref>
+
मयख़ाने में रिंदों से कहा <ref>रिंद = शराबी </ref>
 
पीने वाले समझे कम थे
 
पीने वाले समझे कम थे
  
पंक्ति 30: पंक्ति 29:
  
 
अब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
 
अब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
पर अर्थी को कांधे कम थे
+
अर्थी के लिए कांधे कम थे
 
</poem>
 
</poem>
</font>
+
| style="width:30%"|
 
|}
 
|}
| style="width:15%"|
 
<noinclude>{{सम्पादकीय}}</noinclude>
 
 
|}
 
|}
  
 +
<br />
 +
 +
<noinclude>
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
<noinclude>
 
 
{{भारतकोश सम्पादकीय}}
 
{{भारतकोश सम्पादकीय}}
 
</noinclude>
 
</noinclude>

13:38, 5 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

Copyright.png
ये दास्तान कुछ ऐसी है -आदित्य चौधरी

जीने के लिए सदक़े कम थे [1]
मरने के लिए लम्हे कम थे 

चाहत का भरोसा कौन करे
रिश्ते के लिए वादे कम थे

ये दास्तान ही ऐसी है
सुनने के लिए राज़ी कम थे

मयख़ाने में रिंदों से कहा [2]
पीने वाले समझे कम थे

कहना लिख कर भी चाहा तो
लिखने के लिए काग़ज़ कम थे

जब आँख अचानक भर आई
रोने के लिए कोने कम थे

अब सुकूं आख़री ढूंढ लिया
अर्थी के लिए कांधे कम थे



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सदक़ा = न्यौछावर, दान
  2. रिंद = शराबी