"रसखान- उपादान लक्षणा" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('जहां वाक्यार्थ की संगति के लिए अन्य अर्थ के लक्षित क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
मैया की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न
 
मैया की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न
 
गोरस के ढारे को न चीर चीरि डारे को।  
 
गोरस के ढारे को न चीर चीरि डारे को।  
यहै दुख भारी गहै डगर हमारी माँझ,
+
यहै दु:ख भारी गहै डगर हमारी माँझ,
 
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।<ref>सुजान रसखान, 46</ref></poem>
 
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।<ref>सुजान रसखान, 46</ref></poem>
 
तीसरी पंक्ति में उपादान लक्षणा है। द्वार-द्वार नाचने वाला आज हमारे सामने आंखें नचा रहा है। उपादान लक्षणा से विदित हो रहा है कि वह हमारे साथ छल कर रहा है।  
 
तीसरी पंक्ति में उपादान लक्षणा है। द्वार-द्वार नाचने वाला आज हमारे सामने आंखें नचा रहा है। उपादान लक्षणा से विदित हो रहा है कि वह हमारे साथ छल कर रहा है।  

14:03, 2 जून 2017 का अवतरण

जहां वाक्यार्थ की संगति के लिए अन्य अर्थ के लक्षित किये जाने पर भी अपना अर्थ न छूटे वहां उपादान लक्षणा होती है।[1] रसखान के काव्य में उपादान लक्षणा के सफल प्रयोग के दर्शन होते हैं।

अन्त ते न आयौ याही गाँवरे को जायौ
माई बापरे जिवायौ प्याइ दूध बारे बारे को।
सोई रसखानि पहिवानि कानि छाँडि चाहै,
लोचन नचावत नचैया द्वारे द्वारे को।
मैया की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न
गोरस के ढारे को न चीर चीरि डारे को।
यहै दु:ख भारी गहै डगर हमारी माँझ,
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।[2]

तीसरी पंक्ति में उपादान लक्षणा है। द्वार-द्वार नाचने वाला आज हमारे सामने आंखें नचा रहा है। उपादान लक्षणा से विदित हो रहा है कि वह हमारे साथ छल कर रहा है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काव्य-दर्पण, पृ0 24
  2. सुजान रसखान, 46

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख