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<div style="padding:3px">[[चित्र:Shradh-Kolaj.jpg|right|border|100px|श्राद्ध]]</div>
 
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         '''[[स्वतंत्रता दिवस]]''' एक ऐसा दिन है जब हम अपने महान राष्‍ट्रीय नेताओं और स्‍वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्‍होंने विदेशी नियंत्रण से [[भारत]] को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्‍यौछावर कर दिए। [[मई]] [[1857]] में [[दिल्ली]] के कुछ [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में यह भविष्यवाणी छपी कि [[प्लासी युद्ध|प्लासी के युद्ध]] के पश्चात 23 जून 1757 ई. को भारत में जो अंग्रेज़ी राज्य स्थापित हुआ था वह 23 जून 1857 ई. तक समाप्त हो जाएगा। यह भविष्यवाणी सारे देश में फैल गई और लोगों में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जोश की लहर दौड़ गई। [[14 अगस्त]], [[1947]] को रात को 11 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्‍वतंत्रता को मनाने की एक बैठक आरंभ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12 बजे भारत को आज़ादी मिल गई और भारत एक स्‍वतंत्र देश बन गया। प्रत्येक वर्ष [[15 अगस्त]] को [[प्रधानमंत्री|भारतीय प्रधानमंत्री]] प्रातः 7 बजे [[लाल क़िला|लाल क़िले]] पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं। [[स्वतंत्रता दिवस|... और पढ़ें]]</poem>
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         '''[[श्राद्ध]]''' पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। [[हिन्दू धर्म]] के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में [[माता]]-[[पिता]], पूर्वजों को [[नमस्कार]] या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन जी रहे हैं। [[ब्रह्म पुराण]] ने श्राद्ध की परिभाषा इस प्रकार की है- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को दिया जाता है', वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध-कर्म में पके हुए [[चावल]], [[दूध]] और [[तिल]] को मिश्रित करके [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिण्ड]] बनाते हैं, उसे 'सपिण्डीकरण' कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं। [[श्राद्ध|... और पढ़ें]]</poem>
 
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13:45, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण

एक आलेख
श्राद्ध

        श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन जी रहे हैं। ब्रह्म पुराण ने श्राद्ध की परिभाषा इस प्रकार की है- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके पिण्ड बनाते हैं, उसे 'सपिण्डीकरण' कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं। ... और पढ़ें

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