व्यक्तित्व और चरित्र -दिनेश सिंह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Dinesh Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:13, 8 अगस्त 2014 का अवतरण ('<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको य...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
चित्र:व्यक्तित्व और चरित्र -दिनेश सिंह
व्यक्तित्व और चरित्र -दिनेश सिंह लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

आपको नया पन्ना बनाने के लिए यह आधार दिया गया है

Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।

मन के गहरे अंधकार में
ज्वलित हुआ एक प्रश्न प्रबल
मानव हो तुम सबसे सुंदर
फिर क्यों करता है अति छलबल

तुम जीवन के सौन्दर्य सृष्टि हो
कुदरत की आदर्श दृष्टि हो
न्योछावर तुझमे सकल सृष्टि है
अगणित सुषमावो से निर्मित हो

प्रथम सृष्टि का कैसे आना
ये मानव पहचान तुमने
विज्ञानं ज्ञान का समावेश
है बस तेरे मन मस्तिक में

हे अखिल विश्व के चिर रूपम
ये सब है बस तेरे उर अन्तः में
फिर क्यों भरता है राग देव्ष
अपने मन के अन्तः कण में

क्यों खोज रहा है ज्योती तम में
फैल जा व्योम का विस्तार बनके
नहीं देव अन्तः भेद फिर तुझमे है क्यों
बरस जा जलद से जल धार बनके

जीत सको तुम त्रिभुवन को
कर सको पूर्ण अभिलाषा मन के
कुछ भी दुर्लभ नहीं तुम्हे
यदि चलें सदा मानव बनके

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख