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'''शंखो चौधरी''' ([[अंग्रेज़ी]] - ''Sankho Chaudhuri'', जन्म- [[25 फ़रवरी]], [[1916]]; मृत्यु- [[28 अगस्त]], [[2006]]) भारतीय मूर्तिकार थे, जो [[भारत]] के कला परिदृश्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। यद्यपि उनका वास्तविक नाम 'नर नारायण रखा' गया था, लेकिन वे अपने घरेलू नाम 'शंखो' से अधिक व्यापक रूप से जाने जाते थे। शंखो चौधरी ने प्रसिद्ध मूर्तिकार [[रामकिंकर बैज]] से शिक्षा ग्रहण की थी, जिनसे वह [[पेरिस]] में मिले थे। शंखों चौधरी के मूर्तिशिल्प के विषयों में महिला आकृति और वन्य जीवन शामिल हैं। उन्होंने मीडिया की एक विस्तृत श्रृंखला में काम किया था। आपने लकड़ी, [[धातु]], टेराकोटा, प्रस्तर (काला और सफेद संगमरमर) का प्रयोग किया। उनकी मूर्तिशिल्प में वक्राकार रूप प्रदान कर उनको जीवंत बनाने की। कोशिश हुई है।
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}}'''शंखो चौधरी''' ([[अंग्रेज़ी]] - ''Sankho Chaudhuri'', जन्म- [[25 फ़रवरी]], [[1916]]; मृत्यु- [[28 अगस्त]], [[2006]]) भारतीय मूर्तिकार थे, जो [[भारत]] के कला परिदृश्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। यद्यपि उनका वास्तविक नाम 'नर नारायण रखा' गया था, लेकिन वे अपने घरेलू नाम 'शंखो' से अधिक व्यापक रूप से जाने जाते थे। शंखो चौधरी ने प्रसिद्ध मूर्तिकार [[रामकिंकर बैज]] से शिक्षा ग्रहण की थी, जिनसे वह [[पेरिस]] में मिले थे। शंखों चौधरी के मूर्तिशिल्प के विषयों में महिला आकृति और वन्य जीवन शामिल हैं। उन्होंने मीडिया की एक विस्तृत श्रृंखला में काम किया था। आपने लकड़ी, [[धातु]], टेराकोटा, प्रस्तर (काला और सफेद संगमरमर) का प्रयोग किया। उनकी मूर्तिशिल्प में वक्राकार रूप प्रदान कर उनको जीवंत बनाने की। कोशिश हुई है।
 
==परिचय==
 
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शंखो चौधरी का जन्म 25 फ़रवरी, 1916 को संथाल परगना, [[बिहार]] में हुआ। आप रामकिंकर बेज के शिष्य थे। [[1939]] में स्थानक की उपाधि [[शांति निकेतन]] से प्राप्त की। [[1945]] में उन्होंने कलाभवन शांति निकेतन से ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। [[धातु]] की धुलाई का नेपाल पद्धति से अध्ययन किया। [[1949]] से [[1970]] तक यह बड़ौदा विश्वविद्यालय के मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष थे।
 
शंखो चौधरी का जन्म 25 फ़रवरी, 1916 को संथाल परगना, [[बिहार]] में हुआ। आप रामकिंकर बेज के शिष्य थे। [[1939]] में स्थानक की उपाधि [[शांति निकेतन]] से प्राप्त की। [[1945]] में उन्होंने कलाभवन शांति निकेतन से ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। [[धातु]] की धुलाई का नेपाल पद्धति से अध्ययन किया। [[1949]] से [[1970]] तक यह बड़ौदा विश्वविद्यालय के मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष थे।
 
==टॉयलेट मूर्तिशिल्प==
 
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यह मूर्तिशिल्प 36×30×66.5 सेंटीमीटर पत्थर का बना हुआ है। इस मूर्तिशिल्प में  नारी आकृतियों को बैठी हुई मुद्रा में सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है, दो हाथ सिर के पीछे रखे गए हैं, इसमें रिक्त स्थान के माध्यम से रिक्तता को प्रदर्शित किया गया है। इस मूर्तिशिल्प में त्रिआयामी प्रभाव के साथ साथ ज्यामितीय प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। मूर्तिशिल्प को नारी आकृति के रूप में बनाया गया है, पर आंख, नाक, कान नहीं अंकित हैं।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.manojkiawaaz.com/2021/06/Shankho-chaudhari-artist-ki-jivni.html|title=शंखों चौधरी मूर्तिकार की जीवनी|accessmonthday=07 अक्टूबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=manojkiawaaz.com |language=हिंदी}}</ref>
 
यह मूर्तिशिल्प 36×30×66.5 सेंटीमीटर पत्थर का बना हुआ है। इस मूर्तिशिल्प में  नारी आकृतियों को बैठी हुई मुद्रा में सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है, दो हाथ सिर के पीछे रखे गए हैं, इसमें रिक्त स्थान के माध्यम से रिक्तता को प्रदर्शित किया गया है। इस मूर्तिशिल्प में त्रिआयामी प्रभाव के साथ साथ ज्यामितीय प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। मूर्तिशिल्प को नारी आकृति के रूप में बनाया गया है, पर आंख, नाक, कान नहीं अंकित हैं।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.manojkiawaaz.com/2021/06/Shankho-chaudhari-artist-ki-jivni.html|title=शंखों चौधरी मूर्तिकार की जीवनी|accessmonthday=07 अक्टूबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=manojkiawaaz.com |language=हिंदी}}</ref>
 
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==पक्षी मूर्तिशिल्प==
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इस मूर्तिशिप को स्टेनलेस स्टील से बनाया गया है। 62.2×25.4×20.3 सेंटीमीटर आकार का लकड़ी के आघार पर लगाया गया है। यह मूर्तिशिल्प स्टील धातु का बना हुआ है। छाया प्रकाश का प्रभाव अत्यंत आकर्षक है।
 
इस मूर्तिशिप को स्टेनलेस स्टील से बनाया गया है। 62.2×25.4×20.3 सेंटीमीटर आकार का लकड़ी के आघार पर लगाया गया है। यह मूर्तिशिल्प स्टील धातु का बना हुआ है। छाया प्रकाश का प्रभाव अत्यंत आकर्षक है।
 
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शंखो चौधरी
शंखो चौधरी
पूरा नाम शंखो चौधरी
जन्म 25 फ़रवरी, 1916
जन्म भूमि संथाल परगना, बिहार (आजादी पूर्व)
मृत्यु 28 अगस्त, 2006
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र मूर्तिशिल्प
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 1971

कालीदास सम्मान, *2000-2002
आदित्य बिड़ला कला शिखर पुरस्कार, 2002
ललित कला रत्न, 2004

प्रसिद्धि भारतीय मूर्तिकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शंखो चौधरी भारत के ही प्रसिद्ध मूर्तिकार रामकिंकर बैज के शिष्य थे। उनके मूर्तिशिल्प के विषयों में महिला आकृति और वन्य जीवन शामिल हैं। उन्होंने मीडिया की एक विस्तृत श्रृंखला में काम किया था।

शंखो चौधरी (अंग्रेज़ी - Sankho Chaudhuri, जन्म- 25 फ़रवरी, 1916; मृत्यु- 28 अगस्त, 2006) भारतीय मूर्तिकार थे, जो भारत के कला परिदृश्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। यद्यपि उनका वास्तविक नाम 'नर नारायण रखा' गया था, लेकिन वे अपने घरेलू नाम 'शंखो' से अधिक व्यापक रूप से जाने जाते थे। शंखो चौधरी ने प्रसिद्ध मूर्तिकार रामकिंकर बैज से शिक्षा ग्रहण की थी, जिनसे वह पेरिस में मिले थे। शंखों चौधरी के मूर्तिशिल्प के विषयों में महिला आकृति और वन्य जीवन शामिल हैं। उन्होंने मीडिया की एक विस्तृत श्रृंखला में काम किया था। आपने लकड़ी, धातु, टेराकोटा, प्रस्तर (काला और सफेद संगमरमर) का प्रयोग किया। उनकी मूर्तिशिल्प में वक्राकार रूप प्रदान कर उनको जीवंत बनाने की। कोशिश हुई है।

परिचय

शंखो चौधरी का जन्म 25 फ़रवरी, 1916 को संथाल परगना, बिहार में हुआ। आप रामकिंकर बेज के शिष्य थे। 1939 में स्थानक की उपाधि शांति निकेतन से प्राप्त की। 1945 में उन्होंने कलाभवन शांति निकेतन से ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। धातु की धुलाई का नेपाल पद्धति से अध्ययन किया। 1949 से 1970 तक यह बड़ौदा विश्वविद्यालय के मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष थे।

टॉयलेट मूर्तिशिल्प

मूर्तिशिल्प, द्वारा- शंखो चौधरी

यह मूर्तिशिल्प 36×30×66.5 सेंटीमीटर पत्थर का बना हुआ है। इस मूर्तिशिल्प में नारी आकृतियों को बैठी हुई मुद्रा में सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है, दो हाथ सिर के पीछे रखे गए हैं, इसमें रिक्त स्थान के माध्यम से रिक्तता को प्रदर्शित किया गया है। इस मूर्तिशिल्प में त्रिआयामी प्रभाव के साथ साथ ज्यामितीय प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। मूर्तिशिल्प को नारी आकृति के रूप में बनाया गया है, पर आंख, नाक, कान नहीं अंकित हैं।[1]

पक्षी मूर्तिशिल्प

मूर्तिशिल्प, द्वारा- शंखो चौधरी

इस मूर्तिशिप को स्टेनलेस स्टील से बनाया गया है। 62.2×25.4×20.3 सेंटीमीटर आकार का लकड़ी के आघार पर लगाया गया है। यह मूर्तिशिल्प स्टील धातु का बना हुआ है। छाया प्रकाश का प्रभाव अत्यंत आकर्षक है।

प्रमुख पुरस्कार

  • 1956 - ललित कला अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार।
  • 1971 - पद्म श्री पुरस्कार
  • 1974 - डी. लिट। (ऑनोरिस कौसा) सेंटर एस्कोलर यूनिवर्सिटी, फिलीपींस द्वारा।
  • 1979 - विश्व-भारती विश्वविद्यालय से अबान-गगन पुरस्कार।
  • 1982 - फेलो, ललित कला अकादमी।
  • 1997 - रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट।
  • 1998 - विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा देसीकोट्टमा (मानद डॉक्टरेट)।
  • 2000-2002 - कालिदास सम्मान
  • 2002 - आदित्य बिड़ला कला शिखर पुरस्कार।
  • 2004 - ललित कला अकादमी द्वारा सम्मानित "ललित कला रत्न"।
  • 2004 - "लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड" लीजेंड ऑफ इंडिया।[1]

प्रमुख प्रदर्शनियां

  • 1946 - पहला वन-मैन शो, बॉम्बे।
  • 1954 - समकालीन मूर्तिकला की प्रदर्शनी,आधुनिक कला की राष्ट्रीय गैलरी।
  • 1957 - नई दिल्ली में वन-मैन शो।
  • 1969 - बॉम्बे में वन-मैन शो।
  • 1971 - रेट्रोस्पेक्टिव शो: नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट।
  • 1979 - इरा चौधरी, बॉम्बे के साथ संयुक्त प्रदर्शनी।
  • 1987 - वन-मैन शो, नई दिल्ली
  • 1987 - स्केच और ड्राइंग का वन-मैन शो, कलकत्ता।
  • 1991 - वन-मैन शो, कलकत्ता
  • 1992 - एलटीजी गैलरी, नई दिल्ली में वन-मैन शो।
  • 1995 - वन-मैन शो, सिमरोज़ा आर्ट गैलरी, बॉम्बे।
  • 2004 - बड़ौदा में वन-मैन शो, सरजन आर्ट गैलरी द्वारा आयोजित[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 शंखों चौधरी मूर्तिकार की जीवनी (हिंदी) manojkiawaaz.com। अभिगमन तिथि: 07 अक्टूबर, 2021।

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