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[[चित्र:Vima Taktu.jpg|विम तक्षम<br />  Vima Taksham<br />[[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]|thumb|200px]]
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'''विम तक्षम''' [[कुषाण साम्राज्य]] का सबसे शक्तिशाली शासक था। अनुमान किया जाता है कि वह लगभग 80 ई. से 95 ई. के समय शासक हुआ होगा। उसके उत्तराधिकारी [[विम कडफ़ाइसिस]] और [[कनिष्क|कनिष्क प्रथम]] थे। विम तक्षम द्वारा जारी सिक्कों पर एक ओर राजा की तथा दूसरी ओर भगवान [[शिव]] की मूर्ति अंकित है, जिससे यह ज्ञात होता है कि वह शिव का [[भक्त]] था। उसके सिक्के [[बनारस]] से लेकर [[पंजाब]] तक प्राप्त हुए हैं।
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विम तक्षम जारी करवाये गए सिक्के [[बनारस]] से लेकर [[पंजाब]] तक बहुत बड़ी मात्रा में मिले है। प्राप्त सिक्कों पर एक तरफ राजा की मूर्ति अंकित है तथा सिक्के के दूसरी तरफ [[शिव]] के भक्त [[नंदी|नंदी बैल]] के साथ खड़े हुए शिव अंकित हैं। [[सिंहली]] और [[खरोष्ठी लिपि]] में लिखे गए लेख भी मिलते हैं, जैसे-
  
'''ईसवी सन (80–105) (Ancient Chinese: 阎膏珍 Yangaozhen )'''
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==विम तक्षम की मूर्ति==
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सिक्कों पर नंदी के साथ शिव की मूर्ति के बने होने और 'महिवरस' (माहेश्वरस्य) उपाधि होने से ज्ञात होता है कि विम तक्षम भगवान शिव का भक्त था। [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] में [[मांट गाँव]] के पास ही 'इटोकरी' नामक टीले से 'विम की विशालकाय मूर्ति' भी प्राप्त हुई है। [[चित्र:Vima Taktu-2.jpg|यहाँ 'विम तक्षम' का नाम अंग्रेज़ी में संग्रहालय की भूल से ग़लत लिखा है। देखें '[[राबाटक लेख]]'|thumb|250px|left]] इस मूर्ति का सिर खंडित है। सिंहासन पर बैठे हुए राजा ने लम्बा चोगा तथा सलवार की तरह का पायजामा पहना हुआ है। उसके हाथ में तलवार थी, जिसकी केवल मूंठ ही शेष बची है, बाक़ी तलवार खंड़ित है। पैरो में फीते से कसे हुए जूते पहने हुए है। उन के नीचे [[ब्राह्मी लिपी]] में लेख ख़ुदा हुआ है, यहाँ पर राजा का नाम तथा उसकी उपाधियों के विषय में इस प्रकार का विवरण है-
  
*विम तक्षम के उत्तराधिकारी [[विम कडफाइसिस]] और [[कनिष्क]] प्रथम थे । विम तक्षम ने [[कुषाण]] साम्राज्य को भारत में उत्तर पश्चिम तक बढ़ा दिया । [[चित्र:Vima Taktu-2.jpg|यहाँ 'विम तक्षम' का नाम अंग्रेज़ी में संग्रहालय की भूल से ग़लत लिखा है। देखें '[[राबाटक लेख]]'|thumb|250px|left]]
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"महाराज राजाधिराज देवपुत्र कुषाणपुत्र शाहि विम तक्षम<ref>इसमें प्रथम तीनों शब्द भारतीय उपाधियों के सूचक हैं। 'कुषाणपुत्र' वंश का परिचायक है, कुछ लोग इस शब्द से विम को 'कुषाण' नामक राजा (कुजुल) का पुत्र मानते हैं। 'शाहि' और 'तक्षम' शब्द ईरानी हैं, प्रथम का अर्थ 'शासक' तथा दूसरे का 'बलवान 'है।</ref> इस [[शिलालेख]] से पता चलता है कि विम तक्षम ने अपने शासन के समय में एक मन्दिर<ref>'देवकुल' से मन्दिर का अभिप्राय लिया जाता है। पर यहाँ इसका अर्थ 'राजाओं का प्रतिमा कक्ष' है। [[कुषाण|कुषाणों]] में मृत राजा की मूर्ति बनवाकर 'देवकुल 'में रखने की प्रथा थी। इस प्रकार का एक देवकुल मांट के उक्त टीले में तथा दूसरा [[मथुरा|मथुरा नगर]] के उत्तर में गोकर्णेश्वरमन्दिर के पास विद्यमान था। दूसरी शती में [[हुविष्क|सम्राट हुविष्क]] के शासनकाल में [[मांट गाँव|मांट]] वाले देवकुल की मरम्मत कराई गई।</ref> उद्यान, पुष्करिणी तथा [[कूप]] को भी निर्मित किया गया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://www.kushan.org/contents.htm कुषाण इतिहास]
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==संबंधित लेख==
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[[Category:इतिहास_कोश]][[Category:शक एवं कुषाण काल]][[Category:कुषाण साम्राज्य]]
 
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12:23, 4 मई 2016 के समय का अवतरण

