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विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाडयुः प्रवर्धते।
 
विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाडयुः प्रवर्धते।
विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्धिद्ययामृतश्नुते।।<ref>{{cite web |url=http://www.poojavidhi.com/vidhi.aspx?pid=92 |title=विद्यारंभ संस्कार |accessmonthday=[[28 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=पूजा विधि|language=हिन्दी}}</ref>
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विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्धिद्ययामृतश्नुते।।<ref>{{cite web |url=http://www.poojavidhi.com/vidhi.aspx?pid=92 |title=विद्यारंभ संस्कार |accessmonthday=[[28 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=पूजा विधि|language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
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अर्थात वेदविद्या के अध्ययन से सारे पापों का लोप होता है, आयु की वृद्धि होती है, सारी सिद्धियां प्राप्त होती है, यहां तक कि विद्यार्थी के समक्ष साक्षात् अमृतरस अशन-पान के रुप में उपलब्ध हो जाता है।
 
अर्थात वेदविद्या के अध्ययन से सारे पापों का लोप होता है, आयु की वृद्धि होती है, सारी सिद्धियां प्राप्त होती है, यहां तक कि विद्यार्थी के समक्ष साक्षात् अमृतरस अशन-पान के रुप में उपलब्ध हो जाता है।

11:38, 8 मार्च 2011 का अवतरण

विद्यारंभ संस्कार का संबध उपनयन संस्कार की भांति गुरुकुल प्रथा से था, जब गुरुकुल का आचार्य बालक को यज्ञोपवीत धारण कराकर, वेदाध्ययन करता था।

गुरुजनों से वेदों और उपनिषदों का अध्ययन कर तत्त्वज्ञान की प्राप्ति करना ही इस संस्कार का परम प्रयोजन है। जब बालक-बालिका का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता है, तब यह संस्कार किया जाता है। आमतौर या 5 वर्ष का बच्चा इसके लिए उपयुक्त होता है। मंगल के देवता गणेश और कला की देवी सरस्वती को दमन करके उनसे प्रेरणा ग्रहण करने की मूल भावना इस संस्कार में निहित होती है। बालक विद्या देने वाले गुरु का पूर्ण श्रद्धा से अभिवादन व प्रणाम इसलिए करता है कि गुरु उसे एक श्रेष्ठ मानव बनाए।

ज्ञानस्वरुप वेदों का विस्तृत अध्ययन करने के पूर्व मेधाजनन नामक एक उपांग-संस्कार करने का विधान भी शास्त्रों में वर्णित है। इसके करने से बालक में मेधा, प्रज्ञा, विद्या तथा श्रद्धा की अभिवृद्धि होती है। इससे वेदाध्ययन आदि में ना केवल सुविधा होती है, बल्कि विद्याध्ययन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती।

विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाडयुः प्रवर्धते।
विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्धिद्ययामृतश्नुते।।[1]

अर्थात वेदविद्या के अध्ययन से सारे पापों का लोप होता है, आयु की वृद्धि होती है, सारी सिद्धियां प्राप्त होती है, यहां तक कि विद्यार्थी के समक्ष साक्षात् अमृतरस अशन-पान के रुप में उपलब्ध हो जाता है। शास्त्रवचन है की जिसे विद्या नहीं आती, उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के चारों फलों से वंचित रहना पडता है। इसलिए विद्या की आवश्यकता अनिवार्य है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विद्यारंभ संस्कार (हिन्दी) (ए.एस.पी) पूजा विधि। अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2011

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