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*रावल जैसल 12 वीं [[शताब्दी]] में एक [[राजपूत|भाटी राजपूत]] था जिसने [[जैसलमेर|जैसलमेर शहर]] की स्थापना की थी। रावल जैसल [[यदुवंश|यदुवंशी]] था ।  
 
*रावल जैसल 12 वीं [[शताब्दी]] में एक [[राजपूत|भाटी राजपूत]] था जिसने [[जैसलमेर|जैसलमेर शहर]] की स्थापना की थी। रावल जैसल [[यदुवंश|यदुवंशी]] था ।  
*रावल जैसल, रावल दुसाज का ज्येष्ठ [[पुत्र]] था
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*रावल जैसल, रावल दुसाज का ज्येष्ठ [[पुत्र]] था।
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भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति [[मथुरा]] व [[द्वारिका]] के यदुवंशी [[कृष्ण|इतिहास पुरुष कृष्ण]] से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, [[गजनी]], [[काबुल]] व [[लाहौर]] के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मध्य एशिया से आने वाले [[तुर्क]] आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए [[पंजाब]] की ओर अग्रसर होते हुए [[भटनेर]] नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया।
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उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था। अत: ये भटनेर से पुन: अग्रसर होकर [[सिंध]] [[मुल्तान]] की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह, मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए [[थार रेगिस्तान|थार के रेगिस्तान]] स्थित [[परमार वंश|परमारों]] के क्षेत्र में [[लोद्रवा]] नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।
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सन 1175 ई. के लगभग [[मोहम्मद गौरी]] के निचले सिंध व उससे लगे हुए लोद्रवा पर आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया व राजसत्ता '''रावल जैसल''' के हाथ में आ गई जिसने शीघ्र उचित स्थान देकर सन् 1178 ई. के लगभग त्रिकूट नाम के पहाड़ी पर अपनी नई राजधानी स्थापित की जो उसके नाम से '''जैसल-मेरु''' - जैसलमेर कहलाई।<ref>{{cite web |url=http://ignca.nic.in/coilnet/rj017.htm|title=जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास|accessmonthday=06 सितम्बर|accessyear= 2018|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
 
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07:21, 6 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

परिचय

भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति मथुराद्वारिका के यदुवंशी इतिहास पुरुष कृष्ण से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, गजनी, काबुललाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मध्य एशिया से आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए पंजाब की ओर अग्रसर होते हुए भटनेर नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया।

उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था। अत: ये भटनेर से पुन: अग्रसर होकर सिंध मुल्तान की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह, मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए थार के रेगिस्तान स्थित परमारों के क्षेत्र में लोद्रवा नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।

सन 1175 ई. के लगभग मोहम्मद गौरी के निचले सिंध व उससे लगे हुए लोद्रवा पर आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया व राजसत्ता रावल जैसल के हाथ में आ गई जिसने शीघ्र उचित स्थान देकर सन् 1178 ई. के लगभग त्रिकूट नाम के पहाड़ी पर अपनी नई राजधानी स्थापित की जो उसके नाम से जैसल-मेरु - जैसलमेर कहलाई।[1]


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  1. जैसलमेर के शासक तथा इनका संक्षिप्त इतिहास (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 सितम्बर, 2018।