विम तक्षम
विम तक्षम की प्रतिमा, राजकीय संग्रहालय, मथुरा
पूरा नाम विम तक्षम
जन्म भारत
पिता/माता कुजुल कडफ़ाइसिस
शासन 80 ई. से 95 ई. तक लगभग
प्रसिद्धि कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली शासक।
राजधानी मथुरा
पूर्वाधिकारी कुजुल कडफ़ाइसिस
वंश कुषाण वंश
संबंधित लेख कुजुल कडफ़ाइसिस, कनिष्क, हुविष्क
अन्य जानकारी मथुरा ज़िले में मांट गाँव के पास ही 'इटोकरी' नामक टीले से 'विम की विशालकाय मूर्ति' भी प्राप्त हुई है। मूर्ति का सिर खंडित है। सिंहासन पर बैठे हुए राजा ने लम्बा चोगा तथा सलवार की तरह का पायजामा पहना हुआ है।
विम तक्षमकुषाण साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक था। अनुमान किया जाता है कि वह लगभग 80 ई. से 95 ई. के समय शासक हुआ होगा। उसके उत्तराधिकारी विम कडफ़ाइसिस और कनिष्क प्रथम थे। विम तक्षम द्वारा जारी सिक्कों पर एक ओर राजा की तथा दूसरी ओर भगवान शिव की मूर्ति अंकित है, जिससे यह ज्ञात होता है कि वह शिव का भक्त था। उसके सिक्के बनारस से लेकर पंजाब तक प्राप्त हुए हैं।

राज्य विस्तार

विम के उत्तराधिकारी विम कडफ़ाइसिस और कनिष्क प्रथम थे। विम तक्षम ने कुषाण साम्राज्य को भारत में उत्तर पश्चिम तक बढ़ा दिया था। माना जाता है कि वह लगभग 80 ई. से 95 ई. के समय में शासक हुआ होगा। विम बड़ा शक्तिशाली शासक था। अपने पिता कुजुल के द्वारा विजित राज्य के अतिरिक्त विम ने पूर्वी उत्तर प्रदेश तक अपने राज्य की सीमा स्थापित कर ली थी। उसने अपने राज्य की सीमाओं का पूर्वी सीमा बनारस तक विस्तार किया था। इस विस्तृत राज्य का प्रमुख केन्द्र मथुरा को बनाया गया था।

सिक्के

विम तक्षम जारी करवाये गए सिक्के बनारस से लेकर पंजाब तक बहुत बड़ी मात्रा में मिले है। प्राप्त सिक्कों पर एक तरफ राजा की मूर्ति अंकित है तथा सिक्के के दूसरी तरफ शिव के भक्त नंदी बैल के साथ खड़े हुए शिव अंकित हैं। सिंहली और खरोष्ठी लिपि में लिखे गए लेख भी मिलते हैं, जैसे-

'महरजस रजदिरजस सर्वलोग इशवरस महिश वरस विमकटफिशस ब्रदर'
'महरज रजदिरज हिमकपिशस
महरजस रजदिरजस सर्वलोग इश् वर महिश् वर विमकठफिसस ब्रदर

विम तक्षम की मूर्ति

सिक्कों पर नंदी के साथ शिव की मूर्ति के बने होने और 'महिवरस' (माहेश्वरस्य) उपाधि होने से ज्ञात होता है कि विम तक्षम भगवान शिव का भक्त था। मथुरा ज़िले में मांट गाँव के पास ही 'इटोकरी' नामक टीले से 'विम की विशालकाय मूर्ति' भी प्राप्त हुई है।
यहाँ 'विम तक्षम' का नाम अंग्रेज़ी में संग्रहालय की भूल से ग़लत लिखा है। देखें 'राबाटक लेख'
इस मूर्ति का सिर खंडित है। सिंहासन पर बैठे हुए राजा ने लम्बा चोगा तथा सलवार की तरह का पायजामा पहना हुआ है। उसके हाथ में तलवार थी, जिसकी केवल मूंठ ही शेष बची है, बाक़ी तलवार खंड़ित है। पैरो में फीते से कसे हुए जूते पहने हुए है। उन के नीचे ब्राह्मी लिपी में लेख ख़ुदा हुआ है, यहाँ पर राजा का नाम तथा उसकी उपाधियों के विषय में इस प्रकार का विवरण है-

"महाराज राजाधिराज देवपुत्र कुषाणपुत्र शाहि विम तक्षम[1] इस शिलालेख से पता चलता है कि विम तक्षम ने अपने शासन के समय में एक मन्दिर[2] उद्यान, पुष्करिणी तथा कूप को भी निर्मित किया गया।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसमें प्रथम तीनों शब्द भारतीय उपाधियों के सूचक हैं। 'कुषाणपुत्र' वंश का परिचायक है, कुछ लोग इस शब्द से विम को 'कुषाण' नामक राजा (कुजुल) का पुत्र मानते हैं। 'शाहि' और 'तक्षम' शब्द ईरानी हैं, प्रथम का अर्थ 'शासक' तथा दूसरे का 'बलवान 'है।
  2. 'देवकुल' से मन्दिर का अभिप्राय लिया जाता है। पर यहाँ इसका अर्थ 'राजाओं का प्रतिमा कक्ष' है। कुषाणों में मृत राजा की मूर्ति बनवाकर 'देवकुल 'में रखने की प्रथा थी। इस प्रकार का एक देवकुल मांट के उक्त टीले में तथा दूसरा मथुरा नगर के उत्तर में गोकर्णेश्वरमन्दिर के पास विद्यमान था। दूसरी शती में सम्राट हुविष्क के शासनकाल में मांट वाले देवकुल की मरम्मत कराई गई।

बाहरी कड़ियाँ

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